SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मथुरा संग्रहालयकी सं. १८२६ की तीर्थकर मर्ति (लेo-श्रीकृष्णदत्त वाजपेयी, एम०ए०, संग्रहाध्यत, पुरातत्व संग्रहालय, मथुरा) मथुराके पुरातत्व संग्रहालयमें सफेद संगमरमर दीग या डीग नगर भरतपुर राज्य (अब राजकी बनी हुई एक अभिलिखित तीर्थकर मूर्ति है । इस स्थान प्रांत ) का एक प्रसिद्ध नगर है। बहुत कालमूर्ति (संग्र०सं०बी २५)की ऊचाई १ फुट २६ इंच है। से यह नगर भरतपुर राजाओंके प्रधान केन्द्रोंमेंसे तीर्थकर पद्मासनपर ध्यानमुद्रामें बैठे है । दुर्भाग्यसे एक रहा है। प्रतिमाका सिर नहीं है। हाथोंकी उंगलियां भी कुछ केहरीसिंह या केसरीसिंह भरतपुर नरेश रतनकुछ टूट गई है। सिहके लड़के तथा ख्यातनामा सरजमलके नाती __ मूर्तिकी चरण-चौकीपर सामने तीन पंक्तियोंका थे। सूरजमलकी मृत्युके बाद उनके दो पुत्र नागरी लिपिमें एक लेख खदा है। लेखकी भाषा सीमापा जवारसिंह तथा रतनसिंह क्रमशः गहीपर बैठे। संस्कृतान्वित हिंदी है। लेख' इस प्रकार है- उन्हाने थोड़े समय तक ही राज्य किया। रतन पंक्ति ५-संवत १८२६ वर्षे मिती माघ वदि ७ की मृत्युके बाद उनके तीसरे भाई नवलसिंह अपने गरुवासर दीगनं (न) गरे महा राजे केहरीसिंघ भतीजे केसरीसिंहकी नाबालगोकी अवस्थामें राज्य राजा विजय [राज्ये] कार्यका संचालन करते रहे। १७६६ ई. के प्रारम्भमें __पंक्ति २-मघ (हा) भी (भ) टारक श्री प्र (पू) केसरीसिंहने राज्यकी बागडोर स्वयं अपने हाथोंज्य श्री महानंद सागर सु (सू ) रिभिस्तदुपद(द) में ले ली। इन्होंने १७७७ ई० तक राज्य किया। शात्पल्लीवाल वंश मगिहा गे ) प्रस्तुत तीर्थकर मूर्ति इनके राज्यके दूसरे वर्ष __पंक्ति ३-त्रे (ब) रसाणानगरवासिना चौधरी (१७७० ई०) में प्रतिष्ठापित की गई। जोधराजेन पतिट्ठा करापितेय लेखकी दूसरी पंक्तिमें उपदेशकका नाम महा___ इस लेखका तात्पर्य यह है कि-'विक्रम संवत् नंदसागरसूरि दिया हुआ है। मूर्ति-प्रतिष्ठापक १८२६, माघ कृष्ण ७ (%D १८ जनवरी, १७७० ई०) चौधरी जोधराज पल्लीवाल वंश तथा मगिहा गोत्र बृहस्पतिवारको दीग नगरमे महाराजा केहरीसिंहके के कहे गये है। 'पल्लीवाल' शब्द आधुनिक 'पाली. राज्यकालमें,श्री महानंद सूरिके उपदेशसे बरसाणा बाल' का पूर्व रूप ज्ञात होता है। पालीवाल ब्राह्मण नगरके निवासी चौधरी जोधराजने, जो पल्लीवाल वर्तमान राजस्थान तथा मध्यभारतमें काफी संख्या वंश तथा मगिहा(१) गोत्रके थे,इस तीर्थकर प्रतिमाकी में मिलते है। नहीं कह सकते कि लेखका 'पल्लीवाल' प्रतिष्ठा करवाई। ब्राह्मण वर्णका सूचक है या किसी इतर वर्णका' हाँ ब्राह्मणोंमें चौधरी शायद ही सुने जाते हों? १ लेखमें छाटे कट( )के अंतर्गत अक्षर पूर्ववर्ती अक्षरों के शुद्ध रूप है। बड़े कट[ ]दरवाले वर्णादि १,२ जैनोंके अन्तर्गत स्वरडेलवाल, अप्रवाल,जसवाल, पूरक हैं, जिन्हें लेख उत्कीर्ण करनेवालेने भूलसे छोड़ पल्लीपाल, परवार, गोलापूर्व,गोलालारे, गोलसिंघारे आदि दिया प्रतीत होता है। -लेखक। म जातियां हैं जिनका पेशा मुख्यत: व्यापार एवं उद्योग
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy