SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० अनेकान्त [ वर्ष १० eculas जैसे-जैसे आते और जुटते जायेंगे उनके आत्माका बंध कहते हैं । यह सब भी ठीक उसी जुटने या मिलनेका ढंग या तरीका उस एक मंघ तरह होता है जैसे किसी अन्न या किसी फलका molecule की बनावटपर ही निर्भर करता है- रूप अपने आप तैयार हो जाता है। और भी जैसे जैसे किसी एक मूलमंघ ( Molecule) में एक पानीके गिलासमें तुखममलंगा इसवगोल या तरफ ऐसा है कि उसी तरफको दूसरा मौलेक्यूल इसी तरहको और भी ताकतकी दवाइयां होती हैं (उपादानभूत-मूल स्कन्ध ) मट सकता है दूसरी उन्हें डाल देनेपर ये चीजें फैल और फलकर सारे तरफ नहीं और दूसरा जो मौलेक्यल आवेगा वह गिलासके पानीको सोख लेती है और सब मिलभी एक तरफसे ही उस पहले मौलेक्यूलसे सटेगा- मिलाकर एक लोंदा-सा तैयार हो जाता है-पानीदूसरी तरफसे नहीं इस तरह हर-एक चीज जब का फिर न तो पता लगता है न पहले जो चीज छोड़ी स्वाभाविक रूपसे बनती है या बनने लगती है तब गई थी वही अपनी उस शकलमें रह जाती है। उसका एक खास रूप हो जाता है। सबकी अपनी- पानी और वह दवा एक-साथ ही लोंदेमें इकट्ठा अपनी तरतीब या शखला chaip or Inik & जहाँ जॉय तहाँ तहाँ इकटठा हो जायेंगे दोनों एकdirection of face or direction of atta- दुसरेसे बँधे हुए ही जायँग । पानीका तो कहीं पता chment अलग-अलग है। जैसे एक लोहा जब तक भी नहीं रहता उसी तरह और जैसे फल-फल चुम्बकके पास नहीं लाया जाता उमके भीतरकी और अन्न वगैरह अपनी-अपनी शकल पकड़ लेते बनावट एक खास तरहकी रहता है पर एक चुम्ब- हैं तथा जैसे शरीरधारियोंके शरीरमें रक्त, मांस, कके पास लाया जानेपर उसी लोहेके अन्दरकी मज्जा वगैरह अपने आप अपनी शकल-सूरत और बनावटमें या उसके बनानेवाले मौलेक्यूलोंकी तर- खास तरहकी बनावटोंमें बनते जाते हैं वैसे ही तीवमें फर्क पड़ जाता है, जिसकी वजहसे वह आत्म-प्रदेशमें स्थित पुद्गगल भी-अापसी कंपन चवक हो जाता है। पत्थरका कोयला बहुत दवाव या हलन-चलन या हलचलकी वजहसे एक खास पड़नेसे ही हीरामे परिणत हो जाता है। एक ही शकलमे बन जाता तथा आत्मासे बँध जाता है चीज इस तरहसे भिन्न-भिन्न वस्तुके साथ भिन्न- और उस भी बांध लेता है। भिन्न chemical action ( रासायनिक प्रक्रिया) आत्माकी मुक्ति द्वारा, जिनसे पुद्गल-मंघोंकी बनावटमे स्वयं फरक पड़ जाता है, भिन्न-भिन्न गुणोंकी वस्तुमि परिणत ___ आत्मा चेतन है-जानने और अनुभव करने हो जाती हैं। वाला। सच पूछिए तो केवल जानना और अनुभव - अनादिकालमे आत्मा (जीव) और पद्गल करना (to know & to feel) ही इसकी विशेषता. एक-साथ इकट्ठा घुले-मिले चले आरहे है-फिर को सूचित करता है। यह केवल ज्ञानमय या ज्ञानपद्गलोंमे हलन-चलन या कंपन होनेसे और मात्र ही है ऐसा भी कहना अनुचित नहीं होगा । आत्मप्रदेशमें भी कंपन-हलचल होनेसे उस अन्यथा ज्ञानके अतिरिक्त तो हर तरहसे यह शून्य आत्मप्रदेशमें वतमान पुद्गल भी एक खास तरह ही है। इसके कोई पोद्गलिक (material) की बनावट और संघोंमें बंध जाते हैं एवं आत्मा शरीर नहीं है। यह तो स्वयं अशरीरी है। हां, पद्को भी इस तरह आबद्ध कर लेते है कि फिर दोनों गलके Matter संयोगसे शरीरधारी हो जाता है। की गुत्थम-गुत्थी हो जाती है और दोनों एक-दूसरे पर पुद्गलके साथ मिलना, बंधना या संयोग इसका से अभिन्न-से हो जाते है-इसे ही पुदगल और स्वभाव नहीं है। न तो वस्तुत: इसके कोई इच्छा
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy