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ॐ अहम्
ततत्त्व-सघातक
विश्वतत्व-प्रकाशक
वार्षिक मूल्य ५)
इस किरणका मूल्य )
नीतिविरोषध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक। परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्त,
सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' वर्ष ११ वीरसेवामन्दिर सरसावा जि० सहारनपुर
अप्रैल किरण २ चैत्र शुक्ल, वीर-संवत् २४७८, विक्रम-संवत् २००६
१६५२ रामगिरि पार्श्वनाथ स्तोत्र [यह स्तोत्र रामगिरि पर्वतपर स्थित पार्श्वजिनालयके अधिनायक श्रीपार्श्वनाथकी स्तुतिमें लिखा गया है, और इसलिए 'रामगिरि-पार्श्वनाथ-स्तोत्र' यह इसका सार्थक नाम है । परन्तु आमतौरपर यह 'लक्ष्मीस्तोत्र' कहलाता और लिखा जाता है, जिसका कारण 'लक्ष्मी' शब्दसे इसका प्रारम्भ होना है, अन्यथा किसी लक्ष्मी देवीकी स्तुतिमे यह लिखा गया नही है । इसके रचयिता पद्मप्रभदेव है, जो तर्क व्याकरण काव्य और नाटकोकी कुशलताके विषयमें पृथ्वीपर पद्मनन्दिमुनीशके रूपमे प्रसिद्ध थे और तत्त्वविषयका खज़ाना समझे जाते थे; जैसा कि स्तोत्रके अन्तिम (९ वे) पद्यसे जाना जाता है, जोकि एक प्रशस्त्यात्मक पद्य है। मूलस्तोत्र यमकाऽलंकारको लिये हुए आठ पद्योमे ही निर्मित हुआ है, इसीसे प्रशस्तिपद्यमें उसे 'यमकाष्टक' रूपसे उल्लेखित किया है और 'गम्भीर' विशेषणके द्वारा अर्थकी गम्भीरताको लिए हुए प्रकट किया है । साथ ही इस स्तोत्रको तत्वकोष प्रकट करते हुए 'जगतके लिए मंगलरूप' बतलाया है । यह स्तोत्र यमकाऽरंकारकी अच्छी छटाको लिए हुए है और पढनेमे बड़ा ही रसीला एवं आनन्दप्रद जान पडता है। आठो पद्योका चौथा चरण है 'पार्श्व पणे रामगिरी गिरौ गिरौ" जिसका अर्थ है-रामगिरि पर्वतपर स्थित पार्श्वनाथकी मै वाणीसे स्तुति करता है । अन्य चरणोमें प्रायः पार्श्वनाथके विशेषणोका उल्लेख है।
आजसे कोई २९ वर्ष पहले यह स्तोत्र माणिकचन्द्र दि. जैन ग्रन्थमालाके 'सिद्धान्तसारादिसग्रह' मै एक सस्कृतटीकाके साथ प्रकाशित हुआ था, परन्तु मूल तथा टीका दोनो ही परम्परासे अशुद्ध हो जानेके कारण उक्त सग्रहमें अशुद्ध ही मुद्रित हुए थे। हालमे सागरके श्रीमान् पं० पन्नालालजी साहित्याचार्यने मूलपाठको शुद्ध करके और उसके साथ पदच्छेद सस्कृत-व्याख्या तथा हिन्दी अनुवाद लगाकर उसे 'अनेकान्त' में प्रकाशनार्थ मेरे पास भेजा है। इस समय मै उनके द्वारा संशोधित मूलस्तोत्रको ही अनेकान्त-पाठकोकी जानकारीके लिए यहां दे रहा हूं।
-सम्पादक