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________________ ३८६ अनेकान्त । बष १० डाले हुए संस्कारोंका कोमल तथा निविकारहृदय बच्चों पर क्या और कितना असर होता है उसे सहृदय पाठक सहज ही अनुभव कर सकते हैं। अस्तु, स्तोत्र बड़ा सुन्दर, ललित एवं अध्यात्म-रससे परिपूर्ण है। प्रारंभिक अष्टकके प्रत्येक पद्यमें मन्दालसा अपने पुत्रको सम्बोधन करके उसे उसके शुद्धस्वरूपका बोध कराती हुई उसको अन्तरात्माको जगाती है और फिर मान-मायादिकके त्यागकी प्रेरणा करती हुई कहती है कि 'हे पुत्र मन्दालसाके वाक्य की उपासना करो अर्थात् मेरे कहे को पूर्णतः मानो' । आशा है अने. कान्तके पाठकों को यह स्तोत्र रुचिकर होगा। -सम्पादक (उपजात्यादि वृत्त) सिद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि संसार-माया परिजितोऽसि । शरीर-भिन्नम्त्यज मर्वचेयां मन्दालसा-वाक्यमुपासि पुत्र ।।१।। जाताऽमि दृष्टाऽमि पगमम्पोऽग्ट एडम्वरूपोऽमि गगाालयोऽमि । जिनेन्द्रियस्त्वं त्यज मान-मदा मन्दालमा-वाक्यमुपासि पुत्र ॥२॥ शान्तोऽसिदान्तोऽमि विनाशहीन: मिद्धस्वरूपोऽमि क्लङ्गमुक्तः। ज्योतिस्वरूपोऽमि विमुञ्च मायां मन्दालमा-वाक्यमपासि पुत्र | | एकोऽसि मुक्तोऽसि चिदात्मकोऽसि चिद्रपभावोऽमि चिन्तनोऽमि । अलक्षभावो जहि देह-मोहं मन्दालसा-वाक्यमुपामि पुत्र || नि:काम-धामाऽमि विकर्मरूपो रत्नत्रयात्माऽमि पपवित्रः। वेत्ताऽसि चेताऽसि विमुकच कामं मन्दालमा-वाक्यमुपामि पुत्र ॥॥ प्रमाद-मुक्तोऽमि सुनिर्मलोऽसि अनन्तबोधादिचतुष्टयोऽसि । ब्रह्माऽमि रक्ष म्वचिदात्मरूपं मन्दालसा-वाक्यमुपासि पुत्र ॥६॥ कैवल्यभावोऽसि निवृत्त-योगो निरामयो ज्ञात-समस्त तत्वः । परात्मवृत्ति म्मर चित्स्वरूपं मन्दालसा-वाक्यमुपासि पुत्र ॥७॥ चैतन्यरूपोऽसि विमुक्त-मारो भावादिकर्माऽनि समग्र-वेदी। ध्याय प्रकामं परमात्मरूपं मन्दालसा-वाक्यमुमासि पुत्र || इत्यष्टकर्या पुरतस्तनूजान् विबोध्य नाथं नरनाथ-पूज्य म । प्राव्राज्य भीता भव-भोग-भावात स्वकैः सदा सा सुगति प्रपेदे ॥६॥ इत्यष्टकं पापपराङ्मुखो यो मन्दालमाया भणति प्रमोदात् । स सद्गति श्रीशुभचन्द्रभासि समाप्य निर्वाण-पदं प्रगच्छेत् ॥१०॥ इति मन्दालसा-स्तवनम
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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