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________________ विषय-सूची १. रामगिरि-पावनाय स्तोत्र - सम्पादक २. भगवान महावीर -- सम्पादक ३. महावीर -स्तवन ( कविता ) -- पं० नाथूराम प्रेमी १०२ ४. समन्तभद्र - वचनामृत - - युगवीर ५. श्रुतकीर्ति और उनकी धर्मपरीक्षा डा हीरालाल जैन ६ मीनसंवाद - जाल में मीन (सचित्र कविता ) - युगवीर १३. कविता कुंज--युगवीर १४. मेरी भावना अपने इतिहास और अनुवादोंके साथ ९३ ९५ ܘ १०३ १०५ ७. क्या यही विश्वधर्म है ? -- बा. अनन्तप्रसाद बी. एस. सी. ८. भगवानसे धर्म-स्थिति-निवेदन ( कविता ) -- पं. नाथूराम प्रेमी ११२ ९ मोहनजोदड़ो - कालीन और आधुनिक जैन सस्कृति -- बा. जयभगवान बी ए एडवोकेट ११३ १०. सन्त श्री वर्णी गणेशप्रसादजीका पत्र १२४ ११ संगीत का जीवनमे स्थान --- बा. छोटेलाल जैन १२५ १२. नागौरके भट्टारकीय भंडारका अवलोकन --श्री अगर चन्द नाहटा १२८ १३३ १०८ मोट -- दस ग्राहक बनानेवाले सहायकों को 'अनेकान्त' एक वर्ष तक भेटस्वरूप भेजा जायगा । ११० अनेकान्तको प्राप्त सहायता गत १० वे वर्षकी १२ वी किरणमें प्रकाशित सहायताके बाद' अनेकान्त' पत्रको संरक्षकों एवं सहायकोंसे प्राप्त सहायताके अलावा जो सहायता प्राप्त हुई है वह क्रमश निम्नप्रकार है और उसके लिये दाार महानुभाव धन्यवादके पात्र है:बाबू बसन्तीलालजी जैन जयपुर । बाबू शान्तिनाथजी सुपुत्र बाबू नन्दलालजी, कलकत्ता । ५) १००) १००) ११) बाबू निर्मलकुमारजी सुपुत्र बाबू नन्दलालजी, कलकत्ता । शिवराज जगराज जी लुक जलगांव और इंद्रभान हरकचन्द जी मंडले चायेवला ( पुत्र-पुत्रीके विवाहोपलक्ष मे ) । ५) रा० ब० बा० बसन्तलालजी मुरादाबाद और सेठ गुलाबचन्दजी जैन टोंग्या मथुरा (पुत्र-पुत्री के विवाहोपलक्ष में ) । ७) बाबू सुरेन्द्रनाथजी नरेन्द्रनाथजी जैन कलकत्ता (चि० सन्तोषकुमारके विवाहोपलक्ष मे ) मार्फत बाबू नन्दलालजी, कलकत्ता । ५) लाला हजारीलालजी बज जयपुर और श्री जी मूजी अजमेर जयपुरसे ( पुत्री तथा पुत्रके विवाहोपलक्ष में) । मार्फत कोषाध्यक्ष मस्ती जैनग्रन्थमाला देहली के । १३४ २३३) अनेकान्तकी सहायताके सात मार्ग (१) अनेकान्तके 'संरक्षक' तथा 'सहायक' बनना और बनाना । ( २ ) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनना तथा दूसरों बना । (३) विवाह - शादी आदि दानके अवसरोंपर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजना तथा भिजवाना | (४) अपनी ओरसे दूसरोंको अनेकान्त भेंट स्वरूप अथवा फ्री भिजवाना; जैसे विद्यासंस्थाओं, लायब्रेरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन-अजैन विद्वानोंको । (५) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमें देनेके लिये २५), ५० ) आदिको सहायता भेजना । २५ ) की सहायतामें १० को अनेकान्त अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा । (६) अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें देना तथा दिलाना । ( ७ ) लोकहितकी साधनामें सहायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको प्रकाशनार्थ जुटाना । | वीरखेवामवि मेनेजर बनेका सहारनपुर। सहायतादि भजने तथा पत्रव्यवहारका पता. - 'अनेकान्त'
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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