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________________ अनेकान्त स्थान कहां है । और उन्होंने प्रन्थ-रचनाका यह महत्वपूर्ण कार्य किन राजाओंके राज्यकाल में किया है यह बात अवश्य विचारणीय है । यद्यपि कवि अपनी जन्मभूमि आदिका कोई परिचय नहीं दिया, जिससे उस सम्बन्ध में विचार किया जाता फिरभी उनके निवास स्थान आदिके सम्बन्धमें जो कुछ जानकारी प्राप्त हो सकी है उसे पाठकों की जानकारी के लिए नीचे दिया जाता है: उक्त कविके ग्रन्थोंसे यह पता चलता है कि वं ग्वालियर में नेमिनाथ और वर्द्धमान जिनालय में रहते थे और कवित्तरूपी रसायन निविसे रसाल थे, ग्वालियर १५ वीं शताब्दी में खूब समृद्ध था, उस समय वहां पर देहलीके तोमर वंशका शासन चल रहा था । तोमर वंश बड़ा ही प्रतिष्ठित क्षत्रिय वंश रहा है और उसके शासन कालमें जैनधर्म को पनपने का बहुत कुछ आश्रय मिला है । जैन साहित्य में ग्वालियरका महत्वपूर्ण स्थान रहा है । उस समय तो वह एक विद्याका केन्द्र ही बना हुआ था, वहां की मूर्तिकला और पुरातत्वकी कलापूर्ण सामग्री आज भी दर्शकोंके चित्तको अपनी ओर आकर्षित करती हैं ' उसके समवलोकनम ग्वालियरकी महत्ताका सहज ही भान हो जाता है | कविवरने स्वयं सम्यक्त्व-गुण-निधान नामक ग्रन्थ की आद्य प्रशस्ति में ग्वालियरका वर्णन करते हुए वहांके तत्कालीन श्रावकोंकी चर्याका जो उल्लेख किया है उसे बतौर उदाहरण के नीचे दिया जाता है: तहुरजिन महायण बहुधा, ३८२ गुरु-देव-सत्थ विषयं विश्र । जांद वियक्खण मणुव सव्व, धम्मागुरत्त वर गलिय-गन् । जहि सत्त वसव-चुय साधयाई, शिवसहिं पालिय दो-दह-वबाई | सम्म सण - मणिभूसियंग, थ्विोभामिय पचयण सयंग । दारापे-ि freeली, जिण महिम महुच्छव खिरुपवीण । Party अप्पारुह पवित्त, जिण सुत्त रसायण सवण तित्त । पंचम दुस्पम् श्रइ-विसमु- कालु, धम्मभाणे [ वर्ष १० मिल वि तुरिङ पविहिउ रमालु । जे कालु लिंति, वयारमंतु श्रहणि गुणति । संसार-महाव-वडण-भीय, स्सिक पमुह गुण वराणणीय । जहि पारायण दिढ सील जत्त, वर वर दाणे पेसिय गिरु तिविह पत्त । तिय मिमेण लच्छि अवयरिय एस्थ गयव ण दीसह का वि तेत्थ । करण्याहरण एहि, मंडित सोहि मणि जडेहि । जिह्वण- पृथ उच्छाह चित्त, भव-त-भोयहि णिच्च जि विरन्त । गरु देव पाप पंयाहि लोगा, सम्म सणपाल पवीण | पर पुरिस सबंधव सरिम जांहि, ग्रह - खिसु पडिवरिणय श्यि मरणादि । कि वर्णामि तहिउ पुरिम हारि जहि डिंभ वि सग वमरणा बहारि । पहिं पर्वाहि पोसहु कुति, घरि घरि चच्चरि जिण गुण थुगांति । साहम्मिय वत्थू कि वहति, पर अवगुण भर्पाई गुण कहति । एरिसु सावयहिं चिहियमाणु, मीस रजिण हरि बदमाशु | fa जा रद्दधू कवि गुणालु, सुकक्ति रसायण - रिसालु ||५|| इन पद्यों पर दृष्टि डालने से उस समयक ग्वा लियरकी स्थितिका सहज ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है । उस समय लोग कितने धार्मिक सच्चरित्र और
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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