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________________ मोहनजोदड़ो-कालीन और आधुनिक जैन-संस्कृति (श्री बाबू जयभगवान बी. ए, एडवोकेट ) ऋग्वैदिककालमें पंजाब और सिन्ध देश श्रमण संस्कृति [गत किरणसे आगे] ऋग्वेदके 'इन्द्र' सम्बन्धी सूक्तोंमे विदित है कि ऋग्वैदिक कालमै जब वैदिक आर्यजन उत्तर पश्चिमकी ओरसे भारतमें आये सप्तसिन्धु देश पणि, फणी अथवा नाग लोगोंसे वसा हुआ था, इनका गज्यशासक 'वृत्र' कहलाता था, उसे अहि (सांप), दास और दस्य संज्ञाओसे भी पुकारा जाता था, यह लोग बड़े मुदृढ और बलिष्ठ थे, भिन्न सभ्यतावाले थे, यह नही चाहते थे कि वैदिक आर्यगण इनके देशमे आवे और बसे, इसलिये वैदिक आर्यगणोको अपने फैलाव और ठहरावके लिए स्थल-स्थलपर इन लोगोसे मुकाबला करना पड़ा है। "वृत्र जघन्वा असृजद्विसन्धून" ऋ6-१९-८ अर्थात् वृत्रको मारकर इन्द्रने सप्तसिन्धुओ वाले देशको मुक्त किया था। "यो हत्वाहिमरणात सप्तसिन्धून" ऋ२ १२ ३-अर्थात् अहिको मारकर इन्द्रने सप्तसिन्धुओको मुक्त किया था। "विश्वा अपो अजयदासपली.... ." ऋ ५ ३० ५--अर्थात् इन्द्रने वृत्र-द्वारा पालित सकल उदक (सप्तसिन्धुवाले देशको) बशीभूत किया था। "दासपत्नीरहिगोपा अतिष्ठन्निरुद्धा आप ..... वृत्र जघन्वा अप तद्धवार" ऋ १३२. ११ १२अर्थात् आप (सप्तसिन्धुओवाला देश) दासो द्वारा पालित और दासो द्वारा सुरक्षित सब ओरमे ढका हुआ था, इन्द्रने खुत्रको मारकर उस सप्तमिन्धु देशका मार्ग आर्यजनके लिये खोला था। बस्यून्छिम्यूंश्च पुरुहत एवं ईत्वा पृथिव्या पूर्वानि वहींत । सनत क्षेत्रं सखिभि श्विल्य में सनत् सूर्य सनदपः सुव्रजः।-ऋ. १ १०० १८ अर्थात्-इन्द्रन अनंक आर्यगण द्वारा आहून होकर पृथ्वीनिवामी दस्युओ और सिम्युओको मार डाला और श्वेत वर्ण मित्रो वा मरुतोके साथ क्षेत्रोका भाग कर लिया, इम तरह मुन्दर वज्रयुक्त इन्द्र सूर्य एव नदी ममूह (सप्तसिन्धु देश) को प्राप्त हुए । ऋग्वेद ८ ३०. ३१ मे कहा गया है, कि इन्द्रने तीस हजार दासोको मृत्युकी नीद सुलाया था। ऋग्वेद २. १३ ९. में उल्लेख है कि इन्द्रने दमितिके लिये १००० दस्यू और सयुन पकड़कर बन्दी बनाये थे। उपर्युक्त मूक्तोमे जो शिम्य और सयुन शब्द प्रयुक्त हुए है, वे वैदिक भाषा शब्द न होकर प्राकृत भाषाके मौलिक शब्द है, जिनका संस्कृत रूप 'श्रमण' है । ऋग्वेद ३ ३४ ९ में कथन है कि दस्युओको मारकर इन्द्रने आर्यवर्णकी रक्षा की और दस्युओको लूटकर आर्यलोगोमे उपभोगके योग्य गोधन, सूवर्णधनका दान किया । इसी तरह ऋग्वेद १०. ४८. ४ मे कहा है कि इन्द्रने दस्युओकं गौ, अश्व, हिरण्य और दूधवाले पशुओंको आयुध-बलद्वारा जीत लिया ।। अथर्व-पृथ्वी सूक्त* १२.१ ३७ मे कहा है. कि पहले यह पृथ्वी दस्यु लोगोमे बसी हुई थी ये दस्यु लोग देव-द्रोही थे--उन्हे त्यागकर पीछेसे इसने वृत्रके स्थानमें इन्द्रको अपना लिया। * पापं सर्प विजमाना विमृग्वरी यस्यामासन्तान्ययो ये आप्लवन्तः परावस्यून दवती देव पीयनिन्छ वृणाना पृथिवी न वचम् शकाय बघा वृषभाय वृष्णे ॥३७॥
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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