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________________ किरण] अपभ्रंश भाषा के दो महाकाव्य ३१५ मुझे बचाओ! मुदर्शनने मेरे सतोत्वका अपहरण कविने स्वयं अपने काव्यके आदर्शका उल्लेख किया कियाहै। राज कमवारी सुदर्शनको पकड़ लेते हैं और है:राजा अज्ञानता वश क्रोधित होकर रानाके कहे अनुः कामल वयं उदार छंदाणुवर गहारमस्वट्ठ। सार सुदर्शनका सूलीपर चढ़ानेका आदेश दे देता है हिय इच्छिह सोहग्ग कस्स कलत्तच इह कव। पर सुदर्शन व्रतनिष्ठाकी महत्तासे विजयी हाता प्रथमें अनेक स्थलों पर अनेक सुभाषित तथा है-एक देव प्रकट होकर उसको रक्षा करता है। देशी कहावतोंका उल्लम्ब भी किया गया है उनमें राजा धाड़ीवाहनका उस यंतरसे युद्ध से यहां पाठकों को जानकारोके लिये एक दोहा उल्लेख होता है और राजा हार जाता है। नीचे किया जाता है: और स दर्शनकी शरण में पहुंचता है। राजा "करे कंकणु किपारिसे दोसए" हाथ कंगनको पारसी क्या घटनाके रहस्यका ठोक हाल जानकर अपने कृत्य "एक हत्थे तालंकिं वज्जह किंमार वि पंचमु गाइज्ज" पर पश्चात्ताप करता है और सुदर्शनका राज्य देकर ताली क्या एक हाथसे वजती है, ताडनसे क्या विरक्त होना चाहता है; परन्तु सदशन संमार- पांचवा स्वर गाया जाता है। भोगोंसे स्वयं ही विरक्त है, वह दिगम्बर दीक्षा 'पर उपदेश.दितु बोह जाणइ' परको उपदेश देना बहुत लेकर तपश्चर्याद्वारा कर्मममहका विनाशकर मुक्त जानते हैं। हो जाता है। सुदर्शनका तपस्वी जीवन छदोंकी भरमार तो इस काव्य ग्रंथ की अपनी बड़ा सुन्दर रहा है और उसे कवि व्यक्त करनेमें विशेषता और मौलिकता है इस तरह यह काव्य पृण सफल रहा है। अभया और पडिता दामीभी ग्रन्थ अनेक विशेषताओंसे परिपूर्ण है और अपआत्मघात कर मर जाती है और अपने कमानुसार भ्रश भाषाके अभ्यासियांक लिये बड़े कामकी चीज कुगतिमें जाती है। इस तरह इस ग्रन्थमें पंचनम है। इसका प्रकाशन शीघ्र होना चाहिए । कार मत्रके फलको महत्ता बतलाई गई है। कवि नयनन्दीने सुदर्शन चरितको रचना धारा _ नगरोमें स्थित जिनवर विहार मे रहते हुए वि. सं. ___ प्रस्तुत प्रन्यमें बारह सन्धियां हैं जिनमें सदर्शन ११००मे राजा भोजदेवके राज्य कालमें की थी। के चरितको अंकित किया गया है । सुदर्शनका चरित जेसा कि उमक निम्न वाक्यांसे प्रकट है। अत्यन्त उज्वल और आदर्श है इसलिये अनेक आराम गाम-पुरवर-णिवेस, सुपसिद्ध अवंतीणाम देख ग्रन्थकारोंने उसे निवद्ध किया है। परन्तु इमकाव्य सुरवई पुरिम्व वित्रुहमगिट्ठ, नहिं अस्थिधार सपरीगरिह प्रन्थमें कविकी कथन शैली, रस और अलंकागेकी रणि दुद्धर परिवर सेलवज, रितुए वासुर जणिम पुट, सरस कविता, शान्ति और वैराग्य रस तथा चोज्ज। प्रमंगवश कलाका अभिव्यंजन, नायिकाके भेद ऋतु तिहयण णारायणामिरि णिक उ, ताहि सारथइपुगमु भोय देड वर्णनोंका और उनके वेष भूषा आदिका चित्रण, और मणिगण पह पम्मिय गभस्थि, तहि जिणवरु बद्ध विहारुमत्यि यथास्थान धर्मोपदेश आदिका मार्मिक विवेचन तथा शिव विस्कम कालही ववगएस, एयारह संबच्छर सएस । गुण इस काम्य ग्रन्थकी अपनी विशेषताके निर्देशक तहि केवल चरिउ अमच्छोण, रणयंणदी विरहबित्थरेण है और कविकी आन्तरिक भद्रता तथा निर्मल प्रतिभा जो पदह सणहभावह लिहेह, सोसासयसुहु अधिरब लहेद के मंद्योतक है। कवि नयनदीकी दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति सयल यह प्रन्थ एक सुन्दर महाकाव्य है, प्रथमें भाषा और विहि विहाण कम्ध है जिसमें अनेक विधि-विधानों भावोंका सजीव चित्रण कलाकारकी विशेषता है आर आर आराधनाओंका समुल्लेख अथवा विवेचन
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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