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________________ ( A अहार-क्षेत्रके प्राचीन मूर्ति लेख । ( मंग्राहक-५० गोविन्ददास जैन, न्यायतीर्थ, शास्त्री) [वर्ष १० किरण १ से आगे] - )* . (नं० ५२) भावार्थ:-जैमवालवंशमें पैदा होनेवाले साहु दोनों ओर इन्द्र खड़े हैं । मत्ति कमरके खोने उनकी धर्मपत्नी यशकरी उनके पुत्र साहु पासमे टूट गई है। दोनों धड़ उठाकर इकटठं कर नायक उनके भाई साहु पाल्हण-वील्हे-माल्हा-परमेदिये हैं। शिलालेखके कुछ अक्षर घिस गये है। माहिणि उनके पुत्र श्रीराने संवत् १२०३ माघ सुदी अतः परे पढे नहीं गये । करीव ५ फुट ऊँची खडा- १३ को बिम्बप्रतिष्ठा कराई। सन है । पापाण काला तथा चमकदार है। तथा जैसवालवंशमे पैदा होनेवाले साहु बाहड़ उनकी धर्मपत्नी शिवदेवि उनके पुत्र साहु सोमिन लेख-संवत् १२०३ माघ मुदी १३ जैसवालान्वये उनके भाई साहु माल्ह-जनप्राहड़-लाख-लाल्हेने साहु खोने भार्या यश् करी सुत नायक साहु भ्रातृ पाल्हण संवत् १२०३ के माघ सदी १३ को बिम्बप्रतिष्ठा वील्हे माल्हा परमे महिणि सुतश्रीरा प्रणमन्ति नित्यम् । कराई। संवत् १२०३ माघसदी १३ जैसवालान्वये साहु नोट:-यह प्रतिविम्ब दो धर्मात्मा महाशयोंबाहड भार्या शिवदवि मृत साहु मोमिनि भ्राता साहु माल्ह- ने अपनी गाढ़ी कमाईकी द्रव्य लगाकर प्रतिष्ठित जनप्राहढ लाग्य लाल्हे प्रणमन्ति नित्यम् । कराई है। कविवर तुलसी तथा बनारमी दोनों ही हिन्दी (नं० ५३) साहित्यके अमर कलाकार है। दोनोंकी भापा परिमा ___मत्तिका शिर और हाथोंके अतिरिक्त बाकी हिम्मा नहीं है । चिन्हसे पता चलता है कि पुष्पर्जित है। रूपकों तथा अल कारोंके आभूषणोंसे युक्त । दन्तकी प्रतिमा है। करीव २। फुट ऊँची पद्मासन है, और संस्कृतके पुटसे अोत-प्रोत । यदि दानोंमे है। पापाण काला है। कोई अन्तर है तो वह यह कि तुलसीका काव्य-क्षेत्र लेख-संवत् १२१३ अषाडसुदी २ भौमे गृहपत्यन्वये विस्तत और लौकिक है, और कविवर बनारसीका क्षेत्र माहुजमकरस्तस्य भार्या रोहणी तयोः पुत्रवासलस्तस्यकुछ सीमित और पारलौकिक अध्यात्मवाद है फिर लघुभ्रात. साहु नाने तस्य भार्या पाल्हा तथा अल्हा भी दोनों कवियोंकी कविता लोक-कल्याणके महान् नित्य प्रणमन्ति । भावार्थ:-गृहपतिवंशमें पैदा होनेवाले साहु उद्देश्यस परिपूरित है तुलसीमें साकार ईश्वर-उपा जशकर उनकी धर्मपत्नी रोहणी-उन दोनोंके पुत्र सनाकी प्रधानता है तो बनारसीमे है प्रत्येक आत्मा- बासल उनके छोटे भाई साहु नाने उनकी धर्मपत्नी के परमात्मा होनेके विवेचनकी मुख्यता । इस प्रकार पल्हा और अल्हा ने सवत १२१३ के असाढ़ सुदी दोनों ही साहित्यसदनकी अविनाशी विभूतियाँ है। ८ भौमको प्रतिष्ठा कराई।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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