________________
हिन्दी जैन साहित्यके कुछ अज्ञात कवि
(ले०-ज्योतिप्रसाद जैन, एम० ए० एल एन० बी०, लखनऊ) प्रस्तुत शीर्षकके अन्तर्गत हिन्दीके कुछ ऐसे १० रविवारकी लिखी हुई है किन्तु उसमें लिपि सं० प्राचीन जैन सहित्यकारोंका परिचय करना इष्ट है मिटगया है पर इन्ही जुगीमलकृत अन्य दोप्रन्थोंकी जिनका कि कोई उल्लेख न पं. नाथूगम जी प्रेमीके प्रतिलिपि में एकका संवत १९०६ है और दूसरीका हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास में हुआ है और १६१४ । अतः इस प्रतिनिपिका संवत भी लगभग न बा. कामताप्रसादजीक हिन्दी जैनसाहित्यका यही होना चाहिये। इस प्रन्धकी एक प्रतिलिपि सं. संक्षिप्त इतिहासमे । तथा जहाँ तक मझे ज्ञान है १६१५ की लिखी हुई पंचायती मंदिर देहली के प्रन्थ प्रायः अन्य में भी अभी तक उनपर कोई प्रकाश भंडारमें भी है (अनेकान्त व०४, कि० १०पृ०५६५ नहीं पड़ पाया है। हिन्दी साहित्य के माधुनिक पथके अन्तमें दी हुई प्रशस्तिमें कविने अपना इतिहासकारोंके मतानुसार सं० ११२० (सन १८६३ परिचय इस प्रकार दिया है-हाडा राजपूतोंकी ई.) के पूर्वका काल हिन्दीका प्राचीन युग माना राजधानी दी नगरमें उस समय राजा बुधसिंहका जाता है और उसके बादका काल आधुनिक युग राज्य था। उस भव्य नगरमें मलसंघ सरस्वती कहलाता है। अतएव प्राचीन सहित्यकारोंसे अभि गच्छ की कुन्दकुन्द थाम्नाय में भट्रारक जगतकीति प्राय सं० १९२० के पर्व होने वाले कवियों और पट्टामीन थे। नगरमें पंडित धादिका, श्रावक श्राविका लेखकों आदिसे है।
आदिका बड़ा ममूह था । वहाँके पार्श्वनाथ
चैत्यालय में पं०तुलसीदास नित्यप्रति शास्त्र प्रवचन १. कवि दौलतराम पाटनी
करते थे और सबही साधर्मियों को निरन्तर धर्ममें ये दौलतराम अनेक गदा वनिकाओंके रचयिता रद करते रहते थे। उस नगरमें एक माह जयपुर (बसवा)निवासी पं० दौलतराम काशलीवाल भामाघर हो गये थे जिनके पुत्र धनपाल थे। (सं० १७७७-१८२६) तथा छहढाला और अनेक धनपालके पुत्र चतुर्भुन थे। इन चतुर्भुज के ही पुत्र अध्यात्मरस-पूरित पद विनतियों के रचयिता कवि दौलतराम थे । कविने अपने दो पुत्रों-हरदैसासनो निवासो पल्लीवाल जातीय त्यागी बाबा राम और सदारामका भी नामोल्लेख किया है। दौलतराम दोनों ही विद्वानों से भिन्न और पूर्ववर्ती इनकी जाति खंडेलवाल थी और गोत्र पाटनी था। विद्वान थे । इन्होंने अपने विधान-रासोको बृदी गढ़में उस समय अनेक धमात्मा धर्मचर्चा रचना संवत .७६७ आमौज शुक्ल दशमी वार करते थे, अच्छी शैली थी जिसमें कवि और उनके गुरुवार के दिन बेदी नगरमें की थी। यह रचना पत्र भी अच्छा भाग लेते थे।" इन दौलतरा अठाई रासा छदाम है और इसकी टेक है- कोई अन्य प्रन्थभी रचा है या नहीं. यह बात नहीं. "तो वरन करो भवि जैनका" कुल छन्द २८१ हैं दीके हाहावीर बुद्धसिंह रावल भनिरुद्धसिंह
और लेबन संख्या ८५ है। लखनऊ चौकक के पत्र थे और सन् १७०६ (सं० १७६३) में गदी पंचायती मदिरक भडारकी प्रति नवाबगंज निवासी पर बैठे थे। औरङ्गजबकी मृत्युके बाद सन् १.०८ जुग्गीमल श्रावक पल्लीवाल द्वारा भादों बदि में लड़े जाने वाले जाजम उके उत्तराधिकार युद्धमे