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किरण ११-१२ ] मोहनजोदड़ोकी कला और श्रमण-संस्कृति
४४१ कराकर आर्यजनके वसने योग्य बनाया था',३ उसने है कि तीर्थकरोंके पचकल्याणकके उत्सव उक्त दासोंके धनको लूट कर आर्यजनमें उसे वितरण प्रकार बड़े समारोहके साथ मनाए जाते थे। किया था। वह इस तरह आर्यजनके लिये सकल
ल दोनों कलाओंके पशु और वृक्षकामोंकी सिद्धि के लिए एक मात्र ईश्वर था। वह अपने उपरोक्त पराक्रमके ही कारण महाराजामहेन्द्र,
दोनों कलाओंमें विभिन्न अन्तिोंको सविशेष
पहिचाननेके लिए उनकी मूर्तियों के नीचे अथवा विश्वकर्मा आदि उपाधियोंसे भी विख्यात हुआ
आसपासमें उनके प्रानुसंज्ञिक पशु-पक्षियोंके चिह्न था' । यदि यह जानना हो कि इन उत्सवों में इसके
अक्ति किये गये है। इस स्थलपर यह बता देना अतिरिक्त क्या कुछ होता था तो हमे मथुराकी
आवश्यक है कि कुशानकाल और गुप्त कालमें पुरानी कलाकी ओर ही निहारना चाहिए। इससे
मूर्तियों के आसनोपर इन चिह्नोंको अङ्कित करनेको विदित होगा कि जिस प्रकार आजकलके जैन
प्रथा कुछ कम हो गई थी परन्तु फिर भी कुशानकाल रथोत्सवोंमे मूर्ति के साथ-साथ अनेक हाथी, घोड़े,
की बहुतसी जैन-मूर्तियां मौजूद हैं जिनपर ये चिन्ह रथ, पालकी, चन्दोये, झण्ड़े, धर्मचक्र चलते हैं और .
अंकित हैं। मध्यकालीन और आधुनिक कालको अनेक नृत्य और गायन करने वाले रहते है, वैसे
मूर्तियों में तो ये चिह्न सभीमे मौजूद हैं। इनके लिये ही आजसे २००० वर्ष पूर्व जैन मूर्तियोंके उत्सवोंमें
निम्न प्रमाण पर्याप्त हैं :अनेक हाथी, घोड़े, रथ, पालकी, चन्दोये, झण्ड, धर्मचक्र आदि शामिल होते थे और अनेक आभू- (अ) वही मोहनजोदड़ो-जिल्द १ फलक १२ पण-अलङ्कारोंसे युक्त चन्दोयेक नीचे हाव-भाव- टिकड़े १७ की ध्यानस्थ बैठी मूर्ति के नीचे हिरण का सहित नाचगान करती हुई बहुतसी नर्तिकाए' चिन्ह बना हुआ है और इसके आस-पाममें हाथी साथ-साथ चलती थीं। जैन साहित्यसे भी विदित शेर, गेंडा और भैसेके चित्र बनाए गए है।
जिल्द नं. १ फलक १३ टिकड़े १८ पर १ ऋग् ४-१६-८; २-१२-३;५-३०-२
. ध्यानस्थ खड़ी मूर्ति के सामने एक पशुका चिह्न १-३२-११; २-१२-११, २-१३-२; इन्द्रो या चक्र यात्मनेनमिगा शचीपति:- अथर्व १२.-१-१०,
बना है।
(आ) वही, मथुरासंग्रहालयका सूचीपत्र-मति २ ऋग १-१००-७-८; २-१३-४ ।
_B ७६ के सिंहासनपर चिह्न बना है और मत्ति B
७७ में आसनपर सर्पका चिह्न बना है।। वा. ४-२२ ४(अ) वहो जैनस्तूप भादि वो.ए.स्मिथ १६०१
(इ)Archeological Survey of India फलक १४, १५, २०।
Vol XX 1901. फलक १६-इसमें सिंहासनपर (श्रा) Epigraphica Indica Vol. II Part
दो वर्षभोंके चिह्न बने है। फलक ६१, फलक १३, XIV March 1894-Specimen of jain
फलक ६४ में सिंहासनपर सिंहके चिह्न बने हैं। Sculpture from Mathura by A. Buhler ५)व्याख्याप्रज्ञप्ति १३-६ पृ० ३१६-३२१ फलक ३।
(श्रा) प्राचारांगसूत्र २-२४, ७-३७ (इ) Impearl Gazeteer Puri District, (इ) आदिपुराण पर्व १२, १३, १७, २२, ४६ 1908, P, 88
(६) पं० भाशा घरकृत प्रतिष्ठासारोबार १, (ई) प्राचीन जैन स्मारक बंगाल बिहार और श्रोडी.
८६-१०० सा, प्र. शीतलप्रसाद-लिखित, पृ. ८६ ।
(उ) श्रीजयसेनकृत प्रतिष्ठापाठ ७२४-७६८