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________________ भद्रकाहु-निमित्तशास्त्र (गत किरणसे आगे) स्थायुधानां सचानां हस्तिनां सदृशानि च । यान्यग्रतो प्रधावन्ति जयमाख्यान्त्युपस्थितम् ॥१० ___ अर्थ-रथ (गाड़ी. बग्घी मोटर विमान) तथा प्रायुध (तलवार आदि) रूप और हाथी आदि प्राणियोंके सदृश बादल राजाक आग श्रागे गमन करें तो वे उसकी जयको सचित करते हैं ॥१०॥ ध्वजानां च पताकानां घण्टानां तोरणस्य च । सादृशान्यग्रतो यान्ति जयमाख्यान्त्युपस्थितम् ११ अर्थ-ध्वजा पताका घण्टा और तोरण आदि शुभ (अष्ट मंगल द्रव्य-आठ प्रातिहार्य ) रूप प्राकृतिवाले बादल राजाके प्रयाणसमय आगे आगे गमन करें तो उनसे राजाकी विजय सूचित होती है शुक्लानि स्निग्धवर्णानि पुरतः पृष्ठतोऽपि वा । अभ्राणि दीप्तरूपाणि जयमाख्यान्त्युपस्थितम् १२ अर्थ-श्वेत और चिकने बादल राजाके आगे अथवा पीछे चमकते हुए गमन करें तो विजय लक्ष्मी उसके सामने उपस्थित रहती है अर्थात् युद्ध में उसे विजय मिलती है ।।१२।।। चतुःपदानां पक्षी (क्षि)णां क्रव्यादानां च दंष्ट्रिणाम् । सदृशप्रतिलोमानि वधमाख्यान्त्युपस्थितम् १३ अर्थ-चौपायों (ऊट भंसा, सुअर, गधा, आदि) और मांसभक्षी कर पक्षियों (गीध, काक बगुला, बाज, तीतर आदि) तथा दांतवाले हिंसक प्राणियोंके आकार वाले बादल राजाको युद्धके लिये गमन समयमें प्रतिलोमगति (अपमव्यमार्ग) से गमन करते हुए दिग्वाई दें तो राजाका घात अथवा परा• जय होती है ॥१३॥ असि शक्ति-तोमराणां खड्गानां चक्रचर्मणाम् । सदृशप्रतिलोमानि संग्रामं तेषु निदिशेत् ॥१४, ___ अर्थ-तलवार, त्रिशूल, भाला बी, खड्ग, चक्र और ढालके समान श्राकार वाले और उल्टे मार्गसे गमन करनेवाले बादल युद्धकी सूचना करते है ॥१४॥ धनषा कवचानां बालानां सदृशानि च । खण्डान्यभ्राणि रूक्षाणि संग्रामं तेषु निदिशेत ॥१५॥ अथे-- धनुषाकार, कबचाकार, वाला (अश्व और हस्तिकी पूछडी) के सदृश तथा खण्डित बादल हों एवं रूक्ष भी हों तो उनसे संप्रामकी सूचना होती है ॥१५॥ नानारूपप्रहरणैः सर्वे यान्ति परस्परम् । संग्राम तेषु जानीयादतुलं प्रत्युपस्थितम् ॥१६॥ अर्थ-नाना प्रकारके रूप धारण कर सघ बादल परस्परमें श्राघात प्रतिघात करें तो वे घोर संग्राम सूचक है ऐसा जानना चाहिए ||१६|| . अभ्रवृक्ष समुच्छाद्य योऽनलोमसमं व्रजेत् । यस्य राज्ञो वधस्तस्य भद्रबाहुवचो यथा ।१७।। अर्थ-जड़से उखड़े हुये वृक्षके सदृश जो बादल गमन करते हुए दिखते है वे राजाके वधको सूचना
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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