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________________ ३६५ किरण ] मौर्य साम्राज्यका संक्षिप्त इतिहास - - आधार पर उसका जैनधमावलम्बी होना सिद्ध चार वरस बाद स्थान-स्थान पर उसने जो धर्महोता है।' बिन्दुसारका राज्यकाल २५ बरषों का लिपियां लिग्ववाई उनपर जैनसिद्धान्तोंकी गहरी था। कहीं कही इम २८ बरस तक राजा रहनेके छाप है। शिलाफलकों और शिलास्तंभों पर धर्मभी उल्लेख मिलत है। लिपियां और आदेश खुदवानेका इमका विचार प्रियदर्शी अशोक मौलिक था यद्यपि इसस पूर्व फारसके दाराने भी चट्टानों पर श्राज्ञाए खुदवाइ थीं।' अशोक पिताके राज्यकालमें ही अवन्ती और तक्षशिलाका शासक ग्रह चुका था। उसके बाद उनसे ऐमा विदित होता है कि स्वयं बौद्ध होते ई०पू०७३ में वह सम्राज्य का अधिकारी हआ। हुए भी अशोक अपनी प्रजाका जिस धर्मके ग्रहण राज्यप्रापिके चार वष पाछे उसका अभिषेक हआ। करनेकी सलाह देता था वह बौद्धधर्म नहीं बल्कि सभी धर्मों का सारस्वरूप एक नया ही धर्म था। विजय को । कलिग उस समयका प्रबल और शक्ति- अशाकके धमके तत्त्व पाप न करना, बहुत कल्याण शाला राज्य था। उसने डटकर अशाकका मुकाबला करना, दया, दान, सत्य, शौच, प्राणियोंका वध न किया। इस युद्ध में एक लाख सैनिक मर या आहत करना, जन्तुओंको व्यर्थ हिंसा न करना, झाति, हुये और डेढ़ लाख कैद किये गये। युद्धक पीछे फैलने ब्राह्मण और श्रमणोंके प्रति उचित व्यवहार करना, वाली बीमारियोंसे इससे भी कई गुने व्यक्ति मरे। मातापिताकी सेवा सुश्रषा करना, गुरुजनोंकी पूजा इससे दुखो हो अशोकन कलिगविजयके अनंतरही करना, प्राणियों के प्रति संयम पूर्वक बरताव करना, अपनी नीति मर्वथा बदलदी। यद्धमे हुये प्राणिवध- श्रमणों और ब्राह्मणोंको दान देना ये सभी भारतीय से उमकी आत्मा कांप उठी और अब वह उसके धर्मोक निचोड़ हे आचार्य नरेन्द्रदवने लिखा है कि सहस्रांश विनाशसे भी दुखी हो उठता था। महा- अशोकका धर्म बौद्धधर्म नहीं है, वह प्रायोंकी वंशमे अशोकको अपने हर भाईयोंका हत्यारा कहा समान सम्पत्ति है। ऊँच नीच का भेदभाव अशोक है। लेकिन अपने पांचवें लेखम अशोक अपने न दूर कर दिया था ।' समाज और यज्ञ उसने भाईयोंक सद्भावका जिकर करता है। सभवतः बद कर दिय थे क्योंकि उनमे प्राणियोंकी विहिंसा उसके प्रारंभिक अबौद्ध जीवनको कलुषित चित्रित होती थी। वह सभी जातिक मनुष्योंके प्रति दण्डकरनेके लियेही बौद्धग्रन्थकारोंका यह प्रयत्न है। समता और व्यवहार समताका सिद्धान्त बरतता अशोक जन्मस हो बौद्ध न था। अपने पूर्व १. एताय अथाय इय धंमलिपी लेखापिता किंति चिरं जीवनम वह जैनधमाबलम्बी था। कलिंगविजयके तिस्टेय इति तथा च मे पुत्रा पोताच प्रपोत्राच १. अश्वघोष ने बिन्दुसारके संबंधमें लिखा है-बिन्दुसारो अनुवरतां सर्व लोकहिताय । ब्राह्मणभहो अहोसि स ाह्मणानं ब्राह्मयाजातीयपाषानं ठा लेख । सप्तम स्तंभ लेख च पंडरगपरिभाजकान' (पडरंगपरिभाजक माजीव. रूपनाथ लघु शिलालेख मादिमें भी। कनिगन्यादीनं) निच्चभट्ट पत्यापेसि । २. अशोकके धर्मलेखः भूमिका पृष्ठ । २. अशोक का १३ वां लेख। ३. यि इमाय कालाय जंबुढीपसि अमिसा देवा हस ते ३. वेभातिक भातरो सो हन्त्वा एकनकं सतं । दानि मिसा कटा। सकले जंबुदीपस्मिं एकरज्जं अपापुणि । रूपनाथ लघु शिलालेख । ४. जैनिज्म भार अली फेथ श्राफ अशोक, टामस लिखित। ४. इध समाजो न कतम्याः पहला देख।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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