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अनेकान्त
[वर्ष १०
श्रावकका मुख्य कर्तव्य है । आगमका अध्यन करना के सामने चूहा डरकर रह गया । उसने समझा यही महोपकारी है। यदि आगमके ज्ञाता न हों तो आपकी बलवान् है इसे पूजना चाहिये । एक दिन कुत्ता सभाओं और मन्दिरोंकी शोभा कैसे होमकेगी। प्राया। उसके सामने बिलाव डर गया। अब वह कुत्तेउन पत्थरके खम्भोंसे म.न्दरकी शोभा नहीं है, को पूजने लगा। परदेशसे कुत्ते को साथ ले आया। ज्ञानवानोंसे मन्दिरकी शोभा है। लोग कहते हैं कि एक दिन कुत्ता चौकामें चला गया। स्त्रीने उसके इन विद्यालयोंमें हमारा लाखों रुपया व्यर्थ चला शिरमें वेलन जमा दिया । वह कई-कई करता हुआ गया, कुछ भी लाभ नहीं हुछा। पर मैं कहता हूँ कि भागा । पुरुषने सोचा यह स्त्री कुत्तेसे बड़ी है इसे ही तुम्हारे (सागर) विद्यालयसे ये तीन विद्वान (प० दया- पूजना चाहिये । अब वह उसे पूजने लगा। एक दिन चन्दजी, पन्नालालजी, माणकचन्दजी) तैयार होगये तो स्त्रीने दालमें नमक अधिक डाल दिया जिससे उस तुम्हारा लाखोंका खर्च सफल होगया। तुम्हीं सोचो पुरुषने उसके शिरमें एक चांटा मार दिया। वह रोने ज्ञानके बिना क्या शोभा ?
लगी। पुरुषने समझा अरे इससे बलवान तो मैं ही हूँ। देवकी पूजाका अभिप्राय यह नहीं कि उन्हींको मुझे स्वयं अपने आपकी पूजा करना चाहिये । मो हमेशा पूजते रहो। अरे ! वह तो तुम्हारा रूप है। भैया ! कल्याण तभी होगा जब आप अपनी पूजा वैसा तुम्हे बनना है। उपादान तो तुम्ही हो। करने लगेंगे, लेकिन जब तक वह दशा प्राप्त नहीं प्रयत्न तो तुम्हींको करना है। श्रीजिनेन्द्र देव निमित्त- हुई है तब तक देव आदिको पूजना ही है। मात्र है। आपका बच्चा पढ़ गया, पंडितजीने पढ़ा कुदेव, कुगुरु और कुधर्मकी सेवा करना सो दिया । क्षयोपशम बच्चेकी आत्मा में था। प्रयत्न अधर्म है । जो स्वयं रागी-द्वेषी है, विषय-वासनाओंउसने किया, पर उसका श्रेय पंडितजीको दिया जाता मे आसक्त है उसकी आराधनासे कल्याण होगा, है, यह निमित्तकी प्रधानतासे कथन है। निमित्तकी यह मंभव नहीं । जहाँ धमके नामपर मैं-मैं करते प्रधानतासे ही देवको कल्याणकारी माना जाता है, हुए निबल जन्तुओंके गलेपर छुरी चला दी जाय उपादानकी अपेक्षासे नहीं। यथार्थमे आपकी आत्मा वह क्या धर्म है ? ऐसे धर्मसे क्या किमीका कल्याण ही देव है वही पूज्य है। एक किस्सा है। आप होसकता है ? कल्याण तो उस धर्मसे होगा जिसमें लोगोंने कई बार सुना है। फिर भी कहता हूँ :- प्राणिमात्रका भला चाहा जाता है। एक पंडित थे ____ एक आदमी था। उसकी स्त्री थी। स्त्री बड़ी मन्मथ भट्राचार्य । बोले जैनधर्मने भारतवर्षको वरचतर थी। जब उसका पति परदेश जाने लगा तो वाद कर दिया। इनकी अहिंसाने दुनियाको कायर उसे डर लगा कि यह वहाँ धर्मभ्रष्ट न हो जाय। बना दिया। दूसरा एक समझदार वहीं था । उसने जाते समय उसने उम एक गोलवटैया दी और कहा उत्तर दिया । जैनधर्मने भारतको वरवाद नहीं किया, कि इनकी पूजा किये बिना खाना नहीं खाना और जब जैनधर्म कायरता नहीं मिखाता । वह इतना वीरतापूजा करो तब इनके सामने प्रतिज्ञा किया करो कि पूर्ण धर्म है कि उसे यदि कोई घानीमें भी पेल देवे 'मैं पाप नहीं करूँगा।' पुरुष था भोला-भाला, उसने तब भी उफ नहीं करे। भारतवर्षको नए किया है स्त्रीकी बात मान ली। वह एक दिन पूजा करके कहीं हमारी विषयासक्तिने, हमारे प्रमादने, गया कि इतनेमें चूहाने वटेयापरके चावल खा लिये री फूटने ।
और उसे लुड़का दिया। उसने समझा कि इस V संसार भरकी दशा बड़ी विचित्र है। कलका वटैयासे बड़ा तो यह चूहा है इसे ही पूजना करोड़पति आज भीख मांगता फिरता है। ससारकी चिहिये । वह चूहाको पूजने लगा । एक दिन विलाव- दशा एक पानीके बबूलेके समान है। संसारी जीव मोह