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________________ किरण २] मीन-संवाद १०९ (५) खीचा, घसीटा, पटका यहां यों 'मानो न मै चेतन प्राणिकोई ! होता नहीं कुःख मुझे जरा भी। हूं काष्ठ-पाषाण-समान ऐसा !!" कैसे भला वे स्व-अधीन होंगे? स्वराज्य लेंगे जगमें कभी भी? करें पराधीन, सता रहे जो, हिंसावती होकर दूसरों को !! (११) भला न होगा जगमें उन्होंका बुरा विचारा जिनने किसीका! न बुष्कृतोंसे कुछ भीत है जो, सवा करें निर्वय कर्म ऐसे !! सुना कर था नर-धर्म ऐसा 'होनाऽपराधी नहिं बंड पाते । न युद्ध होता अविरोधियोंसे, न योग्य है वे वध कहाते ॥ रवा कर वीर सुदुर्बलों की, निःशस्त्र शस्त्र नहीं उठाते'। बातें सभी मूठ लगें मुझे वो, विरुद्ध दे दृश्य यहां दिखाई ॥ (१२) मैं क्या कहूं और, कहा न जाता ! है कंठमें प्राण, न बोल आता !! छुरी चलेगी कुछ देर में हो! स्वार्यो जनोंको कब ससं आता !!" (4) या तो विडाल-बत ज्यों कया है, या यों कहो धर्म नहीं रहा है। पृथ्वी हुई वीर-विहीन सारो, स्वार्यान्धता फैल रही यहां वा ॥ (१३) यों दिव्य-भाषा सुन मीनको मै, धिक्कारने खूब लगा स्वलता । हुआ सशोकाकुल और चाहा, देऊ छुड़ा बंव किसी प्रकार ।। बेगारको निध प्रया कहें जो, वे भी करें कार्य जघन्य ऐसे ! आश्चर्य होता यह देख भारी, 'अन्याय-शोकी अनिआयकारी !! 4 मीनने अन्तिम श्वास खींचा! मैं देखता हाय ! रहा खड़ा ही !! गूंजी ध्वनी अम्बर-लोकमें यों-- 'हा! बोरका धर्म नहीं रहा है !!' --युगवीर
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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