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________________ किरग २] भगवान महावीर स्पष्ट हुआ बोर बंब-मोक्षका सारा रहस्य जान पड़ा। relate, this teaching rapidly overtopped साथ ही, झूठे देवी-देवताओं तथा हिंसक यज्ञादिकों परसे the barriers of the races' abiding instinct उनकी श्रद्धा हटी और उन्हे यह बात साफ़ जंच गई and conquered the whole country. For कि हमारा उत्थान और पतन हमारे ही हायमें है, उसके a long period now the influence of लिये किसी गुत शक्तिकी कल्पना करके उसीके भरोसे Kshatriya teachers completely suppressबैठ रहना अथवा उसको दोष देना अनुचित और मिथ्या ed the Brahmin power. है। इसके सिवाय, जातिभेदकी कटट्रता मिटी, उदारता अर्थात्-महावीरने डंकेकी चोट भारतमें मुक्तिका ऐसा प्रकटी, लोगों के हृदयमे साम्यवादको भावनाएँ दृढ़ हुई संदेश घोषित किया कि -धर्म यह कोई महज सामाजिक और उन्हे अपने आत्मोत्कर्षका मार्ग सूझ पड़ा। इतना रूढि नही बल्कि वास्तविक सत्य है-वस्तुस्वभाव है-और ही नहीं, ब्राह्मण गुरुओंका आसन डोल गया, उनमेंसे मुक्ति उस धर्ममें आश्रय लेनेसे ही मिल सकती है, न कि समाजइन्द्रभूति-गौतम जैसे कितने ही दिग्गज विद्वानोने भगवान के बाह्य आचारोका-विधिविधानो अथवा क्रियाकाडोंका के प्रभावसे प्रभावित होकर उनकी समीचीन धर्मदेशनाको -पालन करनेसे,और यह कि धर्मकी दृष्टिमें मनुष्य मनुष्यके स्वीकार किया और वे सब प्रकारसे उनके पूरे अनुपायी बीच कोई भेद स्थायी नही रह सकता। कहते आश्चर्य होता बन गये। भगवानने उन्हे 'गगवर' के पदपर नियुक्त है कि इस शिक्षणने बद्धमूल हुई जातिकी हद बन्दियोको किया और अपने संघका भार सौपा। उसके साथ उनका शीघ्र ही तोड़ डाला और संपूर्ण देश पर विजय प्राप्त किया। बहुत बड़ा शिष्यसमुदाय तथा दूसरे ब्राह्मण और अन्य इस वक्त क्षत्रिय गुरुओके प्रभावने बहुत समयके लिए धर्भानुयायी भी जैनधर्ममे दीजित होगये। इस भारी विजयसे ब्राह्मणोंकी सत्ताको पूरी तौरसे दबा दिया था। क्षत्रिय गुरुओं और जैन धर्म की प्रभाव-वृद्धिके साथ-साथ इसी तरह लोकमान्य तिलक आदिदेशके दूसरे भी कितने तत्कालीन (क्रियाकाण्डी) ब्रामगधर्मको प्रभा क्षीण हुई, ही प्रसिद्ध हिन्दू विद्वानोने, अहिसादिकके विषयमें, महावीर ब्राह्मणोंकी शक्ति घटी, उनके अत्याचारोमें रोक हुई, भगवान अथवा उनके धर्मकी ब्राह्मण धर्म पर गहरी छापका यज्ञ-यागादिक कर्म मंद पड़ गये-उनमें पशुओं के प्रति- होना स्वीकार किया है, जिनके वाक्योंको यहां पर उद्धृत निधियोंकी भी कल्पना होने लगी--और ब्राह्मणों के लौकिक करनेकी जरूरत नहीं है। स्वार्थ तथा जाति-पांतिके भेदको बहुत बड़ा धक्का पहुँचा। भगवान महावीरने जिस धर्मतीर्थका प्रणायन अथवा परन्तु निरकुशताके कारण उनका पतन जिस तेजीसे हो प्रवर्तन किया है वह सबके उदय-उत्कर्षका एवं आत्माके रहा था वह रुक गया और उन्हे सोचने-विचारनेका अथवा पूर्ण विकासका साधक "सर्वोदयतीर्थ' है, जिसका गतकिरण अपने धर्म तथा परिणतिमें फेरफार करनेका अवसर मिला। ('सर्वोदयतीर्थाङ्क) मे भले प्रकार स्पष्टिकरण किया जा महावीरकी इस धर्मदेशना और विजयके सम्बन्धमें चुका है। यहां पर मै सिर्फ इतना ही बतला देना चाहता हूँ कि कविसम्राट डा. रवीन्द्रनाथ टागौरने जो दो शब्द कहे है वे यह तीर्थ-शासन अनेकान्त और अहिंसा इन दो मुख्य आधारों इस प्रकार है : पर स्थित है-ये ही दोनो इसके जान-प्राण है। इनमें अनेकान्त Mahavira proclaimed in India the विचार-दोषको मिटानेवाला और अहिसा आचार-दोषको message of Salvation that religion is a दूर करनेवाली है। इन दोनो दोषोके कारण ही सारा विश्व reality and nota mere social convention, संघर्षमय अशान्त चल रहा है और उसे जरा भी चैन नही। that salvation comes from taking refuge महावीरके इन दोनों सिद्धान्तोको अपनानेसे ही विश्वमें सुखin that true religion and not from शान्तिकी लहर व्याप्त हो सकती है। इस शासनमें 'अहिसाobserving the external ceremonies of को 'परमब्रह्म' बतलाया गया है; जैसाकि स्वामी the community, that religion cannot समन्तभद्रके निम्न वाक्यसे प्रकट है :regard any barrier between man and "अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परम।" man as an eternal verity. Wondrous to और इसलिए जो परम ब्रह्मकी आराधना करना चाहता
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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