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________________ किरण २] आत्मा और पुद्गलका अनादि-सम्बन्ध चुका है जिसे कोई भाई मालूम कर मकता है। के हिलनेसे पुद्गल हिलते है। ऐसी हालतमें हिलतेआत्मा निराकार परवस्तुमे शन्य-Matterless and हिलाते रहनेमे ठीक वही दशा या बात हो जाती है Foruless है। निराकारका मतलब वही है जैसा है जैसे कि किमी एक श्रात्मप्रदेशके अंदर जितने हमारे यहां शास्त्रोंमे समझाया गया है। ये सब बाकी पुद्गल रहते है उनके भीतर अपने आप इसतरह बातें हमारे शास्त्रांस देखकर या जानकर ममझने के अविरल शाश्वत कंपनी या हलन-चलनसे एक और माननमें कोई कठिनाई नहीं होती और न तरतीब या मंगठन या गुठ-सा बन जाता है। यह है। मैं उनके वर्णन या Detail और व्योरामे बात साधारणतः बात साधारणतः सभीकी समझमें आ सकती हैयहां नहीं जाना चाहता। हाँ, तो आत्माके अपने थोड़ा गौर करने मात्र ही। यहां कोई खास दृष्टान्त प्रदेशमें पद्गल भरा हुआ है। जबतक श्रात्मा मेर ध्यानमें अभी तक इस विषयपर या इसके इम मसारमे है तबतक इस पुद्गल-सम्बन्धसे छुट- भाग श्रांगे जो बातें मै कहूँगा उनपर नहीं आया है फिर कोगनीपासका मनोरोग भी विपयको समझनेमे कोई कठिनाई मेरी समझमें दोनों एक जराहू एक-सा है। ऐसी हालतसे जूल तो नहीं होनी चाहिए। जैसे किसी घड़ेमें हर एक उन पद्गलोमे जो आत्मप्रदेशमं स्थित है प्रकम्पन, साइजकी लंबी, मोटी, पतली, गोल, छोटी-बड़ी हलनचलन-हिलनाडुलना होता है तब श्रात्माक चीज रखी हों। जब हम घड़ेको हिलाते-डुलाते हैं प्रदेशमें भी या या कहिए कि आत्मामें भी यह तब वे एक-दूसरमे इस तरह बैठ जाती है कि फिर प्रकम्पन, हलन-चलन अथवा हलचल होती है। केवल घड़ेको उलट देने मात्रसे ही वे चीजें नीचे पद्गल तो श्रात्मप्रदेशमै और उसके बाहर भी नहीं गिर मकती । इसी तरहके अनेकों उदाहरण या ठसाठस भरे है उनमे हलचल तो होती ही रहती हपान्त हम स्वयं मोचकर अपने समझनेके लिए फिर इस हलचलमे आत्मप्रदेशके पदगलमें हलचल निकाल सकत है। कहनेका तात्पर्य यह कि इसतरह होते रहना स्वाभाविक है और उमसे फिर आत्माम किसी आत्म-प्रदेश अंदर मौजूद पुद्गल एक खास या आत्माकं अपने प्रदरामे भी। पुदगल ही चारों तरफ प्रकारकी बनावट या मघ या गठनमें गठित हो भरे पड़े हो सो बात नहीं, आत्मा भी चारों तरफ जाते है या होका रहते है। यह मब तो स्वाभाविकतः भरी पड़ी है। आत्मामे तो अन्य आत्माओंको ही हुआ। इसमें कोई दृमरा निमित्त नहीं। यह तो ममा मकनकी भी शक्ति है, क्योंकि वह Bodyleye एक तरहकी प्रारम्भिक दशा मान ली गई है केवल अशरीरी या Foruless (केवल spirit जैसा कि बातको ममझान मात्रके लिए, वैसे तो अनादिकहा जाता है) है-क प्रात्माके प्रदेशोंमें दमरी काजीन पुद्गल भी है और जीव भी और दोनों ही कितनी ही आत्मागे घूम सकती या रह मकती है। एकदूमरमे अभिन्न रूपमे भरे पड़े है। फिर उनमें इम विपयपर भी ग्रन्थोंमे बहुत कुछ लिखा जा बंध कैसे हुआ है या होता रहता है इसी चका है। इसतरह पदगलों और आत्माओंका का समझानके लिए इन मबकी जरूरत है, जिसएक दमरके माथ अभिन्न मन्निकटत्व चला में साधारण ज्ञानवाला भी तकपूर्ण पाकर समझ ही आता है। और एक दसरेके प्रदेश एक जाए एवं मंतोषित हो जाय-कि हां, बात ठीक दूमरेके कारण हलचल करते ही रहते है । अर्थात् है और यह संभव है। तथा आगे बढ़नेपर जब उनमें गति या हलन-चलन, जिसे हमारे यहां वह तारतम्यतायुक्त सभी कुछ चूल में चूल बैठता "कम्पन" नाम दिया गया है, होता रहता है । पुद्गल हुआ एवं तर्कपूर्ण तथा युक्तियुक्त पावे तो सभी के हिलनेसे आत्मप्रदेश हिलता और आत्म-प्रदेश को स्वीकार कर सके या कर ले-निःशंक होकर ।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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