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________________ हरिजन-मन्दिर प्रवेश के सम्बन्क्में मेरा स्पष्टीकरण [ ले०-- क्ष० श्रीगणेशसाद जी वर्णो, न्यायाचार्य ] <--1 जब से हरजन मन्दिर प्रवेशचचो चली कुछ मे भी परिवर्तन हुआ । एक दिन ऐसा भी था जो लोगोंने अपने स्वभाव या पक्षविशेषकी प्रेरणा से दिनमे दश बार पानी और पांच बार भोजन करते हरिजन मन्दिर प्रवेशकं विधि-निषेधसाधक आन्दो- भी सोच न करते थे वे आज एक बार हो भोजन लनोंको वित-अनुचित प्रोत्साहन दिया। कुछ और जल लेकर सन्तोष करते हैं। कहने का तात्पय लोगों को जिन्हें आगमक अनुकूल किन्तु अपनी यह है कि सामग्रीक अनुकूल प्रतिकूल मिलने पर यथेच्छाके प्रतिकून विचार सुनाइ दिये, उन्होंन पदार्थमे तदनुसार परिणमन होत रहते है। आज कहना आरम्भ किया कि "वर्णीजी हरिजनमन्दिर जिनको हम नीच पतित या घृणित जातिके नामसे प्रवशकं पक्षपाती है," इतना ही नहीं दलविशेष पुकारत उनकी पूर्वअवस्थाको वर्णव्यवस्था प्रारम्भ और पक्षविशेषका आश्रय लेकर अपनी स्वार्थ होनेके समय को सोचिए और आजकी अवस्थासे साधना के लिये, यथा तथा आगम प्रमाण भी उप तुलनात्मक अध्ययन कीजिये, उस अवस्थासे इस स्थित करते हुए मेरे प्रति भी जो कुछ मनमें आया अवस्था तक पहुंचने के कारणोंकी यदि विश्लेषण ऊटपटांग कह डाला, इससे मुझे जरा भी रोप नहीं कियाजाय तो यही सिद्ध होगा कि बहुसंख्यक वर्गकी परन्तु उन सम्भ्रान्त जनों के निराकरण के लिये स्पष्टी तुलना में उन्हें उनके उत्थानमे साधक अनुकूले कारण करण आवश्यक है, यद्यपि इसमें न तो पक्षपातो नहीं मिले, प्रतिकूल परिस्थितियोंन उन्हें बाध्य बननकी इच्छा है न विरोधी बनने की। परन्तु किया, फलतः ६० प्रतिशत हिन्दू जनतामे से २०-२५ आत्माकी प्रबन्न प्रेरणा सदा यही रहती है कि जो प्रतिशत इस जातिको विवश दुश्नि देखनेका दुभाग्य मनमे हो वह वचनांसे कहो, यदि नहीं कह सकत हुआ, उनकी सामाजिक राजनैतिक आर्थिक एवं तब तुमने अबतक धर्मका मर्म ही नहीं समझा, धार्मिक सभी समस्याएं जटिल होती गई, उनकी माया छल, कपट, वाक्प्रपंच आदि वंचकताके दयनीय दशापर सुधारकोंको तरस आया, इन्हीं रूपान्त त्यागपूर्वक जो वृत्ति होगी वही गांवीजोन उनके उद्धारकी सफल योजना सक्रिय की, धार्मिकता भी कहलायेगी । यही कारण है कि इस क्योंकि उनकी समझ में यह अच्छी तरह श्राचुका विषय मे कुछ लिखना आवश्यक प्रतीत हुआ । या कि यदि उनको सहारा न दिया गया तो कितना ही सुनार हो, कितना ही धर्म प्रचार हो, राष्ट्रगीताका यह काला कलंक धुल न सकेगा । वे सदाक लिये हरिजन (जिनके लिये हरिका सहारा हो और सब महारोंके लिये असहाय हों), ही रह जायेंगे । यही कारण था कि हरिजनोंके उद्धारके जिये गांधीजीन अपनी सत्य साधताका उपयोग किया, विश्वके साधु सन्तों से जोरदार शब्दों मे आग्रह किया, धर्म किसा को पैतृक सम्पत्ति नहीं, यह स्पष्ट करते हुए उन्होंन हरिजन और उनका उद्धार अनन्तानन्त आत्माएं हैं परन्तु लक्षण सबके नाना नहीं एक ही ह । भगवान् उमास्वामनि जीवका लक्षण उपयोग कहा है, मंद अवस्था प्रमुख है, अवस्था परिवर्तित होती है एक दिनको बाल की अवस्था परिवर्तित होत होत आज वृद्ध अवस्थाका प्राप्त हो गए हैं यह तो शरीर परिवर्तन हुआ, आत्मा
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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