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________________ मेश शेशक मी ऐसा था (विजयकुमार चौधरी, साहित्यरत्न ) मेग शैशव भी ऐसा था, स्मृतियां साकार हुई। बाल वृन्दके दिव्य स्मित में, चिन्तायें सब दूर हुई ।। एक निम्ब तरुवरके नीचे खेल रहे थे बच्चे चार । नंगे तन थे धूल-धूसरित, कितने प्रिय कितने सुकुमार ।। (१) मनके भीतरकी उज्वलता, कभी कभी लड़-भिड़ जाते थे, मुखपर स्वतः झलकती थी। अपनी जोत जताने को । बाल-सुलभ वह उनको क्रीड़ा. हार स्वयं स्वीकार न करते, सबको प्यारी लगती थी । अपनी संप मिटानेको । हंमते, थे मुस्काते थे वे, दौड़-दौड़में ठोकर खाकर अपनेमें होकर अलमस्त । यदि कोई गिर पड़ता था । आंख मिचौनी में ही उनकी, लज्जित होकर उठ तुरन्त, छिपी हुई थी खुशी समस्त ।। (२) वह झटसे दौड़ लगाता था। (३) तुतलाती मृदु वाणी में, जब वे सम्भाषण करते थे। सुनने वाले सहृदय जनके, मनको पुलकित करते थे। खेल-खेल में नये खिलौने, कितने तोड़ दिये उनने । 'भीतर क्या है की जिज्ञामा, स्वयं शान्त करली उनने ।। (४) पांव डाल कर गीली बालू उनका खेल हुआ आकर्षण सं घरका निर्माण किया । मेरे आकर्षित मनको । 'अाविष्कारिणि शक्ति स्वयं 'मैं भी बालक हूं' विचारने, मानसमे सही प्रमाण दिया। भुला दिया था उन सबको ।। अपने कठिन परिश्रमका फल, मैं भी भल गया अपने को, कितना मोठा होता है । लखकर उन सब की क्रीड़ा । मिलता प्रमाण वाजक जब, पुलकित मन हो गया तभी, निजकी कतिपर इठला देताहै। (५) औ' भूल गया मनको पीड़ा ।। (६) ( ३५१वें पृष्ठका शेषांश) जलसे भरे और नयरूप चांचल तरंगममूहसे गंभीर, सम्यक्त्वी , पंच परमेष्टोका भक्त, धर्म अर्थ और काम उत्तम समभंगरूप कल्लोलमालासे भूषित तथा रूप पुरुषार्थ युक्त तथा शंकादिक मलसे रहित स्वगोजिन शासनरूप निर्मल वालाबसे युक्त और पंडितों अपवर्गरूप सखरसका प्रकाशक सूचित किया। काममणि प्रगट किया है। और अपनेको निमल
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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