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________________ ५२ अनेकान्त [वर्ष १० man will be free to construt his house from श्रादमी बिना नौकाके नदी पार नहीं कर सकता, those three eternal bricks- atoms and space तो इसका यह मतलब नहीं कि तेरनेवाला भी नहीं and law. करसकता। लॅगड़को लकड़ीकी जरूरत है इससे अर्थान् धर्मवादी लोग हमसे पूछते हैं कि-आप हराएकको जरूरत न मान लेना चाहिये। धर्मके बदलेमें क्या देना चाहते हैं ? वे हमसे अाशा करते हैं कि हम एक बुराईके बदलेमें दूसरी बुगई ___इधर बुद्धिवादियोंसे भी कहना चाहता दें। पर हम उन्हें माफ साफ उत्तर देते है कि हमें हूं कि आप लॅगड़े नहीं हैं इसलिये लकड़ी न कल नहीं देना है। हम सिर्फ उस ज्ञानको भेट लीजिये, पर जो लॉगड़े है उनकी लकड़ी छडानेका करना चाहते हैं जो मनष्य-जातिको बन्धनमुक्त कर हठ क्या ? हाँ, उनका लँगड़ापन मिटाने की कोशिश देगा। कीजिये, मिटजाय तो लकड़ी छूट ही जायगी, पर जब अन्ध-विश्वासोंके बन्धन टूट जायँगे, चहार जबतक मिटा नहीं है तबतक लकड़ीके सहारे दीवारियाँ गिर जायँगी तब मनुष्य परमाणु, क्षेत्र चलने दीजिये, इतना ही नहीं ऐसे लोगोंको लकड़ी और नियमरूपी तीन तत्वोंकी ईंटोंसे अपना घर दीजिये । मैं यही कर रहा हूं। अनीश्वरवादीको बनानके लिये स्वतन्त्र होजायगा ।" ईश्वरवादी नहीं बनाता पर जो ईश्वरवादके बिना बुद्धिवादियोंके इस तथ्य-सत्य-तादास्म्यके नहीं चल सकता उस उसीक सहारे चलने देता हूं, आदर्शकी में प्रशंसा करता हूं फिर भी मेरा स्थान इतना ही नहीं उसकी लकड़ीमें सुधार भी करता इन बुद्धिवादियों और धर्मवादियोंके बीचमें है। हूं जिससे कमजोरी कम-से-कम रहे और गति ये बुद्धिवादी कहते है कि हमने तुम्हे अपना घर प्रगति बने। (जीवन)बनानेक लिये तीन चीजे (परमाणु, क्षेत्र मेरा ध्येय गति है चाहे लकड़ीके सहारे हो, और नियम) देदी । तुम इन्हींसे घर बनाओ। चाहे विना लकड़ीके महार, मेरा ध्येय घर बनाना अगर इन्हींसे घर नहीं बना सकते तो हम कुछ (जीवन-निमाण) है, चाहे वह परमाणु-क्षेत्र-नियमनहीं जानते । जबकि धर्मवादी कहते है कि केवल की ईटोंसे ही बने, चाहे उममें ईश्वर या आत्माका इन चीजोंसे घर बन नही मकता, गारा या चनाके मसाला और लग जाय। रूपमें ईश्वरवाद या आत्मवाद जरूरी है। जा अन्ध-विश्वामोंके बन्धन टूटना और चहारइनके बिना घर बनाने की बात कहते हैं वे झूठ हैं। दीवारियोंका गिरना कठिन होनेपर भी इतना कठिन मैं कहता हूं कि संसारमें ऐसे व्यक्ति भी है. नहीं है जितना कि जीवनका घर बनाना । अच्छी-सेभले ही वे बहुत थोड़े हों, पर भविष्यमें अधिक अच्छी सरकार और नमाज-व्यवस्था बनानेपर भी होसकते हैं, जो ईश्वरवाद या आत्मवादके बिना स्वार्थी व्यक्ति अन्यायसे सफलता पा लेते हैं अधिअपना घर (जीवन) बना सकते है, जैसा कि म० कारोंका दुरुपयोग करते है, और बहुतसे लोग बद्धने बनाया था, म० मार्क्सने बनाया था और जीवनभर तपस्या करनेपर भी म० ईसा और म. भी बहुतोंने बनाया था। इसलिये धर्मवादियोंका माक्र्सकी तरह कष्टमय और कष्टान्त जीवन बिताते एकान्त ठीक नहीं। आदमी अगर विमानमे बैठे हैं इनके लिये मानसिक समाधान क्या ? हरएक बिना व्योम-विहार नही करसकता तो इसका यह आदमी म०मास नहीं है, वह अगर म० ईसा बनमतलब नहीं कि कोई दूसरा प्राणी भी नहीं कर- जाय तो भी दुःख सहनके लिये अपने स्वर्गीय पितासकता। अथवा तेरना न जाननेबाला अगर कोई का सहारा चाहता है, भले ही वह स्वर्गीय पिता
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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