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________________ अनेकान्त [ वर्ष १० है कि कायोत्सर्गरूप ध्यानमुद्रा पुरुषाकार परमात्मा भी मौजूद हैं। उनपर बहुतसा परिश्रम करनेपर भी अथवा परब्रह्मका साक्षात् स्वरूपहै। अतः पर- दुनियाके प्राचीन लिपि-भाषा-विशेषज्ञ अभी तक मात्मपद की सिद्धि के लिए श्रमणों-द्वारा कायोत्सर्ग- पूर्णरूपसे सफल-मनोरथ नहीं हो पाए हैं। इन अभि रूप ध्यान लगाना स्वाभाविक ही है। लेखोंके पढ़े जानेपर विवाद-ग्रस्त विषयपर बहुत उक्त तात्त्विक मान्यताओंके श्राधारपर ही प्रकाश पढ़ने की सम्भावना है। अब तक इस क्षेत्रमें विशेषज्ञोंने जो गवेषणायें की हैं वे किसी तरह भी उप. डा० प्राणनाथने निश्चित किया है कि मोहनजोदड़ो. की लिखतमें जहाँ कहीं पुरुषाकार-चिह्न उप युक्त मतकी विरोधी नहीं हैं ; बल्कि यदि डा० प्राण नाथका मत स्वीकार किया जावे तो इन टिकड़ों और युक्त हुए हैं वे सब परमात्मस्वरूप भाव के प्रतीक हैं। मोहरोंपर उत्कीर्ण चिह्नों और लेखोंसे सिद्ध है कि वे किसी विशेष मनुष्य जातिको प्रगट नहीं करते'। जैनधर्म, शाक्त, पाशुपत और शैव आदि पुराने निष्कर्ष तान्त्रिक धर्मों का सिन्धदेशकी पुरानी सस्कृतिके __ इस प्रकार उपर्युक्त विवेचनसे यह निष्कर्ष ८ साथ गहरा सम्बन्ध है । डा. प्राणनाथका तो यह भी कहना है कि इनमेंसे कितने ही टिकड़ोंपर 'जिनेशः' निकालना अनिवार्य हो जाता है कि मोहनजोदड़ोकी वा 'जिनेश्वर' शब्द स्पष्टरूपसे लिखे हुए हैं।' योगी मूर्तियां जैन अर्हन्तोंकी मूर्तियां हैं। यह मानकर ही हम इन मूर्तियोंके शिरोंपर रक्खे १. Indian Historical Ouarterly Vol. हुए त्रिशूलोंका, कन्धोंपर पड़ी हुई जटाओंका, उनके VIII N. 2, June 1932" The Scirpts निकट खड़े हुए वृक्ष और जन्तुओंका, उनकी उपा on the Indus Valley Seals" by Dr. सना करते हुए नाग यक्ष और मनुष्योंका, उनपर Pran Nathअङ्कित हुए धर्मचक्रदण्डोंका, बहुत बड़ी संख्या टिकड़ोंपर उत्कीर्ण हुए जन्तुओंका एक ऐसा सुसं. "The names and symbols on plates गत और बुद्धिगम्य विवेचन कर सकते हैं जो पुरा annexed would appear to disclose तत्त्व, शिलालेखों और साहित्यसे प्रमाणित है। a connection between the religious साथ ही तात्त्विक मान्यताओं, धार्मिक भावनाओं cults of the Hindus and Jainas with और ऐतिहासिक अनुश्रुतियोंसे आधारित है। those of the Indus people. P. 27." * It may also be noted that the insइन टिकड़ों और मोहरोंमेंसे अनेकपर अभिलेख cription on the Indus seal No. 449 १. डा. प्राणनाथ-वही Indian Historical reads according to my decipherments Quarterly p. 21 "Jinesvar" or "Jinesah"
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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