SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 409
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७४ अनेकान्त बुद्ध सिंहने और बके ज्येष्ठ पुत्र मुअज्जम ( बहादुरशाह) का पक्ष लिया और उस युद्ध में बहाहुरशाहकी विजय प्राप्ति तथा दिल्ली सिंहासन पर अधिकार करनेमें हाड़ा वीर बुद्धसिंह ही प्रधान कारण हुए थे, अत एव नये सम्राटने इन्हें 'राम्रो राजा' की उपाधि से विभूषित किया। बहादुरशाह की मृत्यु के पश्चात फरुखसियर के राज्यकाल में मुगल के शासन सूत्र के प्रधान संचालक सैयद भाई हो गये। मुगल सम्राट के ये मन्त्रीद्वय बुद्धसिंहसे रुष्ट हो गये. उधर जयपुर नरेश सवाई जयसिंह से भी उनका वैमनस्य हो गया । अस्तु. बूंदीपर कराया आक्रमण हुआ और सन् १७२३ (मं० १७८०) में बुद्ध सिंह हाथसे उनका राज्य और राजधानी निकल गये । बुद्धसिंह सन् १७३८ तक जीवत रहे और बूंदी को पुनः प्राप्त करनेके लिये उन्होंने अनेक बार प्रयत्न किये किन्तु सफल नहीं हो सके। उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके पुत्र उम्मेदसिंहका फिर से बूंदी पर अधिकार हुआ । कवि काशीदास रचित - ''भाषा सम्यक्त्व कौमुदी' चौपाई बंधकी एक प्रति लखनऊ चौक, चूड़ीवाली गली के दि० जैन पंचायती मंदिर के भंडार में है । इसकी पत्र संख्या ११८ और श्लोक संख्या ४३३६ है, रचनाकाल संवत् १७-२ और लिपि संवत् १६०४ है । ग्रन्थारंभ में 'श्रीगणे शायनमः' पदलिपिकार भवानीप्रसाद त्रिपाठोकीकृति प्रतीत होती है । ग्रन्थका आरम्भ इसप्रकार होता है:"श्री गणेशायनमः, श्री जिनाय नमः । अथ भाषासम्यक्त कौमुदी लिप्यते ॐकार बिंद संयुक्ता नित्यं धायंति योगिना वर्द्धमान जिन बंदों पांय, पितासिद्धारथ त्रिशला माय । कनक शरीर शोभै प्रभुणों, सिंघलछनकर सोभाव ।। प्रन्थ के मध्यभाग स रचना का उदाहरण इस प्रकार है- 'जंबूदीप है अति अभिराम, " [ वर्ष १० विस्तर योजन लाष सुठाम । पट पर्वत तामहि अति चंग, रया खचित अति श्रंग उतंग | तामहि भरत घेत अतिसार, षट बंड मंडित है अतिसार । गंगा सागर बह दुकूल, विजे नामि करि विहज्यो मूल 1 तामह मगध देश विसतार, पुण्य तीरथ करि सोधै सार । गंग यमन करि सोभित सोइ, सब विधि पावन कोने नोइ ।” ग्रन्थ के अन्त में कवि ने जो प्रशस्ति दी है उसमें अपar at saar नामोल्लेख ही किया है किन्तु अपने आश्रयदाता और प्रेरक जगतरामजी का पर्याप्त परिचय दे दिया है, यथा गुरु गुण सील प्रसाद जान, भई कथा यह सब परवान । जगतराय हित कविता करी, रवि ज्यों भूमंडल तिगे । अग्रवाल है उत्तम ग्याति, सिंघल गोत जगत विष्यात माईदाल मही में जानिये, तातिय कमला सम मानिये । तांत अति सुन्दर वरवीर, उपजे दाऊ गुण सायर धीर । दाता भुगता दीन दयाल, श्री जिनधर्म सदा प्रतिपाल । रामचंद नंदलाल प्रवीन, सब गुण ग्वायक समकित लीन । सद्दिर गुद्दाणा वासी जोइ, पाणीपंथ आई सोइ | रामचंद सुत जगत अनूप, जगतराय गुण ग्यायक भूप । तिन यह कथा ज्ञान के काज, वरण आठौं ममकित साज |
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy