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________________ किरण ६] भद्रबाहु-निमित्तशास्त्र २४३ नगरेषुपसृष्टेषु नागराणां महद्भयम् । यायिषु चोपसृष्टेषु यायिनां तद्यं भवेत् ॥ ३७॥ अथ-नगरकी व्यूहरचनाके विषे उपरोक्त उल्का गिरे तो नगरवासियों (स्थाई)को महान् भय होता है । यदि यायिके पड़ाव (कटक-शिविर)में गिरे तो यायिवालेको महान् भयका कारण होती है ॥ ३७॥ संध्यानां रोहिणी पौष्ण्यं चित्रा त्रीण्युत्तराणि च । मैत्रं चोल्का यदा हन्यात् तदा स्यात्पार्थिवं भयं ॥ अर्थ-यदि उल्का संध्या कालके विष रोहिणी, रेवती, चित्रा, उत्तराफाल्गुनि, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा और अनुराधा नक्षत्रोंको हने (घाते) तो राजाको भय होता है ।। ३८ ॥ वायव्यं वष्णवं पुष्यं यद्य ल्काभिः प्रताडयेत् । ब्रह्म-क्षत्रभयं विद्याद्राज्ञश्च भयमादिशेत ॥ ३९ ॥ अर्थ-स्वाति, श्रवण और पुष्य नक्षत्रोंको यदि उल्का ताड़ित (घात) करे तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और राजाको भयका आदेश करती है ।। ३६ ॥ यथाग्रहं तथा ऋक्षं चातुर्वण्य विभावयेत् । ___ अथ-जैसे ग्रह हो, अथवा नक्षत्र हों उनपरसं चारों वर्गों के विषयमें ग्रह और नक्षत्रपरसे फलकी वर्णप्रतिकल्पना करना चाहिये। अतः परं प्रवच्यामि सेनासल्का यथाविधि ॥ ४० ॥ सेनायास्तु समुद्योगे राज्ञा विविधमानवाः । उल्का यदा पतन्तीति तदा वक्ष्यामि लक्षणम् ॥४१॥ अर्थ-अब सेनाके विषयमे जो उल्काका शुभाशुभ विधान है वह यहांपर कहा जाता है । सेनाके युद्धके उद्योगके समय जो उल्का गिरतो है उसका लक्षणादि राजाओं और विविध मनुष्योंके लिये यहां कहा जाता है ।। ४०,४१ ।। उद्गच्छत् सोममकं का या ल्का संविदारयेत । स्थानराणां विपर्यासं तस्मिन्न पातदर्शने ॥४२॥ अर्थ-यदि उल्का ऊपरको गमन करती हुई चंद्र और सूर्यको विदारण करे तो स्थावर लाई वासीके लिये वह विपरीत उत्पातोंका दर्शन करानेवाली होती है ॥ ४२ ॥ अस्तं यातमथादित्यं सोमं चोल्का लिखेद् यदा । आगन्तुबंध्यते सेनां यथादिश यथागमम् ॥४३॥ __ अथे-सूर्य और चन्द्रमाके अस्त होनेपर यदि उल्का दिखाई दे तो आनेवाले यायिकी दिशामें आने वाले आगतुक (यायिक)की सेनाका बध होता है । ४३ ।। उदगच्छत् सोममकं वा यद्य ल्का प्रतिलोमतः । प्रविशेनागराणां स्याद्विपर्यासस्तदागते ॥४४॥ ___अर्थ-प्रतिलोम मागेसे गमन करती हुई उल्का उदय होते हुए सूर्य और चन्द्रके मंडलमे प्रवेश करे तो स्थाई लोगोंके लिये विपरीत है अर्थात् अशुभ है, ऐसी ही आनेवाले (यायि)केलिये विपरीत जानो । एषैवास्तमिते उन्का आगन्तूनां भयं भवेत् । प्रतिलोमा भयं कुर्याद्यथास्वं चन्द्र-सूर्ययोः ॥ ४५ ॥ अर्थ-उपरोक्त योगमें चन्द्र-सूर्यके अस्त समय प्रतिलोम मार्गसे गमन करती हुई चंद्र-सूर्य के मण्डलमें आकर उल्का अस्त हो जाय तो स्थाई और यायि एवं दोनोंको भय करनेवाली जानो ।। ४५ ।।
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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