SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शौच धर्म ( प्रवक्ता श्री १०५ पूज्य क्षुल्लकगणेशप्रसादजी वर्णी ) (सागर-चातुर्मासमें दिया गया वर्णीजीका एक प्रवचन) आज शौचधर्म है । शौचका अर्थ होता है पवि- तक ठहरेगा तो भोजन कराना पड़ेगा। वह समझ त्रता। सबको अपनी आत्मा पवित्र बनानी चाहिये। गया । उमने कहा कि मुझे आज भोजन तो करना ही पवित्रता लोभ-कषायके दूर होनेपर ही हो सकती है। नहीं है सिर्फ नहा-धोकर दर्शनकर आऊं । फिर थैली लोभ, यह एक ऐसी कषाय है जोकि बहुत देरमें पिंड- लेकर चला जाऊंगा। वह चुप रह गया, यह नहाछोड़ती है। क्रोध नष्ट हो जाता है, मान नष्ट हो जाता धोकर जब मन्दिरसे आया और रास्ता चलने लगा। है, माया नष्ट हो जाती है पर लोभ दशम गुणस्था- तब बोला कि मैं अब जाता है। मेरी थैली निकाल न तक साथ लगा रहता है । लोभके अभावमे यह दी। थैली लेकर वह जहांसे दो चार भले आदमी जा बात अवश्य है कि वह यथाख्यातचारित्र प्राप्त करा रहे थे खोलकर रोने लगा कि जिस किसी तरह जो दता है। यह बात क्रोध,मान और मायाके अभावमें १० गिन्नी और दो चार मुहरें इकट्ठी कर पाई थीं, नहीं होती। लोभ करना बड़ा बुरा है, जो अधिक पर आज वे कंकड़ पत्थर हो गई। यदि इनकी बात लोभ करता है उसकी बड़ी दुर्दशा होती है । मुजफ्फ- कहता हूँ तो कौन मानेगा, भले आदमी हैं। मैं तो लुट रनगरके पास एक सटैरो गांव है। वहां एक अच्छा गया। भीड़ इकट्ठी हो गई लोगोंने काना-फूसी करके धनाढ्य जैन रहता था। उसकी प्रकृति कृपण थी। घर उमसे कहा कि अपनी इजतमें वट्टान लगाओ। चुपआप हुएको दोसाटया खिलाना भी उसे भारी मालूम केमे दस गिन्नी और ४ मुहरें लाकर देदो। इज्जतका होता था। एक बार एक जैनी जो साधारण परिस्थि- ख्यालकर वह गिन्नी और मुहरें लाकर उसे देने लगा तिका था शामके समय उसके घर आकर ठहर गया, तो वह बोला, इम तरह मैं नहीं ले सकता, पंचोंपर उसने उससे व्यालूकी बात भी न पूछी। उसे दो केसामने लूगा । पंच जुड़े। पंचोंके सामने उस घरपरांयठा भारी हो गये। ठहरनेवाला आदमी बड़ा मालिकने उसे १० गिन्नियां और ४ मुहरे दी टंच था। उसने एक थैलीमें दम-पच्चीस रुपये और और हाथ जोड़े। अब उसने कहा कि यदि सत्य बात कुछ कंकड पत्थर भरकर मुह बंद किया और उम सुनना चाहते हो तो यह है कि मैं वंजी करनेवाला आदमीसे कहा जिसके यहाँ ठहरा था कि इसमें कुछ आदमी हूँ। मेरे पास गिन्नी और मुहरें कहांसे श्रा जोखिम है आप अच्छी तरहसे रख लीजिये, वह मकती हैं। मैं इनके घर कल शामको व्यालूके वक्त खोलकर देखने लगा तो उसने कहा, क्या आवश्यकता आया पर इनस दो परांयठा नहीं खिलाये गये। इनके है ? आपका मुझे विश्वास है आप ऐसी-की-ऐमी दो परांयठाके लोभने मुझे यह षड्यन्त्र करनेको ही कल दे दीजिये । अच्छी बात कहकर उसने वह बाध्य किया, मुझे न गिन्नी चाहिये न मुहरें। दर• थैली रख ली। सवेरा हुआ। उसने कहा, अब जाओ असल बात ऐसी ही है जो अधिक लुब्धक होता है थैली निकाल दू? उसे डर था कि यदि यह कुछ समय उसकी ऐसी ही दशा होती है।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy