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________________ किरण ६ ] भद्रबाहु-निमित्तशास्त्र ०४५ उल्का यत्र समायान्ति यथाभावे तथासु च । येषां मध्यान्तिकं यान्ति तेषां स्याद्विजयो ध्र वम् ५६ अर्थ-जहाँ उल्का जिस रूपमें और जब गिरती है तथा जिनके बीचसे अथवा पाससे गुजरती है तो निश्चयसे उनकी विजय होती है ।। ५६ ।। चतुर्दिक्षु यदा पाता उल्का गच्छति सन्ततम् । चतुर्दिशं तदा यान्ति भयातुरमसंघशः ॥५७।। अर्थ-यदि उल्का गिरती हुई निरन्तर चारों दिशामें गमन करे तो लोग या सेनाका समूह भयातुर होकर चारों दिशामें-तितर-वितर (जहाँ तहाँ पृथक २)हो जाता है-भाग जाता है ॥ ५७ ।। अग्रतो या पतेदुल्का सा सेनां तु प्रशस्यते । तिर्यगाचरते मार्ग प्रतिलोमा भयावहा ॥ ५८ ॥ अर्थ-सेनाके आगेके भागमें यदि उल्का गिरे तो अच्छी है । यदि टेड़ी होकर प्रतिलोम गतिसे गिरे तो मनाको भय देनेवाली जनना ॥ ५८ ॥ यतः सेनामभिपतेत् तस्य सेनां प्रबाधयेत् । तं विजयं कुर्यात् येषां पतेत् सोल्का यदा पुरा ॥ ५ ॥ ___ अर्थ-जिस राजाकी सेनामें उल्का बीचों-बीच गिरे तो उसकी सेनाको कष्ट होता है और आगे गिरे तो विजय होती है ॥ ५ ॥ डिम्मरूपा नृपतये बन्धमुल्का प्रताडयेत् । प्रतिलोमा विलोमा च प्रतिराज्ञो भयं सृजेत् ॥६० ॥ अर्थ-यदि डिम्भरूप उल्का गिरे तो वह राजाके वन्दी होनेकी सूचना देती है और प्रतिलोम तथा अनुलोम उल्का शत्रुराजाओंको भय करती है ॥ ६॥ यस्यापि जन्मनक्षत्रं उल्का गच्छेच्छरोपमा। विदारणा तस्य वाच्या व्याधिना वर्णसंकरैः ॥६१॥ अर्थ-जिसके जन्मनक्षत्रमे वाणसदृश उल्का गिरे तो उस व्यक्तिके लिये विदारण (चोरे जाना) समझना चाहिये और नानावणरूप हो तो उस व्याधिका होना समझना चाहिये ।। ६१ ॥ उल्का येषां यथारूपा दृश्यते प्रतिलोमतः । तेषां तता भयं विन्द्यादनुलोमा शुभागमम् ॥६२॥ ___अर्थ-विलोम (उल्ट) मागेसे जैसे रूपकी उल्का जिसे दिखाई दे उसको भय होगा ऐसा जानना । और अनुलोम गतिस दिखाई दे तो शुभरूप जानना ॥ ६२ ।। उल्का यत्र प्रसर्पन्ति भ्राजमाना दिशो दशम् । सप्तरात्रान्तरं वर्ष दशाहादुत्तर भयम् ।। ६३ ॥ अर्थ-जिस स्थानपर उल्का फैलती हुई दिखाई दे तो वहाँकी जनताको प्रत्येक दिशामें अर्थात दशों दिशाओं में भागना (भ्रमण करना) पड़ता है, यदि सात रात्रि में वो होजाय तो इसका कुछ दोष नहीं, वरना दश दिन पश्चात उपरोक्त भय होता है । ६३ ॥ पापासूल्कासु यद्यस्तु यदा देवः प्रवर्षति । प्रशान्तं तद्भयं विन्द्याद्भद्रबाहुवचो यथा ।। ६४ ॥ अर्थ-पापरूप उल्काके उत्पातमें यदि देव (मेघ) वर्ष जावे(वर्षा होजावे)तो जानो कि भय शान्त होगया है अर्थात् पापरूप फलकी शांति हो गई है। यह भद्रबाहुके वचन जानो ॥ ६४ ॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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