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________________ किरण ६] सम्पादकीय २३१ उसी दिन सन्ध्याको ४ बजेकी गाड़ीसे जसवन्तनगर होगी कि पूज्य वर्णीजी अब पूर्णतः स्वस्थ हैं और गये । वहां पहुंचते ही स्टेशनपर मालूम हुआ कि आस-पासको जनताको उनके इटावामें विराजपूज्य वर्णाजी वहांसे आज हो उसी अस्वस्थ हाल- मान होनेसे बड़ा धर्मलाभ पहुंच रहा है। इटातमें वैद्य कन्हैयालालजी कानपुर, बा. कपरचन्द्रजी वाके धर्मबन्धुओंका धर्मानुराग प्रशंसनीय है। सभी कानपुर और इटावाके धर्मबन्धुओंके आग्रहसे बन्धु पूज्य वर्णीजीकी परिचर्या में हर-समय तय्यार इटावाको, जो जसवन्तनगरसे करीव १० मील है रहते हैं और आगतोंके आतिथ्यको बड़े प्रेमसे करते हैं और स्वास्थ्य आदिकी दृष्टिसे सुन्दर जगह है, वा. छोटेलालजी जैन कलकत्ता जयपुरमें विहार कर गये हैं। अतएव हम लोग सीधे इटावा पह'चे। वहां पृज्य वर्णीजीको उसी तरह पाया जैसा जैन समाजके सुप्रसिद्धसेवी और वीरसेवासुना था। पर पज्य वीजीके चित्त तथा चेहेरेपर मन्दिरके अनन्यप्रेमी बा. छोटेलालजी जैन कलजरा भी कोई परिवर्तन नहीं और सदाकी भाँति प्रा- कत्ता डेढ महिनेसे आज कल जयपुरमें अपना इलाज तः ४ बजे उठकर समयसारका प्रवचन करते हुए करा रहे है। अभी हालमें आप बहुत अस्वस्थ हो मिले । सुवह ।। वजे पूज्य वीजीके सद्भावमे मेरा गए थे और जिससे बड़ी चिन्ता उत्पन्न होगई थी। शास्त्र हा। शास्त्र अन्तमें बाबाजीने बतलाया किन्तु प्रसन्नताकी बात है कि अब आप पहलेसे कि यहां खटखटी बाबाका एक संस्कृत विद्यापीठ अच्छे है और तवियत सुधारपर है। पाठक यह है जिसमे हजारों संस्कृतके प्राचीन अर्वाचीन ग्रन्थों जानकर आश्चर्य करेंगे कि उन्हें जैन धर्मसे कितना का संग्रह है और जो देखने योग्य है। बा० सोहनलालजी जैन और पंज यचन्दजी चौधरी हम लोगोंको स्थामें भी आपने जयपुरके प्रायः सभी जैनमन्दिरोंके, उक्त स्थान तथा इटावाके दूसरे प्राचीन स्थानोंको जो कलाकी दृष्टिसे खास महत्व रखते हैं, बा. मोतीदिखानेके लिए ले गए । वास्तव में खटखटी बाबाका लालजी जैन (बा. पन्नालालजी अप्रवाल देहलीके संस्कृतविद्यापीठ देखने योग्य है और जो इस जिले- सुपुत्र) को देहलीसे बुलाकर उनसे चित्र लिवाये हैं का ही नहीं प्रान्तका सबसे बड़ा संस्कृत पुस्तकोंका और जिसमें अधिक परिश्रम होनेसे आप अस्वस्थ भएटार जान पड़ता है और जिसमें बीस हजार हो गये थे । भगवान् जिनेद्रसे प्रार्थना किश्राप शीघ्र के करीब प्रन्थ संग्रहीत बतलाए गए हैं। हम इसके प्रारोग्य - लाभ करके चिरकाल तक समाजकी तथा इटावाके दूसरे स्थानोंके बारेमें विशेष अगली सेवा करते रहें। किरणमें लिखेंगे। पाठकोंको यह जानकर प्रसन्नता ह जनवरी १९५०, -दरबारीलाल जैन,
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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