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अनेकान्त
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हरिजन उद्धार के लिये सब कुछ त्याग दिया, सब नया ही है । घृताकी तो बात ठीक ही है लोग उसे कुछ कार्य किया. दूसरोंको भी ऐसा करने का उपदेश पंक्तिभोजन और सामाजिक कार्यों में सम्मिलित दिया। हमार भागममे गृद्ध पक्षीको व्रती लिम्बा नहीं करते, व मनुष्य नीच जातिमे उत्पन्न होते हैं है, मृत्यु पाकर कल्पवासी देव होना भी लिखा परन्तु यदि वह धमको अंगीकार कर लेता है तो है, यही नहीं किन्तु गमचन्द्रजीके भ्रातृ-मोहको उम सम्मानको दृष्टिम देखा जाता है, उसे प्रामादर करनमें उसका निमित्त होना भी लिखा है। णिक व्यक्ति माना जाता है। यह तो यहांके मनुष्यां
आधुनिक युगमे हरिजनोंका उद्धार स्थिति- की बात है किन्तु जहान कोई उपदेष्टा है और न करण कहा जा सकता है। धर्म भी हमारा पतित मनुष्योंका सद्भाव है उस स्वयं भूग्मण द्वोप और पावन है,यदि हरिजन पतित ही है तो हमारा ममुदमे प्रख्यात तियेच मछलो मगर तथा अन्य विश्वाम है कि जिस जैनधर्मक प्रबल प्रतापसे यम- स्थलचरजीव भी व्रतो होकर स्वर्गके पात्र होजाते हैं, पाल चाण्डाल जैम मदुगतिके पात्र हो गये है उमसे तब कर्मभूमिके मनुष्य बनी होकर यदि जैनधर्म इन हरिजनोंका उद्धार हो जाना कोई कठिन कार्य पालें तब आप क्या रोक सकत हैं ? आप हिन्द नहीं है।
न बनिये यह कौन कहता है ? परन्तु हिन्दू जो उच्च
कुलवाले है वे यदि मुनि बन जावें तब आपको क्या वैश्य कौन, शूद्र कौन ?
आपत्ति है ? हिन्दु शब्द का अर्थ मरी समझमे धर्मजननशन सम्पादकने मरं लेखपर शूद्रांक म सम्बन्ध नहीं रखता जैसे भारतका रहने वाला विषयमे बहुत कुछ लिम्बा है, आगम प्रमाण भी भारतीय कहलाता है इसी तरह देशविशेषकी अपेक्षा दिए है, प्रागमकी बातको तो मैं सादर स्वीकार यह नाम यहा प्रतीत होता है। जन्ममे मनुष्य एक करता हूं; परन्तु आगमका अर्थ जा आप लगावें सदृश उत्पन्न होते है किन्तु जिनको जैसा मम्बन्ध वही ठीक है, यह कैसं कहा जा सकता है। श्री मिला उमी तरह उनका परिजन होजाता है। भगवान १०८ कुन्दकुन्द स्वामीने तो यहा तक लिखा है। आदिनाथके समय तीन वर्ण थे, भरतने ब्राह्मण तं एयवहा दाएहं अप्पणा सविडवण ।
वणकी स्थापना को यह आदिपुराणसे विदित होना जदि दाएज्ज पमाणं चुकिज्ज इलं ण घेत्तन्वं ॥ है। इससे सिद्ध है कि इन तीन वर्णमेसे ही ब्राह्मगा
उस एकत्वविभक्त आत्माको मै आत्माक हए, मलम तीन वर्ण कहां सेआए, विशेष ऊहापोह निज-विभव द्वारा दिग्वलाता हूँ, जा मै दिखलाऊ से न तो आपही अपनको वैश्य सिद्ध कर सकते तो उसे प्रमाण स्वीकार करना और जो कहीं पर है और न शूद्र कौन थे यह निर्णय ही आप दे चूक-भूल-जाऊ ता छल नहीं ग्रहण करना। सकते हैं। आगममे लिम्बा है जो अस्पशे शूदम स्पश हो
शूद्रांके प्रति कृतज्ञ बनिए जावे तब स्नान करना चाहिये, अस्पर्श क्या अस्पश जैनदर्शन सम्पादक ने आगे लिखा है कि जातिमें पैदा होनेसेही होजाता है। तब तीन वर्षों में- आचार्य महाराज दयाल हैं, तबक्या वह शुद्र उनकी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वश्यमे-पैदा होनेसे मभीको दयाके पात्र नहीं हैं। लोगअपनी त्रुटिको नहीं देखते उत्तम होजाना चाहिये ! परन्तु देखा यह जाता है लोगांका जो उपकार शूद्रोंस होता है अन्यसे नहीं कि यदि उत्तम जातिवाला निंध काम करता है होता, यदि वे एक दिनको भी कूड़ा-घर शौचगृह तब चाण्डाल गिना जाता है, उससे लोग घृणा आदि स्वच्छकरना बन्द करदें तबपता लग जावेगा। करते है। गान्धीजीके हत्यारे गौड़सका उदाहरण परन्तु उनके साथ आप जो व्यवहार करते है यदि