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________________ किरण | भदबाहु-निमित्तशास्त्र ३३६ अथ - पूर्व रात्रि अगली रात्रि गई रात्रि) को परिवेष होवे और परिखायुक्त बिजली होवे, और सब ओर रश्मिसहित संध्या होवे तो तत्काल वर्षा देती है ||१४|| प्रतिमूर्यागमस्तत्र शक्रचापरजस्तथा । संध्यायां यदि दृश्यन्ते सद्यो वर्ष प्रयच्छति ॥ १५ ॥ अथ – प्रतिसु का आगमन हो, वहां पर इन्द्रधनुष रजका सध्या के विषे दिखाई दे तो तत्काल वर्षा होती है ||१५|| संध्यायामेकश्मिं तु यदा सृजति भास्करः । उदितोऽस्तमितो वापि विन्द्याद्वर्षमुपस्थितम् ॥ १६ ॥ अर्थ - संध्या में सूर्य उदय या अस्तके समय में एकरश्मिवाला दिखाई दे तो वर्षा होती है ॥ १६ ॥ आदित्यपरिवेषस्तु संध्यायां यदि दृश्यते । वर्षं महद्विजानीयाद्भयं वाऽथ प्रवर्षणे ॥१७॥ अथ –सौंध्यामें सूर्यके परिवेष दिखाई दे तो भारी वर्षा होती है, अथवा भय होता है ॥१७॥ त्रिमंडलपरिक्षिप्तो यदि वा पञ्चमंडलः । संध्यायां दृश्यते सूर्यो महावर्षस्य संभयः || १८ || अर्थ –यदि सूर्य सौंध्यामें तीन मंडल अथवा पांच मंडलसे घिरा हुआ दिखाई दे तो महा वर्षाका होना संभव है ||१८|| द्योतयंती दिशः सर्वा यदा संभ्या प्रदृश्यते || महामेघस्तदा विन्द्याद्भद्रबाहुवचो यथा ॥१६॥ अर्थ—सब दिशाओं मे प्रकाशमान झलझलाटयुक्त संध्या दिखाई दे तो बड़ी भारी वर्षा होती हैं, यह भद्रबाहुके वचन हैं ॥१०॥ सरेस्तडागप्रतिमा कूपकुम्भनिभा च या । यदा दृश्यति सुस्निग्धा सा संध्या वर्षंदा स्मृता | २० | अर्थ-सरोवर, तलाव, प्रतिमा, कूप और कुम्भ सदृश स्निग्ध संध्या यांद दिखाई दे तो वर्षा होगी ऐसा जानना ||२०|| धूम्रवण बहुच्छिद्रा खण्डपापममा यदा । या संभ्या दृश्यते नित्य' सा तु राज्ञो भयङ्करा ॥२१॥ अर्थ - धूम्रवर्णवाली, छिद्र युक्त खण्ड (टुकड़े टुकड़े) रूप, संध्या यदि नित्य दिखाई दे तो वह राजाको भयकारक है ||२१|| द्विपदाःश्चतुश्पदाश्च क्रूरा पक्षिणश्च भयङ्कराः । सन्ध्यायां यदि दृश्यन्ते भयमाख्यान्त्युपस्थितम् २२ अर्थ - क्रूर स्वभाव वाले द्विपद, चतुष्पद, और पक्षिगण के सदृश बादल यदि संध्याकाल में दीखें तो भय उपस्थित हो जाता है ||२२|| अनावृष्टिभयं रोगं दुर्भिक्षं राजविद्रवम् । रूक्षायां विकृतायां च संध्यायामभिनिर्दिशेत् ॥ २३ अर्थ — संध्या में बादल रूक्ष और विकृतरूप दिखाई दें तो अनावृष्टि, भय, रोग दुर्भिक्ष और राजा का उपद्रव होता है ||२३|| विंशतिर्योजनानि स्युविंद्य ुद्भाति च सुप्रभा । ततोऽधिकं तु स्तनितं पंचयोजनिका सन्ध्या वायुवर्षं च दूरतः । त्रिरात्र सप्तरात्रञ्च सद्यो वा अर्थ — विजलीका परक्का बीस २० योजन (८० कोश = १६० माईल) परसे अधिक दूर से बादल दिखाई देते हैं। संध्या पांच योजन (बीस कोश-४० मील) से यत्र व दृश्यते ॥२४॥ पाकमादिशेत् ||२५|| दिखाई देता है इससे भी दिखाई देती है। वायु
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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