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________________ २३० अनेकान्त [वष १० शेष डेढ़ लाखकी रकमसे विडलामन्दिरकी तरह नहीं मिलता और न उसकी इस प्रकार व्याख्या हो 'अहिंसामन्दिर'को विशाल विल्डिंग बनाई जाय, की है। आज 'हिंदू' शब्द मुख्यतः वेद और ईश्वर जिसमें बाग-बगीचे आदि विशिष्ट और सुन्दरतम (जगत्कर्ता) को माननेवालेके अर्थमें व्यवहृत होता चीजें रहें। है । सावरकरजीकी व्याख्याको न जनता स्वीकार यह है एक वर्ष पूर्वका हमारा स्वप्न जिसे डा० करती है और न सरकार । अतः जब तक जनता नागके 'अहिंसामन्दिरको स्थापनाके सझावने और सरकार 'हिंदू' की व्याख्याको बदलकर भारतीय' उबुद्ध किया है । क्या हम आशा करें कि यह स्वप्न के अर्थमें उसे स्वीकार नहीं करते हैं तब तक जैनों स्वप्न ही तो न रहेगा और कुछ हो कर रहेगा। को हिन्दुओंमें परिगणित करना किसी भी तरह ___ उक्त रूपरेखा जल्दीमें तैयार की गई थी और उचित नहीं है । जैनधर्म और जैन संस्कृति अपना उसे यों ही डाल दिया गया था । वह अब सुन्दरसे स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं-उनका अपना साहित्य, सुन्दर और महत्वपूर्ण भी बनाई जासकती है । हम पुरातत्त्व, इतिहास, मन्दिर, मृर्तियाँ, आचार-विचार समाजका ध्यान इस ओर आकर्षित करते हैं। मब भिन्न हैं और इसलिये जैनधर्म हिन्दूधर्मका न .. . अतीतमे अङ्ग हुआ है न वतमानमें है और न भावजैनधर्म हिन्धर्मका अङ्ग नहीं है न आता ' ष्यमें हो सकता है। यह दूसरी बात है कि हिन्दूधर्मरहा है और न हो सकता है जबसे 'हरिजन के माथ हमारे धर्मकी फितनी ही ममानताएँ हैं और मंदिर-प्रवेबिल' बना है और बनकर वह जनताक एक-दसरेके साथ महयोग रखते हैं। सो यह तो सामने आया है तबसे जैनोंको हिंदू और जैनधर्मको धर्मका सामान्य सिद्धान्त है जिमका होना जरूरी हिंदूधर्म बताया जाने लगा है । कुछ पुरान हिंदू नेता- है। आज कोई भी धर्म असहिष्णु बनकर रह नहीं अोंने तो हिंदू' शब्दकी पुरानी व्याख्याको बदलकर सकता और न असहिष्णु बनना कोई धर्म सिखाता एक नयी व्याख्या उपस्थित की है और जैनोंको इस है। अतः सिखों, पारसियों और बौद्धोंकी तरह जैनों व्याख्याके अनुसार हिंदू बतलाया है। वह व्याख्या को हिन्दुओंसे पृथक ही गिनना चाहिये और इसलिये इस प्रकार है: जो कानून एक धम या वर्गके लिये बनाया जाय उस 'आसिन्धुसिंधुपर्यता यस्य भारतभूमिका। दूसरे धर्म या वर्गपर नहीं थोपना चाहिये। हॉ, पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दूरिति स्मृतः ।। राष्ट्रके हितमें जो कानून बने वह सबपर लागू किया 'अर्थात् सिंधु नदीसे लेकर समुद्र पर्यन्तकी जा सकता है । इस सम्बन्धमें हम किसी दूसरी भारतभूमि जिनकी पितृभू-पूर्वजोंका स्थान और पु- किरणमें विस्तारसे विचार करेंगे। एयभ अर्थात् धर्मसंस्थापक प्रवर्तक, तीर्थ, भाषा पूज्य वर्णीजी पूर्णतः स्वस्थआदिका स्थान है वे सब हिंदू हैं। विद्वान् जानते हैं कि 'हिंदू' शब्द मुसल्मानोंको २६ दिसम्बर को हमनेएकदम सुना कि राष्ट्रके महान् देन है । वे जब इस देशमें आये तो यहाँके रहने सन्त और समाजकी विभूति श्री १०५ जुल्लक पूज्य वालोंको वे 'काफिर' के अर्थमें हिंद कहने लगे और गणशप्रसादजी वणी जसवन्तनगरमें बहुत अस्वउनके देशको हिंदुस्तान तथा भाषाको हिंदी। अतः स्थ है और उनकी अस्वस्थता बहुत ही चिन्ताजनक इसीके आधारस अर्वाचीन किसी संग्रहप्रेमी लेखक- है-पैरोंमें शोथ हो गया है और १०४ डिग्री के करीब ने उक्त श्लोक रचकर 'हिंदू' की यह व्याख्या उप- बुखार रहता है । यह सुनते ही हम, पं०परमानन्दजी स्थित की है । किंतु प्राचीन साहित्वमें 'हिंदू' शब्द और बा. जैनन्द्रकिशोरजीके लघुभाई डा. किशोर जैन
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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