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किरण]
श्री अगरचन्दनाहटाके लेख पर नोट
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खण्डागम सूत्रमेंसे 'संजद' पदके निष्कासनकी महापुराण प्रसिद्ध ही है। इनमें चतुमुखके प्रन्थ उपघोषणा कर देना तो एक बहुतही बड़े दुःसाहसकी लब्ध नहीं हैं। इनके अतरिक्त सं० ६१० में महाबात है और उसके द्वारा समाजके उन मान्य एवं कवि असगने महावीर-चरित और शान्तिनाथ प्रतिष्ठित विद्वानोंकी भारी अवहेलना कीगई है चरितकी रचनाकी है जिसकी प्रतियां अनेक ज्ञानजिन्होंने सागर में विद्वपरिषदके अवसर पर आगम भंडारोंमें स रक्षित हैं। कविवर पद्मकीर्तिने स. प्रमाणोंसे सिद्ध करके यह निर्णय दिया था कि हमें पार्श्व-पुराणकी रचना अपभ्रंश भाषामें की षटखण्डागमक ६३ सूत्रमें 'संजद' पदके रहते हुए है यह प्रन्थ आमेर आदिके भंडारों में है महाकवि भी द्रव्यस्त्रीकी मुक्ति सिद्ध नहीं हो सकती ऐसी वीरने जम्बृस्वामि चरितकी रचना वि० सं० १०७६ स्थितिमें दो वर्षके बाद ताम्र पत्रादिका कार्य पूरा में की है। और इनके पिता देवदत्तने शांतिनाथका होने पर उसमेंसे 'मजद' पद निकालनेकी घोषणा चरित भी लिखा था जो उपलब्ध नहीं है। खोज फरना आगमकी प्रामाणिकता को खतरेमें करने पर और भी अनेक पराण तथा चरित ग्रन्थों डालनेके सिवाय और कुछ अर्थ नहीं रखता। अतः के उल्लेख प्राप्त हो सकेंगे। इन सब उल्लेखोंसे स्प. समाजके श्रीमानों तथा विद्वानोंको इस अनर्थक है कि दिगम्बर सम्प्रदायमें दशमी ११वीं शताटालनेका शीघ्रातिशीघ्र जोरदार प्रयत्न करना दोसे पूर्व सातवीं आठवीं और नौवीं शताब्दियों चाहिये और षटखण्डासे निकाले हुए उस 'संजद' में पराण तथा चरित ग्रन्थों का निमोण हो चुका था वाले ताम्र पत्रको पुनः प्रविष्ट कराना चाहिये। और यह रचना कार्य बाद में भी चलता रहा है। और
पं. खूबचन्दजी शास्त्रीने जो उक्त संस्थाकी १३ वी १४ वी १५वीं १६ वीं शताब्दियोंके अनेक ममितिके मदस्य थे उमो समय अपना त्याग पत्र चरित पराण प्रन्थ विविध भाषाओं में लिखे गये देकर अपने प्रात्म मम्मान की रक्षा की है।
है। पर श्वेताम्बर सम्प्रदायमे स्वतन्त्र तीर्थकर चरित
परमानन्द जैन १२ वीं शताब्दीमे पूर्व नहीं रचे गये यह नाहटाजी श्री अगरचन्दनाहटाके लेख पर नोट क वतेमान लेखसे स्पष्ट है।
परमानन्द जैन दिगम्बर माहित्यमें शठ शाल कीय महापुरु
(३९८ वें पृष्टका शेषांश) पीक जीवन परिचयको व्यक्त करने वाले अनेक
सयल विहिणिहाणु सकव्व कमलु । प्रन्थ १२ वीं शताब्दीमं पूर्व रचे गये है। प्राचाय बधगय-मिच्छत तमोह-दोसु, यतिवृषभको 'निलोय पएणत्तो' में चौवीम तीर्थ
धम्मत्थ काम कमणीयकोसु । करों और बारह चक्रवर्तियों आदिके चरित्रकी मह
मकाइय मलसंगम विरामु, त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। आचार्य वीरसेनके
दयधम्म रमारामाहिराम । शिष्य जिनसेन और पुन्नाट संघीय जिनसेन द्वितीय
सावयवयहसावलि वियास, के महापुराण और हरिवंशपुराण तो प्रसिद्ध हो
परमेट्ठिपंचपरिमलपयासु। है और कवि परमेष्ठीका गद्य-पुराणका उल्लेख भी केवलमिरिकार्मािणकयविलास, निहित ही है भले ही वह आज समुपलब्ध न हो।
सम्गा पवग्ग सुहरस पयास । और आचार्य गुणभद्रका उत्तरपुराण भी प्रसिद्ध ही मुणिदाणकंद मयरंद वरिसु, है। चरित प्रन्यों में जटासिंहनन्दीका बरांग-वरित
बुहयण महुयर मणुदिएण हरिस । रविषेणका पद्म-चरित और स्वयंभूदेव, चतुर्मुख प्रन्थकाने गुरु माणिक्यनन्दीको महापण्डित एवं पुष्पदन्तके पउमचरिउ हरिवंश पुराण और बतलानेके साथ साथ उन्हें प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणरूप