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________________ ६८ अनेकान्त [वर्ष १० खिले; जो संसारके सामने 'समयसार', 'अर्ध- दृष्टिकोण में रखते हुए रचा। इसलिए नहीं कि वे कथानक', 'बनारसीविलास', और 'नाममाला' साहित्य-सदनमे सर्वोत्कृष्ट स्थानपर स्थित होवें। के रूपमें प्रकट हुए। उनके भीने भीने सौरभने इससे कविकी अन्तर-आत्मा झलक पड़ती है, इसके विश्वमें विमल वातावरणका विनिर्माण किया। एक दो शिक्षाप्रद पदोंकी मर्म-स्पर्शताकी अनुभूति १. समयसार--यह प्राकृत भापाके समयसार कीजिए। पर लिखे गये संस्कृत समयसार नाटकके आधार १. कुल-कलंक दलमलहि, पापमल--पंक पखारहि । पर रचा गया है। यह हिन्दी साहित्य-सदनका दारुण संकट हरहि, जगत-माहिमा विस्तारहि ॥ विशाल बहिर तथा नींव है। इसमें कविने अ सुरग मुकति पद रचाह, सकृत संचरहिं करुणारसि । ध्यात्म-मरुभूमिमे अपने शान्त-रसके सिचनसे सरगन वदहि चरन, शील-गुण कहत बनारसि ॥ सुन्दर-सपमावाले उद्यानको सृष्टि की है, जिसमें २. ज्यों सुवास फल-फूलमें, दही-दूध में घीव । विचरण करते ही बनता है । उसके एक सछन्दका पावक काठ-पाषाणमें, त्यों शरीरमें जीव ॥ रसास्वादन कीजिये: ४. नाममाला-यह एक कोप-ग्रन्थ है यह महा"काया चित्रमारी में करम परजंक मारी, कवि धनजयकी संस्कृत रचना नाममालाका प्रायः मायाको सबारी सेज चादर कलपना। सुन्दर हिन्दी-अनवाद है। अनवाद उत्तम है। शैन करै चेतन अचेतनता नींद लिए, साहित्य-प्रेमियोंके कंठ करने योग्य है। उदाहरणार्थ मोहकी मरोर यह लोचनको ढपना ॥ एक दोहेका ही दर्शन कीजियेउदै बल जोर यहै श्वासको शबद घोर , सम्यक सत्य अमोघ सत नि:संदेह विनधार । विधै सुखकारी जाको दौर यहै सपना । ठीक यथाथ उचित तथ मिथ्या श्रादिश्रकार ॥ ऐसी मूढ दशामें मगन रहे तिहुँ काल, हिन्दी-व्योम-वितानमे कविशिरोमणि बनाधावे भ्रम-जालमें न पावे रूप अपना" रसीदासजी मध्यान्हकालीन जाज्वल्यमान मातडकी २. अर्धकथानक-कविका 'आत्मचरित्र' है। नाई प्रखर किरणोंवाले दीप्तमान है। उनकी आभा इसमे कविने जिस निपुणतामे आत्मवर्णन किया अमर है। उनकी क्षमता रखनेवाले प्रायः महात्मा है, वह पठनीय है। उममें कविके व्यक्तित्वकी। तुलसीदासजी ही है। कहा जाता है कि एकबार छाप है। हिन्दी-साहित्यके क्षेत्रमें यह आत्म-चरित्र- बनारसीदासजी तथा तुलसीदासजीका साक्षात्कार चित्रणका पहला ग्रन्थ है, एवं चरित्र-चित्रणकी हुआ था। उम समय कविवरने एक अपनी सुरचना शैलीकी सृष्टि यहींसे हुई। इसप्रकार हमारे कवि तुलसीदासजीको सुनाई । इसपर महात्मा तुलसीराज चरित्र-चित्रण-शैलीके प्रवर्तक एवं मंस्थापक दासजीने अपना ग्रन्थ 'रामचरित मानस' कविवरभी हैं। 'अर्धकथानक' कविवरको एक प्रौढ़ को भंट किया। पुनः भेट होने पर जब तुलसीदासजी सत्समालोचक भी बनानेको पर्याप्त है। ने रामायणके विषयमें पूछा तो कविवरने...... ३. बनारसी-बिलाम-बनारसीदासजीकी विमल “विराजै रामायण घट माहि" रचना तत्काल रचकर वाणीसे विखरित होनेवाले अमृतोपदेशका संग्रह सुनाई। इस अध्यात्म-रचनाको श्रवणकर तुलसी है, जो पं० जगजीवनदामजी द्वारा संकलित दासजीने बनारसीदासजीको 'पार्श्वनाथस्तोत्र' किया गया है। इससे यह स्पष्ट है कि कविने जो एवं भक्तिविरदावलि' शीर्षक अपनी सुन्दर कुछ रचा है वह लोक-कल्याणका महान् , उद्देश्य रचना समर्पित की।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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