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________________ ३४० अनेकान्त [वर्ष १० और वर्षा दूरसे दिखाई देती है । उपरोक्त चिन्हों का पाक काल (फल) तीन रात अथवा सात रात्रि में तथा तत्काल भी होता है ॥२४॥२५॥ उन्कावत्साधनं सर्व सन्ध्यायामभिनिर्दिशेत् । अतः परं प्रवक्ष्यामि मेघानां तन्निबाधत ॥२६॥ अर्थ-उल्काअध्यायवत् सध्या का सब कथन जानना चाहिए। अब आगे मेघांके लक्षण और फल बताये जाते हैं उन्हें भले प्रकार सममें ॥२६।। इति नै ग्रन्थे भद्रबाहुके निमित्ते सध्यालक्षणं सप्तमोध्यायः ।।७।। आठवां अध्याय अतः परं प्रवक्ष्यामि मेघानामपि लक्षणम् । प्रशस्तमप्रशस्तं वा यथावदनुपूर्वशः ॥१॥ अर्थ-अब मेघोंके उत्कृष्ट शुभाशुभ लक्षण कहे जाते हैं ॥१॥ यदांजननिमो देवः शान्तायां दिशि दृश्यते । स्निग्धो मंदगतिश्चापि तदा विन्द्याज्जलं शुभम्॥२॥ अर्थ-यदि अंजन (काले सुरमे) के समान गहरे काले मेघ पश्चिम दिशामें दिखाई देवें और वे चिकने तथा मन्द-गतिवाले चाहे शीघ्र गतिवाले होवें तो बहुत जल को वर्षाते हैं ॥२॥ पीतपुष्पनिभो यस्तु यदा मेघः समुत्थितः । शांतायां यदि दृश्येत स्निग्धो वर्ष तदुच्यते ॥३॥ अर्थ-पीलेपुष्प के समान सचिक्कण स्निग्ध) पश्चिम दिशामें मेघ स्थित हों तो वर्षाको करते है। रक्तवर्णो यदा मेघः शान्तायां दिशि दृश्यते । स्निग्धो मन्दगतिश्चापि तदा विन्द्याज्जलं शुभम्।४ अर्थ-लाल वर्ण के मेघ चिकने और मंदर्गात वाले पश्चिम दिशामें दिखाई दे तो बहुत जलको देने वाले जानना चाहिए |४|| शुक्लवर्णो या मेघः शान्तायां दिशि दृश्यते । स्निग्धो मदगतिश्चापि निवृत्तः स जलावहः ।। ___अर्थ-श्वेत वर्ण के स्निग्ध और मंदगति वाले मेघ पश्चिम दिशामे दिखाई दें तो व जितना कुछ जल उनमें होता है वर्षा कर निवृत्त हो जाते हैं ॥५॥ स्निग्धाः सर्वेषु वणेषु स्वां दिशं संश्रिता यदा । स्ववर्ण विजयं कुर्य दिक्ष शांतासु ये स्थिताः ॥६॥ अर्थ-पश्चिम दिशामें स्थित मेघ स्निग्ध हों तो सब वर्गों को जय करने वाले हैं, यदि अपने अपने वर्णके अनुसार अपनी अपनी दिशामें स्निग्धमेघ स्थित हों तो वणीनुसार जय को कहते हैं ।।६।। जातिब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य जातिवर्णश्वेत रक्त पोत कृष्ण जातिदिशा- उतरदिशा पूर्वदिशा दक्षिणदिशा पाश्चिमदिशा यथा स्थितं शुभं मेघमनुपश्यन्ति पक्षिणः । जलाशया जलधरास्तदा विन्द्याज्जलं शुभम् ॥७॥ अर्थ-शुभ मेघ जैस स्थित हों यदि वह बादल पक्षि गण रूप तथा जलाशयरूप दिखाई दें तो अच्छा जल वर्षाते है ॥णा १.२ मुद्रित भद्रबाहुसंहिता में यह पग उपलब्ध नहीं है। -सम्पादक
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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