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________________ ३०४ अनेकान्त है कि जब छोटे-से-छोटा और गरीब से गरीब नागरिक भी इस महान देशका जो कि दुनिया के सबसे बड़े राज्यों मेंसे है, राष्ट्रपति हो सकता है। यह मामूली बात नहीं है ।” महात्मा गाँधीजी ने तो यहां तक कहा था कि मैं चाहता हूँ कि एक योग्य हरिजन लड़की भारतकी प्रथम राष्ट्रनत्रा हो । इसमें भारतीय संविधानको राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पृष्टभूमिक दशन मिल जाते है । संविधानकी राजनीतिक पृष्ठभूमि भारतीय संविधानकी प्रस्तावनाको पढ़नेसे स हो जाता है कि देशकी सरकारको सम्पूर्ण प्रभुता भारतकी जनता से प्राप्त होती है । सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय, विचार, विश्वास, तथा धार्मिक पूजाविधिकी स्वतन्त्रता नागरिकता के अधि कारों और विकास के अवसरामं समानता तथा ऐसा भ्रातृत्व जिसमे व्यक्तिका सम्मान हो और राष्ट्रकी एकता बनी रहे—यही तो प्रजासत्ताक शासन प्रणालोकी मुख्य विशेषताएं है यह समी विशेषताएं भारतीय संविधानकी प्रस्तावनामै उनक मुख्य उद्देश्योंके रूपमे रखदी गई है। विधानको जनतन्त्रात्मक इसलिए भी कहा जायेगा कि भारतक प्रधान अधिशासकका कोइ पद पैतृक अधिकार से प्राप्त होने वाला पद न होकर योग्यता तथा चुनाव के द्वारा मिलने वाला पद होगा । यहां हमे भारतोय संविधानको तुलना संयुक्तराष्ट्र अमेरकाके विधानसे करनेपर एक विचित्रताका पता चलेगा। दोनों हो संविधान संघीय ढाचेके हैं और दोनोंमें प्रधान अधिशासक जनता द्वारा निर्वा चित राष्ट्रपति होगा । किन्तु भारतीय संविधान में इस बातका प्रयत्न किया गया है कि इकाइयोंके मामले में सभी आधारभूत बातों में एक सदृशता लाई जावे, जिससे भारतीय संघ सरकार सुदृढ़ हो सके । यद्यपि भारतीय संविधानका रूप संघीय होनेके कारण उसमें द्विविध व्यवस्था होनी चाहिये थी, परन्तु देशके शासन मे दृढ़ता लानेके लिये आधारभूत बातोंमें एक सदृशता रखी गई है। उदाहरण के लिये । वर्ष १० अन्य संघीय संविधानोंके विपरीत भारतीय संवि धानमं द्विविध नागरिकता नहीं रखी गई है। सारे संघक लिये केवल एक भाररतीय नागरिकका विधान किया गया है और राज्यांके लिये कोई पृथक नागरिकता नहीं रखोगई है। इसी प्रकारसे दीवानी और फौजदारी कानूनों और न्याय व्यवस्था मे भी एकता संघको दृढ़ बनानेका एक साधन है । भार तोय संविधानको एक और विशेषता यह भी है कि किसी भी राज्यको संघसे प्रथक होने अथवा अपना संविधान स्वयं बना लेने का अधिकार नहीं दिया गया है । भारतीय संविधानकी एक और विशेषता यह भी रखो गई है कि आवश्यकता पड़ने पर उसका संघीय स्वरूप समाप्त हो सकता है और एकात्मक विधान के रूप मे व्यवहारमे लाया जा सकता है। साधारण परिस्थितियामें इस प्रकारका कदम उठाये जानेका कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगा | परन्तु युद्ध कालमे अथवा किसी भी राष्ट्रीय संकट के समयमे सारा देश एकात्मक राज्य के रूप बदला जा सकता है । संविधान में व्यक्तिका स्थान भारतीय संविधानकी सबसे बड़ी विशेषता यह हैं कि उसमें व्यक्ति अधिकारों की बड़ी विशद और विस्तृत घोषणा की गई । संभवत: संसार भरक किसी भी विधान में इस प्रकारकी विशद घोषणा नहीं की गई है इसके दो कारण समझमे आते हैं । भारतम सामाजिक असमानता इतनी अधिक रही है, और इमी असमानता के आधारपर शोषण इतन दिनों तक चला है कि निम्न वर्गक कहे जाने वाले शाषितोंको प्रत्येक प्रकारका संरक्षण और आश्वासन दिया जाना आवश्यक था । ऐसामी लगता है कि भारतीय विधान निर्माताओंके सामने अमेरिकाके संविधानका उदाहरण भी मौजूद था । वजाय इसके कि भारत के सर्वोच्च न्यायालयको व्यक्तिक मूल अधिकारोंकी व्याख्या करने का अवसर दिया जाता, संविधान में हो इन मूल अधिकारोंकी घोषणा कर
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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