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किरण ६ ]
प्रस्ताव भेजा है, जिसमें परस्पर सशस्त्र युद्धको सदाके लिये बन्द कर देनेकी प्रतिज्ञा तथा घोषणा की है। पिछले दो महायुद्धोंने संसारको तबाह कर दिया है और हिंसाके परिणामोंको दिखा दिया है । अतः आज संसारमें यदि शान्ति कायम की जा सकती है तो वह अहिंसा के द्वारा ही को जा सकती है। गांधीजी के प्रयत्नों और कार्योंसे श्राज विश्वका बहु भाग 'अहिंसा' को जानने और उसको जीवनमें उतारनेके लिये उत्सुक है। अतः अहिंसामन्दिरकी स्थापना जैनधर्मके भविष्यको उज्ज्वल बना सकती है ।
सम्पादकीय
गतवर्ष जयपुर कांग्रेस के अधिवेशनको जाते सम हमारे तथा लाला राजकृष्णजी जैनक मनमें भी इस अहिसा मन्दिरको स्थापनाके विचारका सर्व प्रथम उदय हुआ था और २१ दिसम्बर १९४८ को उसकी एक रूपरेखा तैयार की थी, जिसका शीर्षक था 'देहली मे हिंसा मन्दिर की योजनाकी रूपरेखा ।' आज हम उसे उसी रूपमें नीचे दे रहे है । आशा है जैन समाज इसपर पूरा ध्यान देकर उसे कार्यरूपमें परिणत करने के लिए कृतसंकल्प होगा और आजके सुअव सरसे लाभ उठायेगा
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" नाम - 'अहिंसामन्दिर' हो
उद्देश्य- (क) विश्व में हिंसा और अपरिग्रहको भावना और आचरणका प्रसार ।
(ख) अहिंसक सभ्यता और संस्कृतिका सर्वव्यापी प्रचार ।
नियम - (१) १८ वर्ष की अवस्थाका प्रत्येक व्यक्ति स्त्री अथवा पुरुष, जो अहिंसा की भावनाको लिए हुए अष्ट मूलगुणों का धारी हो और जिसका नैतिक स्तर ऊँचा हो, इसका सदस्य हो सकता है ।
(२) देवदर्शन करना प्रत्येक सदस्य के लिये वांछनीय है । यह अहिंसाप्रधान संस्कृतिका प्रमुख चिन्ह है | आदि आदि ।
२. अहिंसा मन्दिर के मुख्य चार विभाग हों:( क ) सर्वोदय तीथं । (ख) अहिंसा - विद्यापीठ । (ग) वीर सेवामन्दिर । (घ) छात्रवृत्तिफण्ड ।
(क) सर्वोदयतीर्थ - इसकी १ लाखकी सुन्दर विशाल विल्डिंग हो, जिसमें वीतरागदेव तीर्थकर महावीर अथवा ऋषभदेव और इतर देवोंकी प्रतिमूर्तियाँ हों और जिनका स्पष्ट विवेक 'मन्ये aj after ga eteा:' आदि पद्योल्लेखके साथ हो । मुख्य द्वारपर ऊपर स्वामी समन्तभद्रका निम्न पद्य अङ्कित रहे
सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं सर्वेध |
युक्त्यनु. इसकी सुव्यवस्था के लिए १ लाखका फण्ड हों । (ख) हिसा विद्यापीठ-पांच लाखकी रकमसे यह स्थापित हो जिसमें उच्च कोटिकी धार्मिक शिक्षा
साथ २ विभिन्न उद्योगों की लौकिक शिक्षाका भी प्रबन्ध हो । योग्यतम पाठक इसके शिक्षक हों। (ग) वीरसेवामन्दिर - - इस विभाग के द्वारा पुरातत्व, इतिहास और साहित्यका संकलन, अन्वेषण तथा निर्माणदि हो। इसके साथ एक विशाल लायब्रेरी रहे जिसमें समप्र भारतीय श्रहिंसक साहित्यका संग्रह हो । देश के कोने-कोने में से साहित्य और पुरातत्वादिका संचयन किया जावे । इसके लिए कम-से-कम ५ लाख द्रव्य अपेक्षित है । (घ) छात्रवृत्तिफण्ड --- - इस फण्डमें १|| लाख सुरक्षित द्रव्य रहे और जिसकी श्रायसे प्रतिवर्ष १० छात्रों को देश और विदेशमें भेजकर विभिन्न प्रकारकी उच्च शिक्षा दिलाई जाय । ये छात्र न केवल देशमें ही अपितु विदेशों में भी जैनधर्मके अहिंसा
१. अहिंसा मन्दिरकी स्थापनाके लिए १५ लाख और अपरिग्रह जैसे सर्वे कल्याणकारी सिद्धान्तोंरुपए आवश्यकीय है ।
का प्रचार करें।