SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४४ अनेकान्त विर्ष १० उदये भास्करस्योल्का याऽतोऽभिप्रसप्पैति । सोमस्यापि जयं कुर्यादेषां पुरु-सरावृतिः॥४६॥ अर्थ-यदि उल्का सूर्योदय होते हुए सूर्य के आगे और चन्द्र के उदय होते हुए चन्द्रमाके भी आगे गमन करे तथा बाणोंको आवृतिरूप हो तो उसे जयकी करनेवाली जानना चाहिये ।। ४६ ॥ सेनामाभिमुखीभूत्वा यद्य ल्का प्रतिगृह्यते । प्रतिसेनावधं विन्द्यात्तस्मिन्न त्पातदश ने ॥४७॥ अर्थ-यदि उल्का मनाके अभिमुग्व (सामने) होकर गिरती हुई दीखे तो प्रतिसेनाका बध जानो। इस उत्पातके दीखनेका यही फल है ॥ ४७ ॥ अथ यद्य भयं सेनामेकं प्रतिलोमतः । उल्का तर्ण प्रपद्य त उभयत्र भयं भवेत् ॥ ४८॥ अथे-- यदि दोनों मनाओंकी ओर एक एक सेनामे प्रतिलोम (अपसन्य) मार्गसे उल्का शीघ्रतासे गिरे तो दोनों सेनाओंको भय होता है ॥ ४ ॥ येषां सेनासु निपतेदुल्का नीलमहाप्रभा । सेनापतिवधस्तेषामचिरात्सम्प्रजायते ॥ ४६॥ अर्थ-यदि नील रंगकी महा प्रभावाली उल्का जिम सेनामें गिरे तो उस सेनाका सेनापति शीघ्र ही मारा जाता है । ४६ ॥ उल्कासु लोहिताः सूच्माः पतंति पृतनां प्रति । यस्य राज्ञः प्रयुक्तारं कुमारी हंति तं नृपम् ॥५०॥ अर्थ-लाहित वणकी सक्ष्म उल्का जिम राजाकी सेनाके प्रति गिरे उस सनाके राजाका पुत्र 'प्रयुतारम्' अस्त्रसे राजा को मार डालता है।॥ ५० ॥ उल्कास्तु बहवः पीताः पतन्त्यः पृतनां प्रति । पृतनां व्याधितां प्राहरेतस्मिन्नुत्पातदर्शने ॥५१॥ अथ-पोत वर्णकी बहुत उल्का सेनाकं प्रति गिरे तो इस उत्पातके दर्शनका फल सेनामें रोग फैलना है ॥५१॥ संघशास्त्रानुपद्यत (?)उल्का श्वेताः समन्ततः । ब्राह्मणेभ्यो भयं घोरं तस्य सेन्यस्य निर्दिशेत ५२ ___अर्थः-यदि श्वेत रंगकी उल्का सेनामे चारों तरफ गिरे तो वह उस सेनाको और ब्राह्मणोंको घोर भयकी सूचना करती है ॥ ५२ ॥ उल्का व्यूहेष्वनीकेषु या पतंती च सायका । न तदा जायते युद्धं परिघा नाम सा स्मृता॥५३॥ अर्थः-बाण या खड्ग रूप तिरछी उल्का सेनाके ब्यूहरचनामें गिरे तो कुटिल युद्ध नहीं होता है, इसको परिघा नामसे स्मरण करते है-कहते हैं ।। ५३ ।।। उल्का व्यूहप्वनीकेष पृष्ठतो निपतन्ति याः । क्षय-व्यय न पीड़यरन्नभयोः सेनयोनृपान् ॥५४॥ अथ-सनाकी व्यूहरचनाके पीछेके भागमे उल्का गिरे तो दोनों सेनाओंके राजाओंको वह नाश और खचंद्वारा कटकी सूचना करती है। उल्का व्यूहेष्वनीकेष प्रतिलोमाः पतन्ति याः । संग्रामेसु निपततां जायन्ते किशुका वनाः ॥५॥ अथः-सनाकी व्यूहरचनामे अपसव्यमार्गसे उल्का गिरे तो संग्राममें योद्धा गिर पड़ते हैं अर्थात् मारे जाते है जिससे रणभूमि केमु (टेसु)के पुष्पसमान रंगवालो होजाती है अर्थात भूमि रक्तसे रंग जाती
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy