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किरग २]
भगवान महावीर
मंडित था, तब आप वहा कायोत्सर्गसे स्थित हो गये और आपने आप सदाके लिए अजर अमर तथा अक्षय-सौख्यको प्राप्त हो परम शुक्लध्यानके द्वारा योग-निरोध करके दग्धरज्जु-समान गये१५ । इसीका नाम विदेहमुक्ति, आत्यन्तिक-स्वात्मस्थिति, अवशिष्ट रहे कर्मरजको-अघातिचतुष्टयको-भी अपने परिपूर्ण-सिद्धावस्था अथवा निष्कल-परमात्मपदको प्राप्ति है। आत्मामे पृथक् कर डाला, और इस तरह कार्तिक वदि अमा- भगवान महावीर प्रायः ७२ वर्षकी अवस्था मे अपने इस वस्याके दिन' स्वाति नक्षत्रके समय,निर्वाण-पदकोप्राप्त करके अन्तिम ध्येयको प्राप्त करके लोकापवासी हुए। और आज
उन्हीका नीर्थ प्रवर्त रहा है। १४ धवल सिद्धान्तमै, "परछा पावाणयरे कत्तियमासे
इम प्रकार भगवान् महावीरका यह सक्षेपमें सामान्य य किण्हचोद्दसिए । सादीएरत्तीए सेसरयं छत्तु णिचाओ।"
परिचय है. जिममे प्राय किमीको भी कोई खाम विवाद नही इस प्राचीन गाथाको प्रमाणमे उद्धृत करते हुए, कात्तिक वदि चतुर्दशीकी रात्रिको (पच्छिम भाग-पिछले पहरमे) निर्वाणका होना लिखा है। साथ ही, केवलोत्पत्तिमे निर्वाण तकके
देश-कालकी परिस्थिति-- समय २९ वर्ष ५ महीने २० दिनकी सगति ठीक बिठलाते
देश-कालकी जिस परिस्थितिने महावीर भगवान्को हुए, यह भी प्रतिपादन किया है कि अमावस्याके दिन देवेद्रो
उत्पन्न किया उसके मम्बन्धमे भी दो शब्द कह देना यहा के द्वारा परिनिर्वाणपूजा की गई है वह दिन भी इम कालम
पर उचित जान पडना है। महावीर भगवानके अवतारमे शामिल करने पर कात्तिकके १५ दिन होते है । यथा ----
पहले देशका वातावरण बहुत ही क्षब्ध, पीडित तथा मत्रस्त "अमावसोए परिणिध्वागपूजा सयलदेरिदेहि कया नि
हो रहा था, दीन-दुर्वर खूब सताए जाते थे, ऊँच-नीचकी
भावनाये जोगेपर थी, शूद्रोमे पशओजैसा व्यवहार होता था, तंपि दिवसमेत्येव परिक्तिते पण्णारस दिवसा होति ।"
उन्हें कोई सम्मान या अधिकार प्राप्त नही था, वे शिक्षा-दीक्षा इससे यह मालुम होता है कि निर्वाण अमावस्याको दिनके समय तथा दिनके बाद गत्रिको नही हुआ, बल्कि
१५ जैसाकि श्रीपूज्यपादके निर्वाणभक्तिगत निम्न चतुर्दगीकी रात्रिके अन्तिम भागमे हआ है जबकि अमा
वाक्यसे भी प्रकट है - वस्या आ गई थी और उमका साग वृत्य--निकोणपूजा
"पद्मवन-दीर्घिकाकुल-विविविध मखण्डमण्डिते रन्ये । और देहसस्कारादि--अमावस्याको ही प्रात काल आदिके पावानगरोद्याने व्युत्सर्गण स्थितः स मुनि. ॥१६॥ समय भुगता है। इसमे कार्तिककी अमावस्या आमतौर पर कार्तिकरुणस्याले स्वातावृक्षे निहत्य कर्मरज । निर्वाणकी तिथि कहलाती है। और चूकि वह गति अवशेष सप्रापद् व्यजरामरममय सौख्यम् ॥१७॥" चतुर्दशीकी थी इससे चतुर्दशीको निर्वाण कहना भी कुछ १६ धवल और जयधव र नामके सिद्धान्तग्रथोमे असंगत मालूम नहीं होता। महापुरा मे गुणभद्राचार्यने भी महवीरको आयु, कुछ आचार्यो के मतानुमार, ७१ वर्ष ३ "का.तकणपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये' इस वाक्यके महीने २५ दिनकी भी बतलाई है और उमका लेखा इस द्वारा कृष्। चतुर्दशीकी रात्रिको उस समय निर्वा का होना प्रकार दिया है -- बतलाया है जब कि रात्रि ममाप्तिके करीब थी। उसी गर्भकाल=". मास ८ दिन, कुमारकाल =२८ वर्ष रात्रिके अपरेमे, जिसे जिनसेनने अपने हरिवंशपुराणम माम १२ दिन, छमस्य-(तपश्चरग-) काल -१२ वर्ष "कृष्णभूतनभातसध्यासमये' पदके द्वारा उन्लेखित किया ५ माम १५ दिन; केवल-(विहार-) काल=२९ वर्ष ५ है, देवेन्द्रो द्वारा दीपावली प्रज्वलित करके निर्वागपुजा माम २० दिन । किये जानेका उल्लेख है और वह पूजा धवलके उक्त इस लेखेके कुमारकालमै एक वर्षकी कमी जान पडती वाक्यानुसार अनावस्थाको की गई है। इससे चतुर्दगीकी है, क्योकि वह आमतौर पर प्रायः ३० वर्षका माना जाता राषिके अन्तिम भागमै अमावस्या आ गई थी यह स्पष्ट है। दूसरे, इम आय मेसे यदि गर्भकालको किाल दिया जाना जाता है । और इलिये अमावस्थाको निर्वाग जाय, जिसका लोक-व्यवहार ने ग्रहग नहीं होता, तो वह ७० बतलाना बहुत युक्ति-युक्त है, उसीका श्रीपूज्यपादाचार्यने वर्ष कुछ महीने की ही रह जाती है और इतनी आयुके लिये "कार्तिक कृष्णस्यान्ते" पदके द्वारा उल्लेख किया है। ७२ वर्षका व्यवहार नही बनता।