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________________ किरण --] भारतीय जनतंत्रका विशाल विधान ३०५ दी गई है। संविधानके द्वारा व्यक्तिको दिये गये २३वीं धारामे मानवका क्रय-विक्रय तथा बेगार अधिकार मुख्य रूपसे निम्न है अपराध बनाये गये है और २४वीं धारामें कहा गया (१) समानताका अधिकार। है ५४ वर्षको अवस्थासे कमका कोई बालक फैक्टरी (२) स्वतंत्रताका अधिकार | या खान अथवा किसी खतरनाक कार्य में नहीं (3) शोषण के विरोधका अधिकार । लगाया जायगा। (४) धार्मिक स्वतंत्रताका अधिकार । धारा २५ से ३० तक में धार्मिक, सांस्कृतिक (५) सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार । तथा शिक्षासम्बन्धी अधिकारोंका उल्लेख किया (६) सम्पत्तिसम्बन्धो अधिकार । गया है। (७) वैधानिक संरक्षणका अधिकार । ३१वीं धारामें इस मौलिक सिद्धांतको प्रगट संविधान में यह भी कह दिया गया है कि किया गया है कि कानूनी तरीकके सिवाय, अन्य इन मौलिक अधिकारोंका सिद्धांत रूपमें विरोध किमी तरीकसे किसी भी व्यक्तिको उसकी संपत्ति करनेवाला कोई भी कानून यदि राज्यको धारासभा स वंचित न किया जायगा । जिस किसी भी संपत्ति स्वीकृत भी करेगी तो वह कानून व्यवहारमें नहीं का अधिकार या स्वामित्व सार्वजनिक हितके लिये लाया जा सकेगा। विधानकी १४वों धारामें कानूनके लिया जायगा, उसकी क्षतिपति की जायगी। आगे प्रत्येक व्यक्तिको समानताकी गारण्टी दी गई धारा ३२ में वह संरक्षण दिये गये है जिनके है। धमे, विश्वास अथवा रंगके आधारपर किसी द्वारा व्यक्तिके मौलिक अधिकारोंकी गारंटी दी गई भी प्रकारका भेद-भाव राज्य के कामांमें नहीं किया है। संविधान द्वारा प्रदान किये गये अधिकारोंको जायगा । यह सब कुछ होते हुए भी बिधानको १७वीं कार्यान्वित करानेका उत्तरदायित्व देशके सर्वोच्च धारामे अछूतपनक कलंक को मिटानक लिये विशेष न्यायालयको दिया गया है, जो सदैव इस बातके रूपस व्यवस्था की गई है और इस प्रकारसे व्यक्ति लिए सजग रहेगा कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर की समानताक अधिकारको पूर्ण रूपस पुष्टि कर दो कोई भी कुठाराघात न हो सके। १६वीं धागमें नागरिकोंको भाषण करने तथा संविधानकी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि विचार प्रगट करने, एकत्र होने तथा संस्थायें बनान, भारतीय संविधानके चतुथे खंडमें राष्टनीतिके आवागमन, निवास, सम्पत्ति प्राप्त करने, रखन तथा आदेशात्मक सिद्धांतोंकी घोषणा की गई है। इसमें हस्तांतरित करन, कोई भी उद्योग, धधा, व्यवसाय कहा गया है कि राज्य जनताकी सुख-सुविधाको या आजीविका अपनानेकी स्वतंत्रता दी गई है। बढ़ानेके लिये सदा यत्नशील रहेगा और उसके लिये हवियसकापसक सिद्धांतको विधानकी २०वा तथा वह इस प्रकारकी मामाजिक व्यवस्था पैदा करेगा, २१वीं धारामे निहित कर दिया गया है, जिसमें कहा जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय गया है कि किसी भी व्यक्तिको बिना कानूनी काय- प्रत्येक व्यक्तिको प्राप्त हो सके। विशेष रूपसे राज्य वाहीकं उसकी स्वतंत्रतासे वंचित नहीं किया जा इस बात के लिये यत्नशील रहेगा कि प्रत्येक नागरिक सकता । २२वीं धारा द्वारा व्यक्तिकी मनमाना गिर- को वह चाहे स्त्री हो या पुरुष आजीविका प्राप्त पतारी और अनिश्चित काल तककी नजरबन्दीक करनेका अधिकार होगा। विरुद्ध व्यवस्था की गई है। इसमें यह भी कहा गया इसी खंडमें यह भी कहा गया है कि राज्य है कि नजरबन्द त्तिोंको अपनी इच्छाके अनुसार देखेगा कि देशके उत्पादक साधनोंके स्वामित्व और किसी भी कानूनी सलाहकारसे सलाह लेनेका नियन्त्रणका इस प्रकारका बंटवारा हो जिससे सब अधिकार रहेगा। का अधिक-से-अधिक लाभ और कल्याण हो सके।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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