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________________ ३३६ अनेकान्त [ वर्षे १० करते हैं ऐसा भद्रबाहुका वचन है ॥१॥ बालाभ्रवृक्षमरणं कुमारामात्ययोर्वदेव । एवमेवं च विज्ञयं प्रतिराज्ञां यदा भवेत् ॥१८॥ ___ अर्थ-वृक्षके पौधेसे वाल्यावस्थाके राजाका मरण, तरुणवृक्षसे मंत्रोका मरण जानना चाहिए। अथत जो बादल छोटे वृक्षके समान दिखाई दें उनसे यवराजका और जो बडे वृक्षके सदृश दिखाई दें उनस मंत्री का मरण सूचित होता है । इसी प्रकार शत्रु राजाओंके सम्बन्धमे जानना चाहिए ॥१८॥ तियक्ष यानि गच्छन्ति रूक्षाणि च धनानि च । निवर्जयन्ति तान्याशु चमू सवा सनायकाम् १६ अथ-जो अभ्र मेघ) तिरछे गमन करते हों, रूक्ष हा और सान्द्र (धन) हों तो उनस नायक सहित समस्त सेनाके युद्धसे लौट जाने या परडमुख होजानेकी सूचना मिलतो है ।।१६।। अभिद्रवन्ति घोषेण महता यां चमू पुनः । सविद्य तानि चाभ्राणि तदा विन्द्याच्चमूवधम् ॥२० अथ-जो वादल जिस सेनापर भारी गर्जना करते हुए वर्पते हैं तथा विजली सहित होत है तो उस सेनाका नाश सूचित होता है ॥२०॥ रुधिरोदकवर्णानि निम्बगन्धानि यानि च । ब्रजन्त्यभ्रााण अत्यन्तं संग्राम तेष निर्दिशेत् ॥२१॥ अर्थ-रुधिरके वर्णवाली वृष्टि हो और निम्ब जैसी गन्ध हा तथा बादल गमन करते हुए हां तो यह सब युद्ध होनेका निर्देश करते हैं ॥२१॥ विस्वर रवमाणाश्च शकुना यान्ति पृष्ठतः । यदाऽभ्राणि सधूमानि तदा विन्द्याद् भयं महत ॥२२॥ ___ अथे-जो बादल शकुनरूप होकर पीछेमे आवे चाहे व शब्द महित हों यह न हों और धूम जैसे आकारको लिये हर हों तो महान भय सचित होता है॥२२॥ मलिनानि विवर्णानि दीप्तायां दिशि यानि च । दीप्तान्येव यदा यान्ति भयमाख्यान्त्युपस्थितम् २३ ___अर्थ मलिन तथा वणरहित बादल दीप्त दिशा (जिस दिशामें सर्य हो उस , में हों तो वे भय सूचित करते है ।।२।। सग्रहे चापि नक्षत्र ग्रहयुद्ध ऽशुभंतिथो । सम्भ्रमन्नि यदाऽभ्राणि तदा विन्द्यान्महद्भयम् ।। २४ मुहूते शकुन वापि निमित्त वाऽशुभे यदा ,सम्भ्रमन्ति यदाऽभ्राणि तदा विन्द्यान्महद्भयम् ॥२॥ अथ-अशुभ ग्रह नक्षत्र, ग्रहयुद्ध, तिथि मुहूते शकुन, और निमित्तके सद्भावमे बादलोंका भ्रमण हो (बादलोंका उठाव हो ) तो जानना चाहिये कि बहुत भारो भय हाने वाला है ॥२४॥२५॥ अभ्रशक्तियतो गच्छेत्तां दिशां चाभियोजयेत् । विपुला क्षिप्रगा स्निग्धा जयमाख्याति निर्भयम् ॥२६॥ अथ-भारी शीघ्रगामी और स्निग्ध बादल जिस दिशामें गमन करें तो उस दिशामें वे यायीराजा की विजयकी सूचना करते हैं । ॥२६॥ यदा तु धान्यसंघानां सदृशानि भवन्ति हि । अम्राणि तोयवर्णानि सस्यं तेष समृद्ध्यते ॥२७॥ अर्थ-यदि बादल धान्यके समूहके सदृश, जलके वणवाले दिखाई दे तो धान्यकी बहुत पैदावारी होती है ॥२७॥ चिरागान्यनुलोमानि झुक्लरक्तानि यानि च । स्थावराणीति जानीयात् स्थावराणां च संश्रये ॥२८॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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