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अनेकान्त
वर्ष ११
महावीर भगवानने प्रायः तीस वर्ष तक लगातार अनेक है।''राजगृहीमें उस वक्त राजा श्रेणिक राज्य करता था, देशदेशान्तरोंमें विहार करके सन्मार्गका उपदेश दिया, असख्य जिसे बिम्बसार भी कहते है । उसने भगवान्की परिषदोंमेंप्राणियोके अज्ञानान्धकारको दूर करके उन्हें यथार्थ वस्तु- ममवसरण-सभाओमे-प्रधान भाग लिया है और उसके स्थितिका बोध कराया, तत्त्वार्थको समझाया, भूले दूर की, प्रश्नो पर बहुतसे रहस्योका उद्घाटन हुआ है । श्रेणिककी भ्रम मिटाए, कमजोरियाँ हटाई, भय भगाया, आत्मविश्वास रानी चेलना भी राजा चेटककी पुत्री थी और इसलिए वह जगाया, कदाग्रह दूर किया, पाखण्डबल घटाया, मिथ्यात्व रिश्तेमे महावीरकी मातृस्वसा (मावसी)१२ होती थी। इसछुडाया, पतितोको उठाया, अन्याय-अत्याचारको रोका, तरह महावीरका अनेक राज्योके माथमे शारीरिक सम्बन्ध हिंसाका विरोध किया, साम्यवादको फैलाया और लोगोंको भी था। उनमे आपके धर्मका बहुत प्रचार हुआ और उसे स्वावलम्बन तथा सयमकी शिक्षा दे कर उन्हे आत्मोत्कर्षके अच्छा राजाश्रय मिला है। • मार्ग पर लगाया । इस तरह आपने लोकका अनन्त उपकार विहारके समय महावीरके साथ कितने ही मुनि-आयिकिया है और आपका यह विहार बडा ही उदार, प्रतापी एव काओं तथा थावक-श्राविकाओका सघ रहता था । आपने यशस्वी हआ है। इसीसे स्वामी समन्तभद्र ने स्वयभस्तोत्रमें चतुर्विध सघकी अच्छी योजना और बडो ही मुन्दर व्यवस्था 'गिरिभित्यवदानवत' इत्यादि पद्यके द्वाग इस विहारका की थी। इस मघके गणवगेको सम्या ग्यारह तक पहुच गई थी यत्किचित उल्लेख करते हए, उसे "जित गत" लिखा है। और उनमे सबसे प्रधान गौतम स्वामी थे, जो 'इन्द्रभति' नाममे
भगवानका यह विहार-काल ही उनका तीर्थ-प्रवर्तनकाल भी प्रसिद्ध है और समवसरण मख्य गणधरका कार्य करते थे। है, और इस तीर्थ-प्रवर्तनकी वजहमे ही वे 'तोर्यकर' कहलाने
ये गोतम-गोत्री ओर मकल वेद-वेदागके पारगामी एक बहुत है। आपके विहारका पहला स्टेशन राजगृहीके विपुलाचल तथा
बडे ब्राह्मण विद्वान थे. जो महावीरको केवलज्ञानकी सप्राप्ति वैभार-पर्वतादि पच पहाडियोका प्रदेश जान पडता है। जिसे
होने के पश्चात् उनके पास अपने जीवाऽजीव-विषयक संदेहके धवल और जयधवल नामके सिद्धान्त ग्रन्योम क्षेत्ररूपमे महा
निवारणार्थ गये थे. मदेहकी निवृत्ति पर उनके शिष्य बन गये वीरका अर्थकर्तृत्व प्ररूपण करते हुए, 'पचशैलपुर' नाममे
थे और जिन्होने अपने बहतमे शिष्योके साथ भगवानमे जिनउल्लेलिखत किया है। यही पर आपका प्रयम उपदेश हआ दीक्षा ले ली थी। अस्तु। है-केवल ज्ञानोत्पनिके पश्चात् आपकी दिव्य वाणी ग्विरी
तीस ३ वर्षके लम्बे विहारको समाप्त करते और कृतकृत्य है-और उस उपदेशके समयमे ही आपके तीर्थको उत्पत्नि हई होते हुए, भगवान महावीर जब पावा पुग्वे एक सुन्दर उद्यानमं
पहुँचे, जो अनेक पद्मसगेवरो तथा नाना प्रकारके वृक्षसमूहोमे ९. आप जम्भका ग्रामके ऋजुकूला-नटमे चलकर पहले । इसी प्रदेशमे आए हैं। इसीसे श्रीपूज्यपादाचार्यने आपकी
११ यह तीर्थोत्पत्ति श्रावण-कृष्ण-प्रतिपदाको पूर्वाहकेवलज्ञानोत्पत्तिके उस कथनके अनन्तर जो ऊपर दिया ।
(सूर्योदय) के ममय अभिजित नक्षत्रमें हुई है, जैसा कि गया है आपके वैभार पर्वत पर आनेकी बात कही है और
धवल सिद्वान्तके निम्न वाक्यसे प्रकट हैतभीमे आपके तीस वर्षके विहारकी गणना की है -
वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहले।
पाडिवदपुग्वदिवसे तित्थप्पत्ती दु अभिजिम्हि ॥ २ ॥ "अथ भगवान्सम्ञापहिव्यं वैभारपर्वत रम्यं ।
१२. कुछ श्वे० ग्रन्थानुसार 'मातुलजा'(मामूजाद बहन) चातुर्वण्य-सुसघात्तत्राभूदगौतमप्रभृति ॥ १३ ॥ १३. धवल सिद्धान्तमे-और जय धवलमे भी कुछ "वविधमनगासमामेकावशघोत्तरं तथा धर्म। आचार्योके मतानुसार एक प्राचीन गाथाके आधार पर देशयमानो व्यहरत् त्रिशद्वर्षाण्यथ जिनेन्द्र ॥ १५ ॥ विहारकालकी सख्या २९ वर्ष ५ महीने २० दिन भी
-निर्वाणभक्ति दी है, जो केवलोत्पत्ति और निर्वाणकी तिथियोको देखते
हुए ठीक जान पड़ती है । और इसलिए ३० वर्षकी यह संख्या १०. पंचसेलधुरे रम्मे बिउले पम्वत्तमे।
स्थूल रूपसे समझनी चाहिये । वह गाथा यह है-- णाणादुमसमाइण्णे देवदाणवविवे।।
वातागृणतीसं पंच 4 मासे य वीस दिवसे य । महावीरेणत्यो कहिलो भवियलोअस्म ।
चाउविहअणगारेहिं बारहहिं गणेहिं विहरतो॥१॥