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सोनागिरकी वर्तमान भट्टारक गद्दीका इतिहास
(ले. श्री बालचन्द्र जैन, एम० ए०)
भट्टारक श्री विश्वभूषण भट्टारक श्री सुरेन्द्रभूपण भट्टारक श्री लक्ष्मीभूषण (इनके पदारूढ़ होनेका समय सं. १६३० भट्टारक श्री मुनोन्द्रभूषण
भधारक श्री मुनोन्द्रभूषणके तीन शिष्य थे। और प० भगवानदास । पं०त्रजलाल, प. जिनसागर और पं० देवसागर। भट्टारक श्री सरेन्द्रभूषणके बाद भट्टारक श्रो इनमेंसे पं० त्रजलालजी दीक्षित होकर आचार्य चन्दभषणजी गहीके अधिकारी बनाए गए । विजयकीतिके नामसे ख्यात हुए। उनके दो उपर उल्लिखित आचार्य विजयकीर्तिजी के शिष्य शिष्य थे। पं० भागीरथ और पं० परसुख । उन भागीरथजोके शिष्य प० हीरानंदजी हैं। इनके दोनोंके भी क्रमशः प. होरानन्द ओर ५० मेघराज शिष्य हए सात ५० प्यारेलाल, पं०छोटेलाल, पं. इस प्रकार दो शिष्य हुए।
लक्ष्मणदास, प. चतुर्भुज, पं. मदनमोहन, पं. महारक श्री मुनीन्द्र भूषण के दूसरे शिष्य प० सीताराम और प० परमानन्द । इनमेसे प० परमाजिननागर उनके पीछे गद्दोंपर बैठ और भट्ठारक श्री नन्द तथा प. प्यारेलाल श्राज्ञाभंग तथा अन्य जिनेन्द्रभूषणके नाम प्रसिद्ध हुए । तीसरे शिष्य अपराधोंके कारण पृथक किए गये। और 40 प'. देवसागर भट्टारक श्री जिनेन्द्रभूषणके चतुभुजजीको भट्टारक चारुचन्द्रभूषणके नामसे के बाद भट्टारक श्रो दवन्द्रभूपणके नामसे गद्दोपर गद्दोपर बिठाया गया। उनके शिष्य हुए तीन, पं० बैठे। उनके छह शिष्य थे, प० निहालचन्द पं० रूप विद्याधर ५० हरपेण और पं० भागचन्द्र । इनमें चन्द्र.40 नैनसम्ब, १० सरूपचन्द, पं० काकचन्द में पहरपेण भट्रारक हरेन्द्रभूषण के नामसे गद्दी
और पदवचन्द । इनमेंसे प नैनसख गह पर पाबैठ। उनके मात शिष्य थे। ५० नन्दकिशोर, बैठे और भट्टारक श्री नरेन्द्रभूषण के नाम से प्रसिद्ध मोतीलाल प० सरजमल, पं0 जानकीप्रसाद, हए । इन भट्टारक श्री नरेन्द्रभूषणक तीन शिष्य थे, चिरौंजालाल, प. चन्द्रदत्त और प० श्राछे१५० जवारजी, प. २ मोतीलालजी, और लाल । ५० अालाल तो श्राज्ञाभंगके दोषमे पहले मूलचन्द्रजो। ५ मृलचन्द्रजीके भी दो शिष्य थे, ही निकालदिए गए थे और 4 जानकीप्रसाद संवत् 4लालचन्द्र और प० देवचन्द्र । ५० मोतीलाल १८ मे भट्रारक श्री जिनेन्द्रभूषणके नाममे गद्दी जी नाबालिग थे अतः गद्दी कुछ ममय तक सुनो पर अभिषिक्त हुए। पर उनका स्वर्गचास होजाने रही। पीछे पछांहके ब्रह्मचारी खुशालचन्दको के कारण हरेन्द्रभूषणजी के अन्य शिष्य प. भट्टारक श्रीसरेन्द्रभूषण के नामसे उस गद्दीपर चन्द्रदत्त मंवत २००१ में भट्टारक चन्द्रभषणके अभिषिक्त किया गया। उनके तीन शिष्य हुए नामसे गद्दीपर बिठाये गये और वे आज भी उक्त प मल्लजी. प. पूजाजी और प० बालचन्द्रजी। गहीके अधिकारी हैं। इसमेंसे बालचन्द्रजोके दो शिष्य हुए पं० मोहनलाल