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________________ मनेकान्त महावीर - सन्देश यही है महावीर सन्देश । विपुलाचल पर दिया गया जो प्रमुख धर्मं- उपदेश || यही ० || सब जीवोको तुम अपनाओ, हर उनके दुःख-क्लेश । असद्भाव रक्खो न किसीसे, हो अरि क्यों न विशेष ॥ १॥ वैरीका उद्धार श्रेष्ठ है, कीजे सविधि-विशेष । वेर छुटे, उपजे मति जिससे वही यत्न यत्नेश ॥२॥ घृणा पापसे हो, पापीसे नहीं कभी लव-लेश । भूल सुझा कर प्रेम-मार्गसे, करो उसे पुण्येश ॥ ३॥ तज एकान्त-कदाग्रह - दुर्गुण, बनो उदार विशेष । रह प्रसन्नचित सदा, करो तुम मनन तत्त्व-उपदेश ॥४॥ जीतो राग-द्वेष-भय-इन्द्रिय-मोह कषाय अशेष । धरो धैर्य, समचित्त रहो, औ' सुख-दुखमें सविशेष ॥५॥ अहकार-ममकार तजो, जो अवनतिकार विशेष । तप-संयम में रत हो, त्यागो तृष्णा-भाव अशेष || ६ || 'वीर' उपासक बनो सत्यके, तज मिथ्याऽभिनिवेश | विपदाओंसे मत घबराओ, घरो न कोपावेश ||७|| संज्ञानी संदृष्टि बनो, औ' तजो भाव सक्लेश । सदाचार पालो दृढ़ होकर, रहे प्रमाद न लेश ॥८॥ सादा रहन-सहन भोजन हो, सादा भूषा-वेष । विश्व- प्रेम जाग्रत कर उरमें, करो कर्म निःशेष ॥ ९ ॥ हो सबका कल्याण, भावना ऐसी रहे हमेश । दया - लोकसेवा-रत चित हो, और न कुछ आदेश ॥१०॥ इसपर चलने से ही होगा, विकसित स्वात्म- प्रदेश । आत्म-ज्योति जगेगी ऐसे जैसे उदित दिनेश ॥ ११॥ यही है महावीर-सन्देश । — युगवीर [ वर्ष ११
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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