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________________ किरण ] भद्रबाहु निमित्तशास्त्र [३४१ taraare ये मेघाः स्निग्धनादाश्च ते सदा । मंदगाः सुमुहूर्ताश्च ये सर्वत्र जलावहाः ||८|| अर्थ - चिकने वर्णवाले (लोचन प्रिय) मुलायमशब्द वाले, मंदगति वाले, और उत्तम मुहूर्त के मेघ सर्वत्र जल वर्षाते हैं ||८|| सगधगंधायेमेघाः सुस्वरा स्वादुसंस्थिताः । मधुरोदकाश्च ये मेघाः जलाय जलदास्तदा ॥६॥ अर्थ-सुगंध के समान गंधवाले, मनोहर गर्जनावाले, स्वादु रस वाले, मीठे जलवाले मेघ जलको वर्षा है || || मेघा यदाऽभिवर्पति प्रयाणे पृथ्वीपतेः । मधुरा मधुरेणैव तदा संधिर्भविष्यति ॥ १० ॥ अर्थ- - राजाक चढाई के समय मधुर (मनोहर ) तथा मधुर शब्द वाले, मेघ वर्षा करें तो होकर परस्पर सधि हो जाती है ॥ १०॥ युद्ध न पृष्ठतो वर्ष'तः श्रेष्ठ ं अग्रतो वियङ्करम् । मेघाः कुर्वन्ति ये दूरे सगर्जितसविद्युतः ॥११॥ 6 अर्थ - राजाके प्रयाग के समय यदि मेघ दूरी पर गर्जना और विजलो सहित दृष्टि करें और पृष्ठ भागपर हों तो श्रेष्ठ जानना, यदि अप्रभाग में करें तो विजयको करने वाले जानना ||११|| मेघशब्देन महता यदा निर्याति पार्थिवः । पृष्ठतो गर्जमानेन तदा जयति दुर्जयम् ॥१२॥ अर्थ-यदि राजाके प्रयाण समय पीछेके मार्गसे मेघ बड़ी भारी गर्जना करें तो जो नहीं जीता जाय ऐसे दुर्जेय (स्थान या शत्रु) को जीतता है || १२|| मेघशब्देन महता यदा तिर्यक् प्रधावति । न तत्र जायते सिद्धिरुभयोः परिसैन्ययोः | १३ || अथ यदि वह सन्मुख या पृष्ठ भागमें भारी गजेना न कर तिर्यक् (बाई दाई) भाग में गर्जना करे तो दोनों (स्थाई और यात्री) सेनाओं को सिद्धि प्राप्त नहीं होती है || १३|| मेघा यत्राभिवर्षन्ति स्वधावारसमन्ततः । सनायका विद्रवते सा चमूर्नात्र संशयः ॥ १४ ॥ अर्थ – यदि मेघ जिस स्थानपर मूलधार पानी वर्षावें, वहांवर नायक और सेना एवं दोनों द्रवित हो जाते हैं, अर्थात् रक्तसे रजित हो जाते है इसमे कुछ संशय नहीं जानना ||१४|| रूक्षा वाताः प्रकुर्वैन्ति व्याधयो विष्ठुगन्धितः । कुशब्दाश्च विवर्णाश्च मेघावर्ष' न कुर्वते ।। १५ ।। अर्थ - रूक्ष वायु विष्ठाके गंधकी हो तो व्याधिको करती है । कुशब्द और वण वाली हो तो मेघ वर्षा नहीं करते ||१५|| सिहश्रृगाल- मार्जाराः व्याघ्रमेघाः द्रवन्ति ये । महता भीमशब्देन रुधिरं वर्षन्ति ते वनाः ||१६|| अर्थ- जो मेघ, सिंह, सियाल, बिल्ली, चीता की आकृतिवान होकर वर्षे और बड़ी भारी शब्दतो बहुत रुधिरकी वर्षा करते हैं || १६ || पक्षिणश्चापि क्रव्यादा वा पश्यन्ति समुत्थिताः । मेघास्तदापि रुधिरं वर्ष वर्षन्ति ते घनाः ॥१७॥ अर्थ-यदि पक्षी के समान मेघ गर्जना करें अर्थात् उड़ते हुये पक्षीकी आकृति वाले तथा मांसभक्षी गृद्ध आदि की तरह दिखाई देतो रुधिर की वर्षा करते हैं ||१७|| अनावृष्टिभयं घोरं दुर्भिक्ष ं मरणं तथा । निवेदयंति ते मेघा ये भवन्तीदृशा दिवि ॥ १८ ॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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