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________________ किरण २] आत्मा और पुद्गलका अनादि-सम्बन्ध पता है कि उसे कोई यादि. दोजी जाती है जिसे अण्डेका खोखला कहते हैं और कोई भी विचित्रता बिना हल हुप ( insolved ) उसके भीतरकी चीज उसके अन्दर बन्द होजाती न रह जाय। जैसे मनुष्यके शरीरमें रक्त, मांस, है। पर बाहरसे भीतर तक नसों या बारीक रेशों- हड़ी वगैरह बनते है वैसे ही पेड़ों पौधों में फल, फूल, द्वारा सम्बन्ध कायम रहता है जैसे किसी फल, पत्ते एवं अन्न बनते है। हर-एक वस्तुके पुद्गलसाग-भाजी या पेड-पौधे या पत्तियोंमें देखनेमें आता संघकी बनावट अलग-अलग या भिन्न-भिन्न है। है। या आदमी या पशु-पक्षीके शरीरमें ही हम हर-एक वस्तुका रूप, रंग, गुण इत्यादि उसके यह करामात अपने चारों तरफ या स्वयं अपने पुद्गल-संघोंकी बनावटकी विशेषता या विभिन्नताअन्दर ही देखते हैं। पर ही निर्भर है। एक ही जमीनसे रस-पानी इस तरहसे किसी भी आत्मप्रदेशके अन्दर खींचनेवाले तरह-तरहके पेड़-पौधोंमें क्यों भिन्नमौजूद पुद्गलोकी शकल, रूपरेखा-बनावट- भिन्न तरहके फल, फल, अन्न भिन्न-भिन्न रूपोंमें संगठन कुछ इस तरहका होजाता है कि वह पूराका गुण एवं स्वादके साथ हो जाते हैं। कोई मीठा, पूरा आत्मप्रदेश छेके तो रहता है ही वह उसे इस कोई कड़वा, कोई तीखा, कोई अमृत, कोई जहर, तरह आविष्ट, या आवेष्टित कर लेता है कि जिससे कोई टेढा, कोई सीधा, कोई गोल, कोई लम्बा, वह दोनों एक दूसरेसे बंध-से जाते है या बंध-से इत्यादि इत्यादि और भी एक ही तरहका अन्न, रहते है । इस तरहकी बातके होनेका अनुमान पानी, खाने-पीनेवाले दो जीवोंके शरीरमें दो तरहकी करना हरएकके लिए अत्यन्त ही आसान है। फिर चीजे पैदा हो जाती हैं एवं उनके बच्चे भी उन्हींके जहां-जहां वह पुद्गल शरीर जाता है या आत्मा अनुरूप होते हैं-यह सब क्यों ? और कैसे ? यह जाता है दोनों एक दूसरेके साथ चले या चलते प्रश्न हमारे आधुनिक वैज्ञानिकोंको चक्करमें डाले जाते है। यही कमों या पुद्गलोंका बंध है-जो हए है। हमें जानना चाहिए कि जैसे inorganic अनादि कालसे आत्माके साथ चला पाता है। chemistry मे chemicals का आपसमें action और वस्तुस्वभावके अनुरूप by perpetualc reaction होता है उसी तरह organicमंसारमें evolution शाश्वत विकास-द्वारा जब आत्मा भी होता है। सभीमें A toms या Molecules की पुद्गलोंसे छुटकारा पाजाता है तब उसे मोक्ष या बनावटमें फर्क पड़कर ही कोई तबदीली होती है। मुक्ति कहते है। जैसे crystals खास चीजके एक ही शकल-सरतके - वस्तुएँ अनादिकालीन हैं और उनके स्वभाव बनते हैं वैसे ही अन्न पेड़-पौधोंमे भी फल, फूल, या गुण भी उनके साथ ही सदासे हैं । फिर जो पत्ते वगैरह एक खास शकल-सूरतके ही बनते हैं कुछ प्रभाव उनके आपसमें एक दूसरेपर क्रिया- एवं मनष्य या और प्राणियोंके शरीरके अन्दर भी प्रतिक्रिया (Action and reaction) या मिलने- उसी तरह सब चीजें अपने आप बनती है। हर एक विछुड़नेसे होगा या होता है उसीका नतीजा या उसी वस्तुके पुदगल-संघकी बनावटमें फरक है तथा हरके फलस्वरूप यह सब दृश्य जगत या जो कुछ हम एक बनावट अलग-अलग ढंगसे है। जब क्रिस्टल देखते-सुनते, जानते या समझते हैं वह सब कुछ है। बनते हैं तो उनके बननेमें भी यही बनावट उनके संसारकी विचित्रता खास तरहकी शकल-सूरतका कारण होती है। यदि हम पुद्गल-संघोंके इस गठन या बनावट- पुद्गलका एक संघ (स्कन्ध ) छोटा-से-छोटा संघको ठीक-ठीक समझ जायँ तो संसारकी सभी Molecules जिस तरहका या जैसी बनावटका बातोंका उत्तर ठीक-ठीक अपने आप मिल जाय। होगा-और उसमें दूसरे और पुद्गल संघ mol
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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