SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण 10] মাৰি ধু ३८. ही ग्रन्थ रहा हो, पर उक्त ग्रन्थ 'सिंहसेनारिय' जिन चरिउ'की अन्तिम प्रशस्तिमें मुनि यश:का नहीं किन्तु रइधू कविकृत ही है। मम्मइ जिन कीर्तिक तीन शिष्योंका उल्लेख किया गया है चरिउकी प्रशस्तिमें रइधुने सिंहसेन नामक एक खेमचन्द, हरिषेण और ब्रह्म पाल्ह (ब्रह्म श्रीपाल)। मनिका और भी उल्लेख किया है और उन्हें गुरु उनमे उल्लिम्बित मुनि ब्रह्मपाल हो ब्रह्मश्रीपाल जान भी बतलाया है और उन्होंक वचनसे सम्मइ जिन पड़ते है। अबतक सभी विद्वानोंकी यह मान्यता चरिउकी रचना की गई है। घता थी कि कविवर रइधू भट्टारक यशःकीर्तिके शिष्य "तं याणि वि गृरुणा गच्छहु गुरुणाइ सिंहसण मुणे । थे किन्तु इस समुल्लेख परसे वे यश-कीतिक न परुप ठिउ पडिउ सील अस्वं डिउ भणिउ तेणतंर्ताम्म खणि५ होकर प्रशिष्य जान पड़ते है। कविवरन अपने ग्रन्थोंमें भट्टारक यशःकीति गुरु परम्परा का खुला यशोगान किया है और मेवेश्वर चरितकी कविवरन अपने ग्रथांमे अपने गुरुका काई प्रशस्तिमें तो उन्होंने भटारक यशःकीतिके प्रसाद परिचय नहीं दिया है और न उनका स्मरण ही म विचक्षण होने का भी उल्लेख किया है। सम्मत्त किया है। हां, उनके ग्रंथोंमे तात्कालिक कुछ भट्टा गुण णिहाण ग्रन्थमे मुनि यशःकोर्तिको तपस्वी रकों के नाम अवश्य पाये जाते है जिनका उन्होंन । भव्यरूपी कमलोंको संबोधन करनेवाला सूर्य, और श्रादर के माथ उल्लेख किया है । पद्मपुराण की प्रवचन का व्याख्याता भी बतलाया है और उन्ही. आद्य प्रशस्तिक चतुर्थ कडवक की निम्न पंक्तियाम, प्रसादस अपनेको काव्य करने वाला और उक्त ग्रन्थके निर्माणमे प्रेरक माहू हरसी द्वारा जा पापमल का नाशक बतलाया है। जैसाकि उसके कवि र इधूक प्रति कहे गए है उनमें रइधको 'श्री निम्न पद्योंसे स्पष्ट है:पाल ब्रह्म आचायक शिष्य रूपसं संबोधित किया गया है। साथ ही साहू सोढलके निमित्त 'नाम __ तह पुणु सतष तावातवियंगो, ___ भग्व-कमल-स'बाह-पयंगो। पुराण' करच जान और अपन लिए रामचरितक रिच्चो भासिय पवयण अगो, कहनकी प्रेरणा भी की गई है जिससे स्पष्ट मालूम चंदिवि सिरि जसकिति असगो। होता है कि रइधृक गुरु ब्रह्म श्रीपाल थे, जो उस तासु पसाए कम्नु पयासमि, ममय आचायके उपपदस विर्भापत थ व वाक्य धासि वि हिउ कलिमल णिण्णामि ॥ इस प्रकार है: इसके सिवाय यशो चरित्रमें भट्टारक कमलभी रहधू पडिउ गुण णिहाणु, पामावह वर घसहं पहाण । कीर्तिका भी गुरु नामसे स्मरण किया है। सिरिपाल बम थायरिय सीम, महु बयणु सुणहि भो बुह गिरीस। निवास स्थान और समकालीन राजा सोढल णिमित्त महु प्राण, घिरयउ उहं कह जण कविवर रइधू कहाँके निवासी थे, और वह बिहिय माणु। , मुणि जसकित्ति हु सिस्स गुणायरु, तं राम चरित धि महु भणेहि, लक्षण समेड इय मणि खेमचंदु हरिसेणु तघायरु । मुणेहि । मणि पाल्ह बंभुए मदहु, प्रस्तुत ब्रह्म श्रीपाल कवि रइधू के गुरु जान तिरिण घि पाषहु भारु णिकंदह । पड़ते है, जो भट्टारक यशःकीतिके शिष्य थे। सम्माइ -सम्म चरिड प्रशस्ति,
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy