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________________ किरण २] मैं क्या हूँ ? ही है और न इच्छापूर्वक पुद्गलके साथ बँधना रहता है । इसके बारेमें वैज्ञानिक explanation ही इसका होता है। यह तो एक संयोगमात्र है। विवरण या स्पष्टीकरण) जो कुछ होसकता है उसके स्वभाव तो इमका हर तरहके Matter या पुद्गज लिये अपनी Theory या सिद्धान्त मैं पहले लिख से अलग ही रहनेका है पर अनादिकालीन चुका हूं। यह भी ठीक इसी तरहसे है जैसे आजसंयोग-साथ रहना इसे पुद्गलके साथ बांध देता कलके वैज्ञानिक बिजली (विद्य त-electri city) है। पर यह बंध स्वभावानुकल नहीं होनेसे यह का electrous द्वारा होना कहते, मानते एवं समआत्मस्वाभाविक रूपसे ही पुद्गलसे छटकारा पाता झते हैं । electrons को किनीने देखा नहीं:है या पा जाता है। यह छूटना, मुक्ति या मोक्ष तो परन्तु इसके काम या असर देखकर ही अनुमान वस्तुस्वभाव ही है। इसमे कोई तीसरा आधार, किया गया है कि ऐसा कुछ है या ऐमा कुछ होनेसे कारण या महायक कुछ भी नहीं है। यह तो स्वयं ही जो सब सामने बिजली द्वारा होता हुआ देखा अपन आप वस्तुम्वभावानुकूल होता है या होता जाता है वह संभव है या उन सबका कोई ठीक जाता है-जिसे आधुनिक वैज्ञानिक (evolution) explanation "तुकमें तुक वैठनेवाला" सम्भव या विकासवाद कहते है। आत्मा कर्मों या पुद्गलों- होता है। यही वात चेतन आत्मा और material से छुटकारा पानेके सिलसिले या दौरानमें जो रूप पुद्गलके मिलनके सम्बन्धमें भी, जैसा मैंने सुझाव या शरीर वगैरह धारण करता है या करता जाता उपस्थित किया है, पूर्ण रूपसे लागू है। यह काम है उसे ही मांसारिक भाषामें (evolution) या Phenomena किसतरह सम्पादित होता है उसका बिकाम कहते है । इसका पूर्ण विकास तो तभी प्रत्यक्ष दर्शन या प्रत्यक्ष ज्ञान तो अभी हम साधाहोता है जब इसके स्वभावको आवृत करनेवाले रण मानवोंको जितना सीमित ज्ञान, जानकारी या पुद्गलोंसे, जो संयोग या साथ रहनेके कारण ही अनुभव है उसमें कैसे सम्भव होसकता है? ऐसी इससे चिपटे रहते है और इसके गुणोंको ढॉक हालतमें यदि हम विद्य तप्रवाह इलेक्टन electrons रहते है, यह छुटकारा पाकर अपन स्वभावमें द्वारा होता है जैसे मानते है उसी तरह यदि तक पूणरूपसे विकासित हो जाता है । इसे ही धार्मिक पूर्ण तरीकोंसे इस विपयपर भी विचार करें तो परिभापामे मोक्ष मुक्ति या निवाण होना या सिद्ध इम विपयमें भी उमी नतीजे (Conclusions) पर पदमे स्थापित होना अथवा ईश्वर हो जाना कहते पहुचेगे जो पहले इस बारेमें लिखा जाचुका है और है। यह आत्माकी सबसे ऊँची अवस्था है जहां यही इसका mosi reasounbleयाRationalexइसका पूर्ण ज्ञान विकसित हो जाता है एवं यह planation लगता है (seems to be)जबतक दूसरा परम निर्मल, परमविशुद्ध होकर सचमुच ही केवल- कोई इससे बेहतर Theory या सिद्धान्त आगे प्रतिज्ञान एवं चेतनामय या ज्ञान एवं चेतनामात्र पादित न हो। इस तरह की बात जैसा पहले कहा रह जाता है। यह अवस्था प्रायः हर-एक जीव-हर- जाचुका है। जैनधर्ममें वार्णित सिद्धान्तसे भी मेल क भव्य-प्राणी प्राप्त करता है या कर सकता है। खाजाता है और वेदान्त, न्याय, बौद्धधर्मोंसे भी। आत्माका पुद्गलोंके साथ सम्बन्ध मेल हां, इनमे केवल यह बात मानना अत्यन्त आवया बंध जब केवल मंयोगमात्र है तब आत्माका श्यक है कि संसारका निर्माण किसी बाहरी शक्ति इन पुद्गलोंसे छुटकारा स्वाभाविक एवं वस्तुस्व- या किसी सर्वशक्तिमान ईश्वरने नहीं किया बल्कि भावके कारण ही अपने आप होता है। यह सब कुछ स्वयं स्वाभाविक एवं अनादि है। आत्माका बंध पुद्गलके साथ कैसे हुआ यदि ऐसा मान लिया जाता है और जैनधर्ममें वर्णित
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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