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अनेकान्त
[वप १० । दोनों कलाओंमें कई अरहन्त-मूर्तियां ऐसी भी हैं जिससे यह लुप्त-प्राय एक विशेष जातिका घोड़ा जिनमें उक्त प्रकारके पशु-पक्षियोंके अतिरिक्त सिद्ध होता है। उनके दायें बायें उनके आनुसंगिक चैत्यवक्ष भी जिल्द ३ फलक ११४ टिकड़े ५०० से ५१५ तक बनाए गये हैं। इसके लिए निम्न प्रमाण देखें:- स्वस्तिक अङ्कित है। (अ) बही मोहनजोदड़ो
जिल्द १, फलक १२ टिकड़े १६, २०, २१, २५, जिल्द १, फलक १२ टिकड़ा'१८ २६ पर वृक्ष अङ्कित है। जिल्द ३, फलक ११६, टिकड़ा १
जिल्द ३ फलक १११ टिकड़े ३४१ से ३४७ तक जिल्द ३, फलक ११८, ताम्रपत्र B ४२६। पर गेंडा अङ्कित है। (आ) वही Epigraphica Indica, फलक १० जिल्द ३ फलक ११० टिकड़े ३०४-३०६ तक
कहीं कहीं यह चैत्य वृक्ष मूर्तिके शिरके ऊपर पर भैंसा अङ्कित है। छत्राकाररूपमें अथवा सघन पत्तोंवाली शाखाओं- जिल्द ३ फलक ११२ टिकड़े ३५५ पर हिरण के रूपमें दिखलाये गये हैं। इसके लिये देखेंवही जैन स्तूप आदि-वी० ए० स्मिथ १६०१ ।
जिल्द ३ फलक ११४ टिकड़े ४८०-४८४, ४८६ फलक १४-इसमें चैत्य वृक्ष मतिके शिरपर पर मछली अङ्कित है।। फैला हुश्रा छत्राकार दिखलाया गया है।
जिल्द ३ फलक ११०, १११, ११५, टिकड़े ३१०
से ३२६ तक और ५३६ पर बकरेका चित्र अदित __ फलक ११-इसमें दायें हाथवाली मूर्तिके
है। इस बकरेका धड़ कुहानरहित बैलके समान है। शिरपर चैत्यवृक्ष लटकी हुई सघन शाखाओंके रूप में दिखलाया गया है।
इसकी दुम बैल के समान लम्बी है, इसका शिर
बकरेके समान है, शिरपर दो सींग हैं। श्रीजान. दोनों क्लाओंमें बैल, हाथी, घोड़ा, स्वस्तिक,
मार्शलने इसे (Bison) बतलाया है। यह लुप्तप्राय वृक्ष, गड़ा, महिष, हिरण, मत्स्य, बकरा, मच्छ, किसी विशेष जातिका बकरा सिद्ध होता है। आदि चित्रोंको बहुत महत्व दिया गया है।
जिल्द ३ फलक १११ टिकड़े ३५१ से ३६१ तक, मोहनजोदडोकी कलामें तो ये चित्र ध्यानस्थ फलक ११६ टिकड़े नं०२०, फलक ११८ ताम्रपत्र नग्न मतियों के सम्पर्कके अतिरिक्त भी टिकड़ों और १७ पर मच्छके चित्र अङ्कित हैं। मोहरोंपर अङ्कित हुए बहुत बड़ी संख्यामें मिलते ये चिट्ठ तीर्थङ्करोंके प्रतीक हैंहैं। इसके लिए देखें
जैन जनश्रतिके अनुसार ये समस्त चिह्न निम्न १ Ibid Mohanjodaro
तीर्थङ्करोंके हैं। जिल्द ३ फलक १११ टिकड़े २७३ से ३४० तक
१ बैल-प्रथमतीर्थकर वृषभनाथ । पर वृषभ चित्र अङ्कित है।
२ हाथी-द्वितीय तीर्थ कर अजितनाथ । जिल्द ३ फलक ११२ टिकड़े ३६५ से ३७३ तक
३ घोड़ा-तृतीय तीर्थंकर शम्भवनाथ । पर हाथी चित्र अङ्कित है।
४ स्वस्तिक =सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ । जिल्द ३ फलक ११३, ११४, ११५ टिकड़े १ से ५ वृक्ष-दशवें तीर्थ कर शीतलनाथ । ३०१ तक, ५३७ से ५४१ तक, ५४३, ५४४. ५४६, ६गड़ा-ग्यारहवे ताथंकर श्रयासनाथ । ५४८, ५५७ पर छोड़ा (unicorn) अङ्कित है। इस महिष(भैंसा)- बारहवेतीर्थकर वासुपूज्य जानवरकी पीठपर सवारीके लिए गरी लगी हुई है, हिरण-सोलहवें तीथकर शान्तिनाथ ।