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________________ ३६४ अनेकान्त [वर्ष १० - चन्द्रगप्त मौर्यका जैन होना अब सभी विद्वानों उपयुक्त कारण उसका राजपाट त्याग देना ही प्रतीत ने मान लिया है। बहुत पहले ही डाक्टर ल्यमन होता है। और डाक्टर हानले श्रुतकेवली भद्रबाहकी दक्षिण बिन्दमार अमित्रघान यात्रा स्वीकार कर चुके थे। टामस साहब भी चन्द्रगप्तको जैन कहनेवाले लेखोंके प्रमाणोंको चन्द्रगुप्तने जब राजपाट छोड़कर कणोटक बहुत प्राचीन और सन्देहरहित मान चके थे। प्रवास किया तो ई०५० में रमका बेटा निन्दस्वर्गीय डाक्टर काशीप्रसाद जायसवालने लिखा सार पाटलिपुत्रके सिंहासन पर बैठा । इमके जीवन है कि मेरे अध्ययनने मुझे जैन प्रन्थोंकी ऐतिहासिक की महत्वपूण घटनाएँ कुछ भी बात नहीं। चन्द्रगुप्त वार्ताओंका आदर करनेको बाध्य किया है। कोई जैसे प्रतापी बापका बेटा और अशोक जैसे धर्मकारण नहीं कि हम जैनियोंके इस कथनको कि विजयो बेटेका बाप होनेके कारण इस संबंधी इतिहासको लोग भूल बैठे। तारानाथके इतिहासमे चन्द्रगुप्त अपने जीवनके अन्तिम भागमें राजपाट त्याग जिनदीक्षा ले मुनिवत्तिसे मृत्युको प्राप्त हुए, . फिर भी कुछ सूचनाए मिल हो जानी हैं। उमके अनुसार चाणक्य कुछ समय तक इसका भी अमात्य न मानें ।' श्रवणवेल्गोलाके लेखोंका सम्पादन रहा था। यूनानी लेखकोंने जिस नामसे इसका करनेवाले राइस साहबका भी यही मत था । ५ व्ही उल्लेख किया है वह अमित्रघातका अपभ्रंश प्रतीत स्मिथने भी अपनी पुस्तकके छिले संस्करण मे होता है। इसके दरवारमें यूनानी दूत डेइमेकम और चन्द्रगप्तको जैनधर्मावलम्बी मानलिया है। उसने मिस्रक राजा टालेमी फिलाडेल्फसका दूत डामोनिसस लिखा है 'जैनियोंने सदैव उक्त मौर्य सम्राटको रहते थे। एक किंवदन्ती हे कि बिन्दुसारने सीरिया बिम्बसारके समान जैनधर्मावलम्बी माना है और के राजा एन्टिओकस सोटरको लिखाकि आप मुझे उनके इस विश्वासको झूठा कहने के लिये कोई 1 कुछ अजीरें, अंगूरी शराब और एक दानिक उपयुक्त कारण नहीं है। इसमे जरा भी संदेह नहीं खरीदकर भेज दें अन्तिोकने शराब और अजीर कि शैशुनाग, नन्द और मौर्य राजवंशोक समय में तो भज दी पर दार्शनिक भेजनेमें असमर्थता प्रकट जैनधर्म मगध प्रान्तमें बहुत जोर पर था। ....... ...... करते हुये संदेश भेजा कि यनानी कानून दार्शनिक उसके (चन्द्रगप्त) राज्यको त्याग करने व जैविधि नीति नीता। के अनुसार मल्लेखना द्वारा मरण करनेकी बात दिव्यावदानमे इसके राजकालमें दो वार तक्ष. सहज ही विश्वसनीय होजाती है।........ शिलाके विद्रोही होनेका उल्लेख मिलता है। पहली चन्द्रगुप्त मिहासनारूढ़ होने के समय नरूण अवस्था बार कुमार अशोक विद्रोह शान्त करनेके लिये भेजा में ही था और चौबीम बरमके पश्चात् भी उसकी गया। तक्षशिलाके पोरोंने साढ़े तीन योजन आगे अवस्था पचामसे नीचे ही होगी। अतः (राजनैतिक आकर उसका स्वागत किया और कहा “न हम इतिहास से) इतनो जल्द उमकं लुप्त हो जानेका कुमारके विरुद्ध हैं और न राजा विन्दुसारक पर १. वियना पोरियटल जरनल जिल्द पृष्ट ३८२। दुष्ट अमात्य हमारा परिभव करते हैं।" २.६०ए० जिल्द २१ पृष्ट ५६-६० । ___ बिन्दुसारके धर्मके बारेमें कोई सीधा उल्लेख ३. जैनिज्म प्रार अर्ली फेथ भाफ अशोक : पृ० २३ । नहीं मिलता। पर अन्य उल्लेखों और प्रमाणोंके ५. ज. वि. मोरिसो० जिल्द ३ । .. आक्सफोर्ड हिस्ट्रो आफ इंडिया तृतीयसंस्करण पृष्ट ५. ए.क. जिल्द २. प्रस्तावना ।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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