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________________ ॐ अहम् + + धस्ततत्त्वासघातक । विश्वतत्त्व-प्रकाश * वार्षिक मूल्य ५)* 3 .. ★ इस किरणका मूल्य १)* SHA ANDuradAMIRLREALI IA नीतिविरोधष्वंसी लोकव्यवहारवर्तक सम्यक् ।। परमागमस्यबीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्त । + + . वर्ष १० । वीरसेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम ), ७/३३ दरियागंज, देहली किरण ११-१२ ज्येष्ठ, आषाढ़ वार-संवत् २४७६, विक्रम संवत् २००७ मई-जन १६५० मन्दालसा स्तोत्र [यह स्तोत्र जयपुरमें स्थित आमेर-शास्त्र भंडारके गुटकों का निरीक्षण करते हुए गत जनवरी मासमें गुटका नं० ३६ परसे उपलब्ध हुआ था। यह अपने अन्तिम पद्यपर से श्रीशभचन्द्र निर्मित जान पड़ता है। इसमें संसारसे भयभीत एवं अध्यात्म-रसिक मन्दालसा रानीके उस स्तोत्रको समाविष्ट किया गया है जिसे वह अपने पुत्रों को पालने में झलाते आदि समय उन्हें सम्बोधन करके कहा करती थी और इस तरह उनमें अध्यात्मविषय के उच्चतम संस्कार डाला करती थी । नतीजा यह होता था कि उसके पुत्र युवावस्थाको प्राप्त होनेके पूवही जरासा निमित्त पाकर संसारसे विरक्त हो जाते थे और जिनदीक्षा ले लेते थे। इसके कुछ भावकी सूचना पद्य नं0 में की गई है। कहते है एक बार मन्दालसाकी सासने बहूसे कहा कि तेरे सब पुत्र वयस्क होने के पूर्व ही दीक्षित हो जाते हैं ऐसा न कोई गुरुमंत्र उन्हें सिखाती है तब इस राज्यके भारको कौन संभालेगा ? अन्तमें मन्दालसाने कहा बताते है कि 'अबकी बार जो पुत्र होगा उसे ऐसी ही शिक्षा दी जायेगी जिससे वह राज्यके भारको संभालेगा' और बैसाही हुआ। इससे शुद्वान्तःकरण-द्वारा
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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