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________________ अनेकान्त [ वर्ष १० ग्रहानादित्यचन्द्रौ च याः स्पृशन्ति दहन्ति वा । परचक्रभयं घोरं क्षुधाव्याधि- जनक्षयम् ॥ २६॥ अर्थ- जो उल्का अपने द्वारा प्रदीप्त दिशाओं में निकटकामनासे शब्दको छोड़ती-गड़गड़ाती हुई मांसभक्षी जीवोंके समान शीघ्रतासे दिखे अथवा जो उल्का रूक्ष विकृतरूप धारण करती हुई धूमवाली, शब्दसहित, अश्वके समान वेगवाली, भूमिको कंपाती हुई, कठोर - काबरचीतरी, धूल उड़ाती हुई, वायें मार्ग से गति करती हुई, महों तथा सूर्य और चन्द्रमाको स्पर्श करती हुई या जलाती हुई दीख पड़े- गिरे तो वह परचक्रका घोर भय उपस्थित करती है तथा क्षुधाके रोग - श्राकाल पड़ने और मनुष्योंके नाश होनेकी सूचना देती है ।। २७, २८, २६ ॥ २४२ एवंलक्षणसंयुक्ता कुर्वन्त्युल्का महद्भयम् । अष्टापदवदुल्काऽभिर्दिशं पश्येद् यदाऽऽवृताम् ||३०|| युगान्त इति विन्द्यात् तत षड् मासान्नापलभ्यते । अर्थ - उपरोक्त लक्षण युक्त उल्का महान भयको करती है । यदि अष्टापद समान दृष्टिगोचर हो तो ऐसा जानो कि छह मास में युगका अन्त ही होनेवाला है ॥ ३०३ ॥ पद्म-श्रीवृक्ष-चंद्रार्क- नंद्यावर्त्त-घटोपमाः ॥ ३१ ॥ वर्द्धमानध्वजाकारा पताका- मत्स्य- कुम्मैवत् । वाजि- वारणरूपाश्च शंख-वादित्र- छत्रवत् ॥ ३२ ॥ सिंहासन- रथाकारा रूप्य पिण्डव्यवस्थिताः । रूपैरै तैः प्रशस्यन्ते सुखमुल्काः समाहिताः ||३३|| अर्थ - यदि पद्म, श्रीवृक्ष, चंद्र, सूर्य, नंद्यावर्त (एक प्रकारका स्वास्तिक), कलश, बढ़ती हुई ध्वजा, पताका, मछली, कच्छप, अश्व, हस्ति, शंख, वादित्र, छत्र, सिंहासन, रथ और चांदीका पिण्ड इनके आकारों तथा रूपोंसे उल्का गिरे तोउसे उत्तम जानना । यह उल्का सबको सुख देनेवाली है ॥३१, ३२, ३३॥ नक्षत्राणि विमुञ्चन्त्यः स्निग्धाः प्रत्युत्तमाः शुभाः । सुवृष्टि ं क्षेममारोग्यं सस्यसंपत्तिरुत्तमाः ||३४|| अथे-र्याद उल्का नक्षत्रोंको छोड़कर गमन करनेवाली-स्निग्ध और उत्तम शुभलक्षणवाली दिखाई दे तो सुवृष्टि, क्षेम, आरोग्य और धान्यकी उत्पत्ति उत्तम होती है ।। ३५ ।। सोमो राहुश्व शुक्रश्व कंतुर्भीमश्च यायिनः । बृहस्पतिबुधः सूर्यः शौरिश्वबलस्थावरा ॥ ३५ ॥ अर्थ-युद्ध के निमित्त चढ़ाई कर जानेवाला राजा आदि 'यायि' संज्ञासे कहा जाता है, जिस स्थान पर चढ़कर आता है-उस स्थानके रहनेवाले ( राजा आदि) को स्थायी अथवा 'थावर' संज्ञासे पुकारा जाता है। यहां पर यह दिखाते हैं कि-यायिके लिये- चंद्र, राहु, शुक्र, केतु और मंगलका बल जानना और स्थायीके लिये - बृहस्पति, बुध, सूर्य और शनिका बल जानना । इन ग्रहोंके बलाबल परसे याि और स्थायीके बलका विचार करना ।। ३५ ॥ हन्युर्म्मध्येन या उल्का ग्रहाणां नाम विद्युता । सानिर्घाता सधृम्रा वा तत्र विद्यादिदं फलम् ||३६|| अर्थ- जो उल्का मध्य भागसे ग्रहको हने, वह उल्का विद्युत नामकी जानो । यह उल्का निर्धात सहित तथा धूम सहित हो तो उसका फल नीचे भुजिब जानो ॥ ३६ ॥
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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