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चेकोस्लोकोकिया
(ले० बा० माईदयाल जैन बी. ए., बी. टो.)
मध्य यरुपमें चैकोस्लोवेकिया एक छोटा सा ओंमें हो न रहनी चाहिये, बल्कि उनके द्वाग माधास्वतंत्र राज्य है जिसकी जनसंख्या कोई एक करोड़. रण जनतामे सौन्दर्य-प्रम और सुरुचि फैलाई जानी के लगभग है। भारतवर्ष उम देशके राजदूता. चाहिये। वासकी तरफसे क्वीन्सवे, नई दिल्लीमे एक
इम सांग्कृतिक समारोहको देखनेकी हमारी मांस्कृतिक समारोह २६ फरवरी सन् १९५० से बडी इच्छा थी और समारोहक अंतिदिन ५ माचे ५ मार्च तक हुआ। इसका उद्घाटन भारतकी को सायंकाल उस देखने गये। वहां दो बड़े कमरों म्वास्थ्यमंत्रिणी माननीया श्रीमती अमृतकौरने किया। में कोह पौन चारमौक लग-मग चित्र, फोटो, पुस्तके आपने अपने संक्षिप्त पर सारगभित व्याख्यानम मितिपत्र, पोस्टर, पत्रिकाए', खिलौने, कांच और कहा कि हम भारत-वासियोंको चेकोस्लोवेकियाकी सस्कृतिसे बहुत कुछ सीखना है। यद्यपि चेको
चीनीकी वस्तुए और बढ़िया कपड़े के नमूने रखे
। चित्रांमे बड़े बड़े कला-विशारदाकी कृतियास स्लोवेकिया एक छोटासा तरुण देश है, तो भी वहां- लेकर स्कूलांक विद्याथियों तककी चित्रकारोक के निवासो यूरूपके अत्यन्त सभ्य और संस्कृत
_ नमूने थे। पुस्तकोंमें भगवद्गीता, शकतला, वेदों जातियोंमेसे है। आपने आगे कहा कि चेकोस्लोव
की ऋचाओं और स्व० रवीन्द्रनाथ की गीतांजलिकिया और भारतको संस्कृतियों और कलाओंमे
के चेक भाषामे अनुवाद उल्लेग्वनीय थे। बहुत समानता है, और संसारमें बहुत कम ऐसे देश है जहां भारतीय विचार-धाराओं और साहित्य समारोहकी एक महिला प्रबधक श्रीमती पकोसीका इतना अध्ययन होता है, जितना कि चेकोस्लोवे- म बात चीत करने पर चकास्लोवकियाक बारेमें कियामें । श्रीमती अमृतकौरने कहा कि यद्धसं बहुत सो दिलचस्प बातें मालूम हुई। उन्होंने बताया पीड़ित संसारमें संकृति हो ऐसी वस्तु है, जो लोगों कि चेकास्लावकियामें लिखनपढ़नकी आयुका का आपसमें मिलाने, उनमें सद्भावना और प्रेम पैदा कोई भी पुरुष स्त्री, लड़का लड़की अशिक्षित नहीं है करने. और मेल-जोल बढ़ाने का काम करती है। और वहां प्राइमरी शिक्षा ही नहीं कालेज तककी शिक्षा
चेकोस्लोवेकिया के राजदूतने अतिथियों मुफ्त है। उन्होंने यह बात भी बताई कि उनके देशस्वागत करते हुए कहा कि भारतीय चित्रों और की राजधानीमें नौ ऐसे विद्यालय हैं जहां पर पूर्वी साहित्य में चेक लोगों की बड़ी रुचि रहती है और भाषाओंकी शिक्षाका प्रबन्ध है और वहां संस्कृत, सैकड़ों चक विद्यार्थी कोई न कोई भारतीय भाषा बंगला, हिन्दी आदि का अच्छा प्रबन्ध है। चेकोस्लोहर वर्ष पढ़ते हैं और चेकोस्लोवेकिया की राजधानी वेकियाके गांव साफ सुथरे होते हैं और वहांकी प्रेग में कोई ही ऐसा सप्ताह बीतता होगा जब कि गाये खूब दूध देती है। वहां जनताका राज है। भारतके सम्बन्धमें कोई व्याख्यान न होता हो। आपने बड़ी शिष्टता और सौजन्यके साथ समारोहआपने इस बात पर जोर दिया कि ललित वलाओं
में अपने देश और चेक जातिक बार में बहुत सी का जन साधारण में प्रचार करना चाहिये। आपने बात बताई। सचमुच हम भारतवमी इस देशसे बताया कि ललित कलाएं चंद महलों व मदनशाला- बहुत कछ सीख सकते हैं।